रायपुर: वैसे तो हर किसी को पता है कि ऑक्सीजन का हमारे जीवन में क्या महत्व है. बीते दिनों कोरोना के कारण देशभर के अस्पतालों में हुई ऑक्सीजन की किल्लत (Oxygen shortage in hospitals across the country) से ना जाने कितने लोगों की जान चली गई. इसी बीच ऐसी भी खबरें आई कि कुछ लोगों ने ऑक्सीजन की कमी (lack of oxygen) को दूर करने के लिए पेड़ों को ही अपना बसेरा बना लिया है. इससे पता चलता है कि पेड़ों का हमारे जीवन में क्या महत्व है. 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस है. विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) के अवसर पर पर्यावरण को बचाने के लिए देशभर के साथ ही छत्तीसगढ़ में भी कई तरह के सरकारी कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. जिसमें लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जाता है. लेकिन राजधानी रायपुर में पर्यावरण को लेकर किसी तरह की जागरूकता दिखाई नहीं दे रही है.
राजधानी रायपुर सहित पूरे विश्व में 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) मनाया जाएगा. इस दिन भले ही पर्यावरण दिवस का आयोजन हो रहा है. लेकिन प्रदेश की राजधानी रायपुर के चौक-चौराहों और सड़कों पर लगे सैकड़ों साल पुराने पेड़ों को बर्बाद किया जा रहा है. पुरानी बस्ती, लिली चौक, OCM चौक और सिविल लाइन में कई सौ साल पुराने पीपल और बरगद के पेड़ों पर पेंट लगाकर रंग रोगन किया जा रहा है. जिससे पेड़ों की सुंदरता खराब होने के साथ ही आने वाले समय में पेड़ सूख जाएंगे. जो कहीं ना कहीं आने वाली पीढ़ी के लिए दुखदाई साबित होगी.
पेड़ों पर केमिकल युक्त पेंटिंग
विश्व पर्यावरण दिवस के दिन लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के साथ ही उन्हें प्रकृति को संतुलित रखने के लिए प्रेरित किया जाता है. जिससे पर्यावरण संतुलित हो सके. लेकिन राजधानी रायपुर में पर्यावरण बचाने को लेकर किसी तरह की कोई जागरूकता नजर नहीं आती. राजधानी के चौक चौराहों और सड़कों पर लगे पेड़ों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां के लोग पर्यावरण को लेकर कितने सतर्क और सजग है. विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर शासन प्रशासन की ओर से प्रकृति और पर्यावरण से जुड़े विषय पर पेंटिंग प्रतियोगिता और सेमिनार का आयोजन किया जाता है. जिससे लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जा सके, लेकिन राजधानी के लोग खाली दीवारों को छोड़कर सजीव पेड़ों को ही केनवास बना रहे हैं.
पेड़ों पर पेंटिंग के साथ ही हेलोजन लाइट से भी हो रहा नुकसान
पर्यावरण को लेकर ETV भारत ने कुछ स्थानीय लोगों से बात की. यहां के स्थानीय प्रमोद तिवारी बताते हैं कि उनके बुजुर्गों ने बताया कि चौक पर लगे पीपल और वटवृक्ष 4 सौ से साढ़े 4 सौ साल पुराने है. उन्होंने कहा कि यहां से गुजरने वाला हर कोई यहां आराम कर, दो मिनट बैठकर ही आगे बढ़ता है. लेकिन शहर को सुंदर और स्वच्छ बनाने की दिशा में इन पेड़ों पर पेंटिंग और रंग रोगन करने के साथ ही हाई वोल्टेज के हेलोजन लाइट (halogen lights) भी लगा दिए गए है जिससे पेड़ों को नुकसान तो हो रहा है. इस के साथ ही चिड़ियों के घोसले भी खराब हो रहे हैं.
रायपुर में पर्यावरण के साथ खिलवाड़
दाऊ महोबिया और प्रदीप वर्मा ने बताया कि इस समय जब हमें पर्यावरण और पेड़ों को सुरक्षित रखना चाहिए, हम इसके उलट काम कर रहे हैं. हरे-भरे पेड़ों को रंग-रोगन कर उन्हें नष्ट किया जा रहा है. केमिकलयुक्त रंगों से ये पेड़ अब धीरे-धीरे सूखने लगेंगे.
बस्तर से माउंट एवरेस्ट तक का सफर, सुनिए नैना की कहानी उनकी मां की जुबानी
'पर्यावरण के प्रति नहीं कोई गंभीर'
पर्यावरण को लेकर वन्य एवं प्रकृति प्रेमी नितिन सिंघवी का कहना है की पर्यावरण को लेकर छत्तीसगढ़ में कोई भी अधिकारी या विभाग गंभीर नहीं है. सभी सिर्फ और सिर्फ खानापूर्ति में लगे हुए है. पर्यावरण दिवस के दिन प्रकृति से प्रेम के नारे लगाने के साथ ही ड्राइंग और पेंटिंग प्रतियोगिता का आयोजन कर पर्यावरण दिवस को मनाते हैं. सिंघवी ने कहा कि पहले क्लाइमेट चेंज होता था लेकिन अब क्लाइमेट की क्राइसिस होने लगी है. उन्होंने कहा कि कोयले का उपयोग कम करना होगा. साथ ही पवन ऊर्जा और सोलर उर्जा का ज्यादा उपयोग करना होगा. सिंघवी ने बताया कि सरकार अगर अभी से सचेत नहीं हुई तो आगे GDP का 10 प्रतिशत लोगों के स्वास्थ्य के लिए खर्च करना पड़ेगा. ऐसे में विभाग और अधिकारी को पर्यावरण को लेकर गहन अध्ययन और चिंतन करने के साथ लोगों को जागरूक करने की जरूरत है.
पर्यावरण को संतुलित रखने के लिए हमें कई तरह की बातों को ध्यान में रखना पड़ेगा. तभी पर्यावरण को संतुलित रखा जा सकता है. 5 जून को भले ही पर्यावरण दिवस का आयोजन हो रहा है. लेकिन वर्तमान परिदृश्य में विश्व पर्यावरण दिवस शासकीय आयोजन का एक हिस्सा बनकर रह गया है. लोग प्रकृति और पर्यावरण को धीरे-धीरे भूलते जा रहे हैं.