सरगुजा: सरकारी स्कूल का नाम सुनते ही खंडहर इमारत और कुर्सी में बैठकर टाइम पास करते शिक्षक की तस्वीर जेहन में उभर आती है. लेकिन अब वक्त के साथ हालात बदल रहे हैं. आज स्थिति ये है कि बड़े-बड़े प्राइवेट स्कूलों को पीछे छोड़ शासकीय स्कूलों में बच्चों को बेहतर शिक्षा दी जाती है.
सरगुजा के सरकारी सकूल में कलेक्टर के बच्चे भी पढ़ते हैं
स्कूल में बेहतर शिक्षा व्यवस्था देख सरगुजा कलेक्टर संजीव कुमार झा (Surguja Collector Sanjeev Kumar Jha) ने अपनी बेटी का दाखिला शासकीय आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल (Atmanand English school) में कराया है. मौजूदा समय में किसी कलेक्टर के पास ना तो पैसे की कमी होती है. ना ही कोई प्राइवेट स्कूल कलेक्टर के बच्चे को एडमिशन देने से ही इनकार कर सकता है. ऐसे में बड़े प्राइवेट स्कूलों को दरकिनार कर सरगुजा कलेक्टर संजीव झा ने अपनी बेटी ईशानी को स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल में दाखिला (Sarguja collector daughter also studying here) दिलाया. इशानी अब 3 तीसरी कक्षा में पढ़ती है.
प्रइवेट स्कूलों से बेहतर शिक्षा दी जाती है
कलेक्टर द्वारा उठाये गए इस कदम से दो तरह की स्थिति बनती है. एक तो लोगों में शासकीय स्कूल के प्रति विश्वास बढ़ता है. दूसरा स्कूल के एकेडमिक विभाग में हमेशा ये बात रहती है की कलेक्टर निजी तौर पर भी स्कूल की स्थिति देख रहे हैं. लिहाजा स्कूल में बेहतर परिणाम सामने आते हैं. अम्बिकापुर के ब्रम्हपारा में स्थित जिले का सबसे पहला स्वामी आत्मानन्द स्कूल बेहतर परिणाम दे रहा है, यही वहज है की यहां पढ़ने वाले बच्चे जो पहले प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते थे वो इस शासकीय स्कूल को प्राइवेट से बेहतर बता रहे हैं, कलेक्टर का भी मानना है की आज के समय मे यह स्कूल अम्बिकापुर के किसी भी स्कूल की तुलना में उत्कृष्ट कार्य कर रहा है.
परखे हुए शिक्षकों की होती है भर्ती
स्वामी आत्मानन्द इंग्लिश मीडियम स्कूल ब्रह्मपारा में बेहतर पढ़ाई के पीछे की वजह यहां का टीचिंग स्टाफ और अनुसाशित प्रिंसिपल हैं. यहां टीचरों की नियुक्ति के समय से ही प्रशासन ने सख्ती बरती है. विषय विशेषज्ञों द्वारा इंटरव्यू में परखे जाने के बाद ही टीचरों की भर्ती की गई. इसके साथ ही एक अनुशासित प्रिंसिपल को इस स्कूल की कमान सौंपी गई, जिसका परिणाम ये है कि एक शासकीय स्कूल प्राइवेट स्कूलों को पछाड़ने की होड़ में आ खड़ा हुआ है.
नहीं होती किसी बच्चे की सिफारिश
सिर्फ कलेक्टर नहीं बल्कि कई अन्य अधिकारियों के बच्चे भी इस स्कूल में पढ़ते हैं. नतीजा यह है कि यहां एडमिशन लेने के लिये लोग वेटिंग में रहते हैं. लेकिन एडमीशन नहीं मिल पाता. चयन का तरीका इतना पारदर्शी है कि किसी की सिफारिश भी यहां नहीं चलती है. लिहाजा काबिल बच्चे ही यहां दाखिला ले पाते हैं.