सरगुजा: एक महीने तक चलने वाले रमजान के इस महीने के बारे में तो हम आक्सर सुनते हैं. लेकिन क्या इसके धर्मिक कारण और महत्व को जानते हैं? क्यों रमजान खत्म होने के बाद ईद मनाई जाती है? ETV भारत ने ऐसे ही कई सवालों का जवाब जानने नाजमिया मस्जिद रसूलपुर के इमाम जनाब सगीर अहमद से बात की
"इबादतों से जल जाते हैं गुनाह": नाजमिया मस्जिद के इमाम जनाब सगीर अहमद ने बताया कि "रमजान रम से बना है. इसका मतलब होता है जला देना. यानी जो कि जो भी पाप, गुनाह होते हैं. वे सब खुदा की इबादत से जला दिए जाते हैं. अल्लाह का कुरान में संदेश है कि तुम पर रमजान का रोजा फर्ज किया गया. जैसे तुमसे पहले वालों पर रोजा फर्ज हुआ था. रमजान के रोजे की बड़ी बरकतें हैं. रमजान के लिये नबी फरमाते हैं कि रोजा मेरे लिए है और मैं ही उसका बदला हूं."
इस महीने शबाब 70 से 700 गुना बढ़ जाता है: नाजमिया मस्जिद के इमाम जनाब सगीर अहमद ने बताया कि "रमजान के महीने में शैतान जिन्न कैद कर लिये जाते हैं. जन्नत के दरवाजे खोल दिये जाते हैं. जहन्नुम के दरवाजे बंद कर दिये जाते हैं. दूसरे महीने में की गई नेकियों के बनिस्बत इस महीने में नेकियों शबाब और उसका अज्र बहोत ज्यादा बढ़ा दिया जाता है. जैसे कोई और महीने में कोई नफल करे, फर्ज करे और इस महीने में नफल करे तो फर्ज का शबाब मिलेगा. इस महीने में कोई के फर्ज अदा कर तो उसको 70 फर्ज का शबाब मिलेगा. इस महीने अगर कोई नेकी करता है तो 70 से लेकर 700 गुना तक उसकी नेकी बढ़ा दी जाती है."
"20 रकात की नामजे तराबी बढ़ जाती है": नाजमिया मस्जिद के इमाम जनाब सगीर अहमद ने बताया कि "रमजान के महीने में बहोत सबक दिया गया. ये सब्र का महीना है. इसमे बंदे के अंदर हैबिट आती है. एक प्रेक्टिस कराई जाती है कि 11 महीने तुम खाये हो. एक महीने सिर्फ दिन में 12 घंटा 14 घंटा भूखे रहकर अपने आप में सिर्फ ये प्रेक्टिस करो को वो लोग जो गरीब हैं. जिनके पास खाना नहीं है. उनकी शिफत भी अपने अंदर पैदा कर लो ताकी ये अहसास पैदा हो कि गरीबी क्या होती है. गरीबों की मदद का महीना है ये. इसमें विशेष तौर पर पंचगाना नमाज के साथ साथ 20 रकात नााजें तराबी अदा की जाती है."
कुरान शरीफ इसी महीने में हुआ नाज़िर: नाजमिया मस्जिद के इमाम जनाब सगीर अहमद ने बताया कि "इसमे पूरे महीने आदमी दिन में रोजा होता है रात में विशेष इबादत करता है. 20 रकात नामज़े तराबी कुराने शरीफ इसी महीने में नाजीर हुआ. जिसके अंदर में इंसानों के लिये हिदायत है और लोगों के लिये इसमें सचश्मे हिदायत है, वो किताब कुरान ने शरीफ भी इसी महीने में नाजिर हुआ है. इसलिए कहा गया ये महीना सब्र का है, अज्र का है. इसमें रोजी बढ़ा दी जाती है. आदमी चाह कर भी आम दिनों में वो चीजें, अपने दस्तरखान पर इकट्ठी नहीं कर पाता. जो इस महीने में हर दिन आदमी अपने दस्तरखान पर सजा लेता है."
"बढ़ा दी जाती है रोजी": नाजमिया मस्जिद के इमाम जनाब सगीर अहमद ने बताया कि "नबी फरमाते हैं कि इस महीने में रोजी बढ़ा दी जाती है. अगर कोई भूखे को खाना खिलाये, रोज़ेदार के इफ्तार कराए तो अल्लाह ताला उसको हौजे कौसर से जाम पिलायेगा और उसे जन्नत में दाखिल करेगा. अपने नौकरों पर जो आसानी करे उनका बोझ हल्का करेगा, अल्लाह ताला उस पर अजाब हल्का कर देगा, उसको बक्स देगा. इस महीने में अगर कोई नेकी करता है, तो उसका अज्रों शबाब बढ़ा दिया जाता है. तो ये जो पूरा एक महीना है ये पूरी इबादत का महीना है, तात का महीना है और बंदगी का महीना है. जब पूरा महीना इबादत और बन्दगी में बिताया तो जाहिर सी बात है की आदमी जब इम्तिहान देता है, तो इम्तिहान के बाद एक दिन आता है रिजल्ट."
"मछलियां भी करती हैं दुआ": नाजमिया मस्जिद के इमाम जनाब सगीर अहमद ने बताया कि "जब तीसों दिनों के इबादत में इम्तिहान में गुजार लिया, तो अब वो दिन आया रिजल्ट लेने का. तो ये दिन ईदुल फितर कहलाया. ये दिन रिजल्ट लेने का है. तो ये पूरे महीने उसने जो इम्तिहान दिया, इबादत की सूरत में, नामज की सूरत में, सब्र की सूरत में, सब्र देखिए ऐसा सब्र है कि बंदा एकदम दोपहर में जोहर की नमाज पढ़ने आता है. भूख और प्यास की सीदत होती है. ठंडा-ठंडा पानी मुह में रखता है कुल्ली करके वापस कर देता है. लेकिन अल्लाह के लिये उसने रोजा रखा हुआ है. जब बंदा रोजा रखता है, तो मछलियां जो पानी की तहों में हैं वो भी उनके लिये दुआ करती हैं."
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"रोजेदार के मुंह की बू, ज़ाफ़रान से ज्यादा बेहतर": नाजमिया मस्जिद के इमाम जनाब सगीर अहमद ने बताया कि "रोजेदार बंदे के मुह से जो बू आती है. अल्लाह ने कहा कि वो मेरे नजदीक मुझको जाफरान से भी ज्यादा बेहतर है. रोजेदार ये तीसों दिन की बहुत ही कठिन इबादत और सब्र वाली इबादत कर लिया तो अब रिजल्ट का दिन आया, नतीजे दिन आया तो वो दिन है ईद का. इसलिए ईद का मतलब होता है खुशी का, की याब रिजल्ट जब मिलता है. तब आदमी खुश होगा, इसलिए रोजा रखा जाता है और रमजान में इबादत की जाती है."
Ramadan 2024: क्यों रमजान के महीने में रखा जाता है रोजा - ramadan mubarak 2023
रमजान का महीना इस्लाम धर्म में सबसे पवित्र महीना माना जाता है. रमजान का महीना 30 दिनों का होता है. इस दौरान इसे मानने वाले लोग रोजा रखते हैं. रोजा रखने वाले लोग इस दौरान 12 से 14 घंटे पानी तक नहीं पीते.
सरगुजा: एक महीने तक चलने वाले रमजान के इस महीने के बारे में तो हम आक्सर सुनते हैं. लेकिन क्या इसके धर्मिक कारण और महत्व को जानते हैं? क्यों रमजान खत्म होने के बाद ईद मनाई जाती है? ETV भारत ने ऐसे ही कई सवालों का जवाब जानने नाजमिया मस्जिद रसूलपुर के इमाम जनाब सगीर अहमद से बात की
"इबादतों से जल जाते हैं गुनाह": नाजमिया मस्जिद के इमाम जनाब सगीर अहमद ने बताया कि "रमजान रम से बना है. इसका मतलब होता है जला देना. यानी जो कि जो भी पाप, गुनाह होते हैं. वे सब खुदा की इबादत से जला दिए जाते हैं. अल्लाह का कुरान में संदेश है कि तुम पर रमजान का रोजा फर्ज किया गया. जैसे तुमसे पहले वालों पर रोजा फर्ज हुआ था. रमजान के रोजे की बड़ी बरकतें हैं. रमजान के लिये नबी फरमाते हैं कि रोजा मेरे लिए है और मैं ही उसका बदला हूं."
इस महीने शबाब 70 से 700 गुना बढ़ जाता है: नाजमिया मस्जिद के इमाम जनाब सगीर अहमद ने बताया कि "रमजान के महीने में शैतान जिन्न कैद कर लिये जाते हैं. जन्नत के दरवाजे खोल दिये जाते हैं. जहन्नुम के दरवाजे बंद कर दिये जाते हैं. दूसरे महीने में की गई नेकियों के बनिस्बत इस महीने में नेकियों शबाब और उसका अज्र बहोत ज्यादा बढ़ा दिया जाता है. जैसे कोई और महीने में कोई नफल करे, फर्ज करे और इस महीने में नफल करे तो फर्ज का शबाब मिलेगा. इस महीने में कोई के फर्ज अदा कर तो उसको 70 फर्ज का शबाब मिलेगा. इस महीने अगर कोई नेकी करता है तो 70 से लेकर 700 गुना तक उसकी नेकी बढ़ा दी जाती है."
"20 रकात की नामजे तराबी बढ़ जाती है": नाजमिया मस्जिद के इमाम जनाब सगीर अहमद ने बताया कि "रमजान के महीने में बहोत सबक दिया गया. ये सब्र का महीना है. इसमे बंदे के अंदर हैबिट आती है. एक प्रेक्टिस कराई जाती है कि 11 महीने तुम खाये हो. एक महीने सिर्फ दिन में 12 घंटा 14 घंटा भूखे रहकर अपने आप में सिर्फ ये प्रेक्टिस करो को वो लोग जो गरीब हैं. जिनके पास खाना नहीं है. उनकी शिफत भी अपने अंदर पैदा कर लो ताकी ये अहसास पैदा हो कि गरीबी क्या होती है. गरीबों की मदद का महीना है ये. इसमें विशेष तौर पर पंचगाना नमाज के साथ साथ 20 रकात नााजें तराबी अदा की जाती है."
कुरान शरीफ इसी महीने में हुआ नाज़िर: नाजमिया मस्जिद के इमाम जनाब सगीर अहमद ने बताया कि "इसमे पूरे महीने आदमी दिन में रोजा होता है रात में विशेष इबादत करता है. 20 रकात नामज़े तराबी कुराने शरीफ इसी महीने में नाजीर हुआ. जिसके अंदर में इंसानों के लिये हिदायत है और लोगों के लिये इसमें सचश्मे हिदायत है, वो किताब कुरान ने शरीफ भी इसी महीने में नाजिर हुआ है. इसलिए कहा गया ये महीना सब्र का है, अज्र का है. इसमें रोजी बढ़ा दी जाती है. आदमी चाह कर भी आम दिनों में वो चीजें, अपने दस्तरखान पर इकट्ठी नहीं कर पाता. जो इस महीने में हर दिन आदमी अपने दस्तरखान पर सजा लेता है."
"बढ़ा दी जाती है रोजी": नाजमिया मस्जिद के इमाम जनाब सगीर अहमद ने बताया कि "नबी फरमाते हैं कि इस महीने में रोजी बढ़ा दी जाती है. अगर कोई भूखे को खाना खिलाये, रोज़ेदार के इफ्तार कराए तो अल्लाह ताला उसको हौजे कौसर से जाम पिलायेगा और उसे जन्नत में दाखिल करेगा. अपने नौकरों पर जो आसानी करे उनका बोझ हल्का करेगा, अल्लाह ताला उस पर अजाब हल्का कर देगा, उसको बक्स देगा. इस महीने में अगर कोई नेकी करता है, तो उसका अज्रों शबाब बढ़ा दिया जाता है. तो ये जो पूरा एक महीना है ये पूरी इबादत का महीना है, तात का महीना है और बंदगी का महीना है. जब पूरा महीना इबादत और बन्दगी में बिताया तो जाहिर सी बात है की आदमी जब इम्तिहान देता है, तो इम्तिहान के बाद एक दिन आता है रिजल्ट."
"मछलियां भी करती हैं दुआ": नाजमिया मस्जिद के इमाम जनाब सगीर अहमद ने बताया कि "जब तीसों दिनों के इबादत में इम्तिहान में गुजार लिया, तो अब वो दिन आया रिजल्ट लेने का. तो ये दिन ईदुल फितर कहलाया. ये दिन रिजल्ट लेने का है. तो ये पूरे महीने उसने जो इम्तिहान दिया, इबादत की सूरत में, नामज की सूरत में, सब्र की सूरत में, सब्र देखिए ऐसा सब्र है कि बंदा एकदम दोपहर में जोहर की नमाज पढ़ने आता है. भूख और प्यास की सीदत होती है. ठंडा-ठंडा पानी मुह में रखता है कुल्ली करके वापस कर देता है. लेकिन अल्लाह के लिये उसने रोजा रखा हुआ है. जब बंदा रोजा रखता है, तो मछलियां जो पानी की तहों में हैं वो भी उनके लिये दुआ करती हैं."
यहं भी पढ़ें: Gangaur Teej 2023: गणगौर तीज का महत्व और परंपरा
"रोजेदार के मुंह की बू, ज़ाफ़रान से ज्यादा बेहतर": नाजमिया मस्जिद के इमाम जनाब सगीर अहमद ने बताया कि "रोजेदार बंदे के मुह से जो बू आती है. अल्लाह ने कहा कि वो मेरे नजदीक मुझको जाफरान से भी ज्यादा बेहतर है. रोजेदार ये तीसों दिन की बहुत ही कठिन इबादत और सब्र वाली इबादत कर लिया तो अब रिजल्ट का दिन आया, नतीजे दिन आया तो वो दिन है ईद का. इसलिए ईद का मतलब होता है खुशी का, की याब रिजल्ट जब मिलता है. तब आदमी खुश होगा, इसलिए रोजा रखा जाता है और रमजान में इबादत की जाती है."