रायपुर : 21 सितंबर को हर साल विश्व कृतज्ञता दिवस (world gratitude day) मनाया जाता है. यह दिन दूसरों का अपने लिये किये गये कृत्य के लिए कृतज्ञ होने का दिन है. उनसब को धन्यवाद देने का दिन है. हर व्यक्ति के जीवन में ऐसे लोग जरूर मिलते हैं, जो उन्हें एक नया मुकाम पाने में मदद करते हैं. उन सबके प्रति आज कृतज्ञता जताने का दिन है. अगर हम समय निकालकर पीछे जाएं और उन सभी चीजों के बारे में सोचें, जिनके लिए हम आभारी हैं तो यह न केवल हमें विनम्र (Polite) बनाती हैं बल्कि यह हमारी खुशी और मानसिक स्वास्थ्य (happiness and mental health) को बेहतर बनाने में भी मदद करती है. कृतज्ञता एक शक्तिशाली भावना होने के नाते हमें कई लाभ भी प्रदान करती है. यह भावना हमें सकारात्मक ऊर्जा से लबरेज कर देती है, जिससे फिर हम अनगिनत नये कृत्य कर पाने में सक्षम होते हैं.
विश्व कृतज्ञता दिवस संयुक्त राष्ट्रीय अवकाश का दिन है. साल 1965 में हवाई में संयुक्त राष्ट्र की इमारत के ध्यान केंद्र में एक धन्यवाद डिनर आयोजित किया गया था. वहां एक मेडिटेशन शिक्षक और संयुक्त राष्ट्र मेडिटेशन ग्रुप के निदेशक श्री चिम्नोय ने दुनिया भर के लोगों का आभार व्यक्त करने के लिए एक विशेष अवकाश रखने का सुझाव दिया. उस दौरान वहां मौजूद लोगों ने 21 सितंबर को अपने देश में आभार बैठक करने का वादा किया. यह साल 1977 था, जब चिम्नोय के काम को पहचान मिली. संयुक्त राष्ट्र ध्यान मेडिटेशन ग्रुप ने विश्व कृतज्ञता दिवस मनाने का आधिकारिक प्रस्ताव दिया, तब से विश्व कृतज्ञता दिवस एक वार्षिक अंतरराष्ट्रीय स्मरणोत्सव के रूप में मनाया जाता है.
मनुष्य का कर्तव्य होता है कि वह जिससे अपना कोई प्रयोजन सिद्ध करे, उसके उपकारों के बदले उसके प्रति कृतज्ञ हो, कृतज्ञता व्यक्त करे. कृतज्ञ होना मनुष्य का एक श्रेष्ठ गुण होता है. जबकि किसी के द्वारा हित साध लेने के बाद भी उसके प्रति कृतज्ञ न होना अमानवीय और निन्दित कर्म होता है. यदि दूसरे मनुष्य व ईश्वर हम पर उपकार व सहयोग न करें तो हममें से किसी का भी जीवन यापन नहीं हो सकता.
जिस प्रकार से हम दूसरों से सहयोग व सहायता लेते हैं, उसी प्रकार से हमारा भी कर्तव्य है कि हममें जो बौद्धिक व शारीरिक शक्ति व सामर्थ्य है, उससे हम भी निर्बलों व सहायता की अपेक्षा रखने वालों की सहायता करें. जब हम अपने जीवन पर विचार करते हैं तो पता चलता है कि हमारा यह जीवन परमात्मा व माता-पिता से मुख्य रूप से हमें प्राप्त हुआ है. यदि सृष्टि में परमात्मा तथा माता-पिता आदि न होते व परोपकार आदि के कार्य न करते तो हमारी आत्मा का अस्तित्व तो जरूर होता, लेकिन हमें मनुष्य होने के जो सुख प्राप्त हो रहे हैं, वह बिल्कुल न मिल पाते. इसलिए हमें सबसे पहले ईश्वर फिर अपने माता-पिता के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए. तभी हम दुनिया वालों के प्रति कृतज्ञता जता सकते हैं.