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mahashivratri 2023 अनोखा शिवालय जलेश्वरनाथ, गंगा जल जैसी बहती है जलधारा

unique temple of Shivpur महाशिवरात्रि के अवसर पर देश के कई हिस्सों के शिवालयों में बड़ी पूजा का आयोजन होता है. कुछ शिवालय ऐतिहासिक है.जहां की घटनाएं लोगों को आज भी चकित करती हैं. ऐसा ही एक शिवालय छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में स्थित है. जिसके चारों जल की प्राकृतिक धारा बहती है.आज तक इस जलधारा का स्त्रोत नहीं जाना जा सका है.साथ ही साथ ये जल गंगाजल के जैसे कभी खराब भी नहीं होता.

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Published : Feb 18, 2023, 5:01 AM IST

unique temple of Shivpur
अनोखा शिवालय जलेश्वरनाथ

सूरजपुर : शिवपुर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है. जहां श्रद्धालु दूर दूर से पूजा पाठ के लिए आते हैं. इसकी संभाग मुख्यालय अंबिकापुर से दूरी करीब 46 किलोमीटर, सूरजपुर जिला मुख्यालय से करीब 70 और ब्लॉक मुख्यालय प्रतापपुर से दूरी 4 किलोमीटर है. शिवपुर पहले ग्राम पंचायत खजूरी का आश्रित ग्राम था. यहां के इतिहास और महत्व के बारे में बात करें तो यह प्रतापपुर के राज परिवारों से जुड़ा है.शिवपुर को लेकर किवंदिति है कि तत्कालीन राजा को स्वप्न आया था और शिवपुर में शिवलिंग के दबे होने की बात पता चली. जानकारी के बाद राजा ने सुबह ही वहां जाकर खुदाई करवाकर शिवलिंग की स्थापना कराई. इसके बाद से ही यहां लगातार पूजा होने लगी थी.

क्या है मंदिर का इतिहास : कहा जाता है कि शुरू में यहां खुले में ही पूजा होती थी. फिर ऊपर से झोपड़ी बना दी गई थी.बाद में छोटा मंदिर. इसी परिसर में ठाकुर बाड़ी मंदिर भी है जो कृष्ण जी का सैंकड़ों वर्ष पुराना मंदिर है. इस मंदिर में पांच गुम्बद है जो मंदिर को अलग बनाता है. बताया जाता है कि यहां महंगे धातुओं से बनी मूर्तियां हैं और कई मूर्ति चोरी भी हो चुकी है. शिवलिंग को जलेश्वरनाथ इसलिए कहा जाने लगा क्योंकि प्राकृतिक जल शिवलिंग से लगे रहता है. लेकिन शिवलिंग में सबसे बड़ी बात है कि भगवान शंकर और माता पार्वती दोनों का रूप माना जाता है. शिवलिंग में ऐसे उभार दिखते भी हैं. यहां के शिवलिंग की मान्यता बहुत ज्यादा है और यही कारण है.शिवपुर केवल प्रतापपुर ही नहीं बल्कि दूर-दूर के लाखों श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र है.

शिवलिंग के पास बहता है गंगारुपी जल : शिवपुर में शिवलिंग और ठाकुर बाड़ी मंदिर तो खास हैं. यहां निरंतर बहने वाला जल की भी बड़ी विशेषता है. जिसे गंगा तुल्य माना जाता है. क्योंकि यह जल भी खराब नहीं होता है. निरंतर बहने वाला यह जल पहाड़ों के बीच से आता है. उसके स्त्रोत की जानकारी किसी को नहीं है. बताया जाता है कि बाहर से वैज्ञानिकों की टीम भी इसका पता लगाने आ चुकी है लेकिन पता नहीं लगा पाई. एक बार जल के साथ दाल के छिलके देखे गए थे लेकिन वे कहां से आये थे इसका भी पता नहीं चला था. जल स्त्रोत के बारे में माना जाता है कि जब राजा ने शिवलिंग के लिए खुदाई कराई थी तब ही उन्हें जलस्त्रोत भी मिला. उन्होंने शिवलिंग स्थापना के बाद जल धारा को शिवलिंग की तरफ मोड़ दिया था. तब से यह जल शिवलिंग की परिक्रमा करते हुए बाहर निकलता है. बाद में श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए बड़ी टंकी बना दी गई थी. जिसमें जल शिवलिंग के बाद आकर इकट्ठा होता है. फिर पाइप के जरिये बाहर गिरता है. चौबीस घंटे बहने वाला ये जल बारिश के मौसम में बढ़ जाता है.



शिवपुर को तीर्थ स्थल के रूप में मान्यता देने की मांग : शिवपुर को पर्यटन केंद्र नहीं धार्मिक धरोहर मानते हुए तीर्थ स्थल घोषित करने की मांग पर्यटन विभाग से की गई है. प्रतापपुर के राकेश मित्तल ने कहा कि '' उन्होंने कई बार इसे पर्यटन केन्द्र घोषित करने की मांग की है.छत्तीसगढ़ शासन के पर्यटन विभाग में प्रक्रिया बहुत हद तक पूरी हो गई है. लेकिन शिवपुर को पर्यटन केंद्र नहीं बल्कि धार्मिक धरोहर के रूप में चिन्हांकित किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि जैन समाज ने हमें पर्यटन केंद्र और धार्मिक स्थानों में अंतर बताया है. उनका तर्क सही भी है. शिवपुर को पर्यटन केंद्र नहीं बल्कि धार्मिक धरोहर के रूप में घोषित किया जाना चाहिए और इसकी मांग नए सिरे से वे शासन से करेंगे.''

ये भी पढ़ें- जानिए संतान को लंबी आयु और उन्नति देने वाला व्रत

महाशिवरात्रि पर लगेगा विशाल मेला : शिवरात्रि महापर्व पर भी शिवपुर में मेले के तौर पर बड़ा आयोजन होता है और हर साल लगभग एक लाख श्रद्धालु यहां आते हैं. हर साल की तरह इस साल भी 18 फरवरी को विशाल मेला लगेगा. इस बार भी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के यहां आने की उम्मीद है. शिवपुर समिति के अध्यक्ष कंचन सोनी ने बताया कि ''प्रशासन और शिवपुर मंदिर समिति ने व्यापक तैयारी की है,सुरक्षा श्रद्धालुओं को असुविधा से बचाने बड़ी संख्या में पुलिस बल भी तैनात रहेगा. भंडारे सहित अन्य आवश्यक गतिविधियों का संचालन समिति किया जाएगा.''

सूरजपुर : शिवपुर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है. जहां श्रद्धालु दूर दूर से पूजा पाठ के लिए आते हैं. इसकी संभाग मुख्यालय अंबिकापुर से दूरी करीब 46 किलोमीटर, सूरजपुर जिला मुख्यालय से करीब 70 और ब्लॉक मुख्यालय प्रतापपुर से दूरी 4 किलोमीटर है. शिवपुर पहले ग्राम पंचायत खजूरी का आश्रित ग्राम था. यहां के इतिहास और महत्व के बारे में बात करें तो यह प्रतापपुर के राज परिवारों से जुड़ा है.शिवपुर को लेकर किवंदिति है कि तत्कालीन राजा को स्वप्न आया था और शिवपुर में शिवलिंग के दबे होने की बात पता चली. जानकारी के बाद राजा ने सुबह ही वहां जाकर खुदाई करवाकर शिवलिंग की स्थापना कराई. इसके बाद से ही यहां लगातार पूजा होने लगी थी.

क्या है मंदिर का इतिहास : कहा जाता है कि शुरू में यहां खुले में ही पूजा होती थी. फिर ऊपर से झोपड़ी बना दी गई थी.बाद में छोटा मंदिर. इसी परिसर में ठाकुर बाड़ी मंदिर भी है जो कृष्ण जी का सैंकड़ों वर्ष पुराना मंदिर है. इस मंदिर में पांच गुम्बद है जो मंदिर को अलग बनाता है. बताया जाता है कि यहां महंगे धातुओं से बनी मूर्तियां हैं और कई मूर्ति चोरी भी हो चुकी है. शिवलिंग को जलेश्वरनाथ इसलिए कहा जाने लगा क्योंकि प्राकृतिक जल शिवलिंग से लगे रहता है. लेकिन शिवलिंग में सबसे बड़ी बात है कि भगवान शंकर और माता पार्वती दोनों का रूप माना जाता है. शिवलिंग में ऐसे उभार दिखते भी हैं. यहां के शिवलिंग की मान्यता बहुत ज्यादा है और यही कारण है.शिवपुर केवल प्रतापपुर ही नहीं बल्कि दूर-दूर के लाखों श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र है.

शिवलिंग के पास बहता है गंगारुपी जल : शिवपुर में शिवलिंग और ठाकुर बाड़ी मंदिर तो खास हैं. यहां निरंतर बहने वाला जल की भी बड़ी विशेषता है. जिसे गंगा तुल्य माना जाता है. क्योंकि यह जल भी खराब नहीं होता है. निरंतर बहने वाला यह जल पहाड़ों के बीच से आता है. उसके स्त्रोत की जानकारी किसी को नहीं है. बताया जाता है कि बाहर से वैज्ञानिकों की टीम भी इसका पता लगाने आ चुकी है लेकिन पता नहीं लगा पाई. एक बार जल के साथ दाल के छिलके देखे गए थे लेकिन वे कहां से आये थे इसका भी पता नहीं चला था. जल स्त्रोत के बारे में माना जाता है कि जब राजा ने शिवलिंग के लिए खुदाई कराई थी तब ही उन्हें जलस्त्रोत भी मिला. उन्होंने शिवलिंग स्थापना के बाद जल धारा को शिवलिंग की तरफ मोड़ दिया था. तब से यह जल शिवलिंग की परिक्रमा करते हुए बाहर निकलता है. बाद में श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए बड़ी टंकी बना दी गई थी. जिसमें जल शिवलिंग के बाद आकर इकट्ठा होता है. फिर पाइप के जरिये बाहर गिरता है. चौबीस घंटे बहने वाला ये जल बारिश के मौसम में बढ़ जाता है.



शिवपुर को तीर्थ स्थल के रूप में मान्यता देने की मांग : शिवपुर को पर्यटन केंद्र नहीं धार्मिक धरोहर मानते हुए तीर्थ स्थल घोषित करने की मांग पर्यटन विभाग से की गई है. प्रतापपुर के राकेश मित्तल ने कहा कि '' उन्होंने कई बार इसे पर्यटन केन्द्र घोषित करने की मांग की है.छत्तीसगढ़ शासन के पर्यटन विभाग में प्रक्रिया बहुत हद तक पूरी हो गई है. लेकिन शिवपुर को पर्यटन केंद्र नहीं बल्कि धार्मिक धरोहर के रूप में चिन्हांकित किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि जैन समाज ने हमें पर्यटन केंद्र और धार्मिक स्थानों में अंतर बताया है. उनका तर्क सही भी है. शिवपुर को पर्यटन केंद्र नहीं बल्कि धार्मिक धरोहर के रूप में घोषित किया जाना चाहिए और इसकी मांग नए सिरे से वे शासन से करेंगे.''

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महाशिवरात्रि पर लगेगा विशाल मेला : शिवरात्रि महापर्व पर भी शिवपुर में मेले के तौर पर बड़ा आयोजन होता है और हर साल लगभग एक लाख श्रद्धालु यहां आते हैं. हर साल की तरह इस साल भी 18 फरवरी को विशाल मेला लगेगा. इस बार भी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के यहां आने की उम्मीद है. शिवपुर समिति के अध्यक्ष कंचन सोनी ने बताया कि ''प्रशासन और शिवपुर मंदिर समिति ने व्यापक तैयारी की है,सुरक्षा श्रद्धालुओं को असुविधा से बचाने बड़ी संख्या में पुलिस बल भी तैनात रहेगा. भंडारे सहित अन्य आवश्यक गतिविधियों का संचालन समिति किया जाएगा.''

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