राजनांदगांवः राजनांदगांव शहर के प्रसिद्ध मूर्तिकार वासुदेव कलेश्वर के परिवार की पांचवी पीढ़ी भी मूर्तिकारी के कार्य में जुटी हुई है. पीढ़ी-दर-पीढ़ी (generation to generation) चले आ रहे इस कार्य को परिवार (Family) के लोग एक दूसरे को देख कर ही सीख रहे हैं.
राजनंदगांव शहर के हमाल पारा शनि मंदिर रोड निवासी 80 वर्षीय मूर्तिकार वासुदेव कालेश्वर का परिवार विगत लगभग 100 वर्षों से भी अधिक समय से रह रहा है. यह परिवार भगवान गणेश, दुर्गा सहित अन्य प्रतिमाओं के निर्माण में लगा हुआ है.
मूर्तिकार वासुदेव ने यह कला अपने पिता को देख कर सीखी थी. इसके बाद उनके पुत्र ने पिता का हाथ बंटाते हुए यह हुनर सीख लिया. अब उनके पुत्र यानि वासुदेव के पौत्र भी प्रतिमा निर्माण में लगे हुए हैं. परिवार की इस परंपरा (tradition) को वासुदेव की बहू भी कायम रखे हुई है और वह भी प्रतिमा निर्माण (image making) करती है. मूर्तिकार वासुदेव की बहू तेजस्विनी कालेश्वर का कहना है कि परिवार के सभी लोग एक दूसरे को देखकर प्रतिमा निर्माण सीख गए हैं.
मूर्ति निर्माण के कारोबार से चल रही है जीविका
मूर्तिकार वासुदेव के परिवार के लगभग 6-7 सदस्य मिल कर वर्ष भर में लगभग 300 प्रतिमा तैयार कर लेते हैं. जिनमें भगवान श्री कृष्ण, भगवान श्री गणेश, मां काली आदि शक्ति मां दुर्गा, मां सरस्वती की प्रतिमा सहित अन्य प्रतिमाएं शामिल हैं. इनका परिवार वर्ष भर प्रतिमा निर्माण का ही कार्य करता है, जिससे परिवार की जीविका चलती है. मूर्तिकार वासुदेव के परिवार में अब तक किसी को हाथ पकड़ कर मूर्तिकारी नहीं सिखाई गई. पत्नी, बेटे, बहू और अब पौत्र ने देख कर ही काम सीखा है. वासुदेव के परिवार को यह कला उनके विरासत में मिली है जिसे वे पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाते चले गए हैं.