रायपुर: अमर शहीद वीर नारायण सिंह का बलिदान दिवस 10 दिसंबर को मनाया जाता है. उन्होंने भोजन के अधिकार की लड़ाई लड़ी थी. अन्न के गोदाम से जरूरत के हिसाब से अन्न निकालकर गरीबों और भूखों में बांटा था. आजादी के पहले जमींदार ही अन्न को गोदामों में जमा करके रखते थे. शहीद वीर नारायण सिंह ने जमाखोरी के खिलाफ आवाज उठाई थी. गोदामों से अन्न निकालना लूटना नहीं, बल्कि लोगों को भोजन के अधिकार दिलाना था. लेकिन आज उनकी शहादत के 163 साल बाद भी सम्मान किताबों में नहीं मिल सका है. स्कूली पाठ्यक्रमों में शहीद वीर नारायण सिंह को अनाज लूटने वाला बताया गया है.
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पाठ्यक्रमों में नहीं पढ़ाया जा रहा सही इतिहास
इतिहासकारों का कहना है कि छत्तीसगढ़ के वीर सपूत शहीद वीर नारायण सिंह आज भी किताबों में अनाज लूटने वाला बताया जा रहा है. इसके अलावा भी उनकी वीरता की कई गाथाएं हैं, जिसमें उन्होंने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे. फिर भी उसे नहीं पढ़ाया जाता है.
जय स्तंभ चौक पर फांसी देने का इतिहास गलत
इतिहासकार रामेंद्र नाथ मिश्र बताते हैं कि शहीद वीर नारायण सिंह पर उन्होंने कई सारी खोज की हैं. उन्होंने ही सबसे पहले उनके परिवार का पता लगाया था. लंबे समय से सरकारों से मांग करते आए हैं कि शहीद वीर नारायण सिंह को इतिहास में सम्मान जनक जगह दी जाए. लेकिन वो अब तक नहीं हो पाया है. उनके विषय में कई भ्रामक जानकारियां भी हैं, इतिहासकार रामेंद्र नाथ मिश्र बताते हैं कि इतिहास में बताया गया है कि शहीद वीर नारायण सिंह को जय स्तंभ चौक पर फांसी दी गई थी. उसके बाद उनके शव को तोप से उड़ा दिया गया था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ था. उन्हें पुलिस कारागार में फांसी दी गई थी.
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वीरता के किस्से इतिहास में दर्ज नहीं
रिटायर डीआईजी केके अग्रवाल ने बताया कि शहीद वीर नारायण सिंह हमारे प्रदेश के ही नहीं बल्कि पूरे देश के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं. राज्य सरकार उनके नाम से कई योजनाएं भी चला रही है. उनके नाम से नया रायपुर में इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम भी है. लेकिन आजादी के इस नायक के वीरता के किस्से इतिहास में दर्ज नहीं है. स्कूली पाठ्यक्रम में इसे शामिल करना चाहिए. लंबे समय से मांग भी की जा रही है. अबतक किसी सरकार ने ध्यान नहीं दिया. शहीद वीर नारायण सिंह के बारे में लोगों को केवल यही पता है कि वे गोदामों से अनाज लूटा करते थे, लेकिन ये सच्चाई नहीं है.