सरगुजा: सरकार किसी भी राजनीतिक दल की हो, क्या सरकारों के पास मानवीयता का कोई पैमाना होता है, या हर सरकार सिर्फ सत्ता का सुख भोगने के ही उद्देश्य से चुनाव लड़ती है. सरकार बनाने के बाद वहीं प्रशासनिक हेर-फेर के साथ सब पुराने ढर्रे पर चलने लगता है. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि छत्तीसगढ़ में 15 साल तक शासन करने के बाद भाजपा को जनता ने बाहर का रास्ता दिखाया और सत्ता परिवर्तन कर कांग्रेस को मौका दिया. प्रदेश की जनता ने कांग्रेस को मौका दिया, पार्टी के जन घोषणा पत्र के नाम पर, लेकिन आज भी कई ऐसे वादे हैं जो सिर्फ सियासी जुमला बन कर रह गए हैं.
सरकार बनने से पहले कांग्रेस पार्टी ने दिव्यांग और निराश्रितों को सुविधाओं की बड़ी-बड़ी बातें की थी, लेकिन अंबिकापुर के निजी पुनर्वास केंद्र को आजतक शासकीय अनुदान भी नहीं मिल सका है. कोरोना काल में यहां रहने वाले दिव्यांग राशन तक को मोहताज हैं. हैरान करने वाली बात है कि सरकार में मंत्री टीएस सिंहदेव खुद अंबिकापुर विधानसभा से आते हैं. कहा जाता है कि जन घोषणा पत्र तैयार करने में उनका बड़ा हाथ था, लेकिन उन्हीं के क्षेत्र में दिव्यांग जन खांसी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं.
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ETV भारत ने अंबिकापुर में संचालित कलावती पुनर्वास केंद्र में रहने वाले दिव्यांग और निराश्रित लोगों से उनका हाल जाना. संस्था की दिव्यांग संचालिका से भी बातचीत की गई. पता चला कि इस पुनर्वास केंद्र को शासकीय अनुदान नहीं मिल रहा है और कोरोना काल में इनके सामने पेट भरने की भी समस्या खड़ी हो गई है. 2017 से लगातार शासकीय दफ्तर के चक्कर काटने के बाद भी कोई सहायता नहीं मिल सकी.
संस्था की संचालिका ने कहा- जवाब दे रही हिम्मत
पड़ताल में पता चला कि एक दिव्यांग को जर्जर ट्राई साइकल दे दी गई थी और अब वो साइकल चलने लायक भी नहीं बची है, दिव्यांग युवक अधिकारियों से गुहार लगाकर तक चुका है, लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई. संस्था की संचालिका रीता अग्रवाल किसी तरह पिछले 6 साल से दिव्यांग कल्याण का बीड़ा उठाए हुए हैं. वह कभी कभार लोगों से मिलने वाले सहयोग और अपने परिवार के सहयोग से इस पुनर्वास केंद्र को चला रही हैं, लेकिन अब उनकी हिम्मत भी जवाब देने लगी है. रीता कहती हैं कि अब न किसी से सहयोग मांगने की हिम्मत होती है और न ही संस्था को चलाने की.
समाजसेवी संस्थाओं को मदद की दरकार
इस संस्था में दिव्यांग और निराश्रित लोगों को पनाह दी जाती है, यहां उनके रहने खाने-पीने सहित खेल कूद, मनोरंजन और शिक्षा की भी व्यवस्था थी, लेकिन कोरोना काल में आई आर्थिक तंगी ने सब प्रभवित कर दिया. यहां रहने वाले बच्चे भी शासकीय आदेश के कारण अपने घर जाकर रह रहे हैं, लेकिन जिनका कोई नहीं है उनका क्या, वो आज भी इसी केंद्र पर निर्भर हैं. अब सवाल यह उठ रहे हैं की क्या करोड़ों की योजनाओं की सौगत देने वाले मंत्री में इतनी भी सहानुभूति नहीं की इस तरह के समाजसेवी संस्थाओं की मदद की जा सके.