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दूल्हा- दुल्हन की रस्म: फूलों से सजी ट्रे में अंगूठी छिपाने की क्यों निभाई जाती है परंपरा - tradition of hiding ring

शादी के बाद दूल्हा और दुल्हन (Bride and Groom) के बीच बहुत सारी रस्में निभाई जाती है. जिनमें प्रमुख है, कंकण मौर, सतनारायण की कथा, भजन, कीर्तन और अंगूठी को ढूंढना, कौड़ी ढूंढना, सिक्का ढूंढना शामिल है. तो आज हम अंगूठी को ढूंढने वाली रस्म की.

दूल्हा- दुल्हन की रस्म
दूल्हा- दुल्हन की रस्म
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Published : Dec 17, 2021, 12:02 PM IST

रायपुर: शादी के बाद दूल्हा और दुल्हन के बीच बहुत सारी रस्में निभाई जाती है. जिसमें कंकण मौर, सतनारायण की कथा, भजन, कीर्तन और अंगूठी को ढूंढना, कौड़ी ढूंढना, सिक्का ढूंढना शामिल है. जिसमें से एक होता है. अंगूठी को फूलों से सजी एक ट्रे में छुपाया जाता है. जो दूल्हा और दुल्हन को खोजने के लिए परंपरा है. जिसे हंसते मुस्कुराते उस अंगूठी को दूल्हा और दुल्हन ढूंढते हैं. फूलों से सजी ट्रे में छुपी अंगूठी को जो पहले ढूंढ लेता है वह विजयी होता है.

दूल्हा और दूल्हन के बीच होता है अंगूठी तलाशने का मुकाबला

स्नानादि से निवृत्त होने के बाद नव जोड़ी को अनेक रस्मों का पालन करना होता है. जिसमें अंगूठी को फूलों से सजी एक ट्रे में छुपाया जाता है. भिन्न-भिन्न रंगों के फूलों से ट्रे सजाई जाती है और उसमें अंगूठी को छुपा दिया जाता है. दूल्हा-दुल्हन दोनों ही इसे खोजने के लिए उत्सुक रहते हैं. दोनों ही हाथ डालकर ट्रे में से अंगूठी को ढूंढने का प्रयास करते हैं. इस समय नजदीकी रिश्तेदार और सगे संबंधी दो पक्षो में बंट जाते हैं. कुछ लोग दुल्हन का समर्थन करते हैं और कुछ लोग दूल्हे का समर्थन करते हैं. यह आनंद उत्सव और महोत्सव के रूप में बदल जाता है. यह परंपरा आदि काल से चली आ रही है. इसके माध्यम से नव दुल्हन को घर में नए परिवेश में और नए माहौल में एक अच्छे ढंग से जगह मिल जाती है. इस दरमियान हंसी मजाक और मनोविनोद होता है.

सजी ट्रे में अंगूठी छिपाने की क्यों निभाई जाती है परंपरा

शादी की रस्म को छोड़ कलेक्ट्रेट पहुंचा निर्दलीय प्रत्याशी

इसी तरह सिंदूर आदि से सुसज्जित जल की परात में कौड़ी आदि को रखा जाता है. दूल्हा और दुल्हन में यह प्रतिस्पर्धा होती है कि कौन अधिक मात्रा में कौड़िया निकाल पाता है. इसी तरह जल से भरे हुए परात में सिक्का डाला जाता है और यह प्रतिस्पर्धा की जाती है कि कौन उस सिक्के को पहले निकाल पाता है. इस तरह से हंसी मजाक और सरल वातावरण के बीच नई दुल्हन नए परिवेश में अपनी ननंद, देवर और देवरानी अन्य रिश्तेदारों के साथ सामंजस्य समन्वय बनाने के लिए तैयार हो पाती है. इसके माध्यम से नव दुल्हन अपने नजदीकी रिश्तेदारों को जान और समझ पाती है. यह एक मनोविनोद आनंद और क्रीड़ा की प्रक्रिया है. इसमें प्राय घर के सभी सदस्य हल्के-फुल्के माहौल में सहज रूप से भाग लेते हैं.

कुलदेवी की होती है पूजा

इसके बाद घर में सत्यनारायण की कथा कीर्तन और कई जगह हवन यज्ञ का भी आयोजन किया जाता है. इसके द्वारा नवविवाहिता दुल्हन को घर की मान्य परंपराओं घर के कुलदेवी और कुल देवता के बारे में जानकारी मिल पाती है. वह धीरे-धीरे उन मान्य परंपराओं अपने आप को सहज ही जोड़ पाती है.

रायपुर: शादी के बाद दूल्हा और दुल्हन के बीच बहुत सारी रस्में निभाई जाती है. जिसमें कंकण मौर, सतनारायण की कथा, भजन, कीर्तन और अंगूठी को ढूंढना, कौड़ी ढूंढना, सिक्का ढूंढना शामिल है. जिसमें से एक होता है. अंगूठी को फूलों से सजी एक ट्रे में छुपाया जाता है. जो दूल्हा और दुल्हन को खोजने के लिए परंपरा है. जिसे हंसते मुस्कुराते उस अंगूठी को दूल्हा और दुल्हन ढूंढते हैं. फूलों से सजी ट्रे में छुपी अंगूठी को जो पहले ढूंढ लेता है वह विजयी होता है.

दूल्हा और दूल्हन के बीच होता है अंगूठी तलाशने का मुकाबला

स्नानादि से निवृत्त होने के बाद नव जोड़ी को अनेक रस्मों का पालन करना होता है. जिसमें अंगूठी को फूलों से सजी एक ट्रे में छुपाया जाता है. भिन्न-भिन्न रंगों के फूलों से ट्रे सजाई जाती है और उसमें अंगूठी को छुपा दिया जाता है. दूल्हा-दुल्हन दोनों ही इसे खोजने के लिए उत्सुक रहते हैं. दोनों ही हाथ डालकर ट्रे में से अंगूठी को ढूंढने का प्रयास करते हैं. इस समय नजदीकी रिश्तेदार और सगे संबंधी दो पक्षो में बंट जाते हैं. कुछ लोग दुल्हन का समर्थन करते हैं और कुछ लोग दूल्हे का समर्थन करते हैं. यह आनंद उत्सव और महोत्सव के रूप में बदल जाता है. यह परंपरा आदि काल से चली आ रही है. इसके माध्यम से नव दुल्हन को घर में नए परिवेश में और नए माहौल में एक अच्छे ढंग से जगह मिल जाती है. इस दरमियान हंसी मजाक और मनोविनोद होता है.

सजी ट्रे में अंगूठी छिपाने की क्यों निभाई जाती है परंपरा

शादी की रस्म को छोड़ कलेक्ट्रेट पहुंचा निर्दलीय प्रत्याशी

इसी तरह सिंदूर आदि से सुसज्जित जल की परात में कौड़ी आदि को रखा जाता है. दूल्हा और दुल्हन में यह प्रतिस्पर्धा होती है कि कौन अधिक मात्रा में कौड़िया निकाल पाता है. इसी तरह जल से भरे हुए परात में सिक्का डाला जाता है और यह प्रतिस्पर्धा की जाती है कि कौन उस सिक्के को पहले निकाल पाता है. इस तरह से हंसी मजाक और सरल वातावरण के बीच नई दुल्हन नए परिवेश में अपनी ननंद, देवर और देवरानी अन्य रिश्तेदारों के साथ सामंजस्य समन्वय बनाने के लिए तैयार हो पाती है. इसके माध्यम से नव दुल्हन अपने नजदीकी रिश्तेदारों को जान और समझ पाती है. यह एक मनोविनोद आनंद और क्रीड़ा की प्रक्रिया है. इसमें प्राय घर के सभी सदस्य हल्के-फुल्के माहौल में सहज रूप से भाग लेते हैं.

कुलदेवी की होती है पूजा

इसके बाद घर में सत्यनारायण की कथा कीर्तन और कई जगह हवन यज्ञ का भी आयोजन किया जाता है. इसके द्वारा नवविवाहिता दुल्हन को घर की मान्य परंपराओं घर के कुलदेवी और कुल देवता के बारे में जानकारी मिल पाती है. वह धीरे-धीरे उन मान्य परंपराओं अपने आप को सहज ही जोड़ पाती है.

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