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सुशील आनंद शुक्ला ने बिलकिस बानो मामले पर पुरंदेश्वरी को घेरा - Gujarat riots

गुजरात के बिलकिस बानो गैंगरेप मामले में उम्रकैद की सजा पाए 11 दोषियों की रिहाई के फैसले पर सवाल उठ रहे हैं. छत्तीसगढ़ कांग्रेस संचार विभाग अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने गुजरात सरकार के इस फैसले पर सवाल खड़े किए हैं और सवाल किया कि भाजपा की छत्तीसगढ़ प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी, जो खुद भी एक महिला है, वे बतायें कि अपनी पार्टी की गुजरात सरकार के इस अमानवीय कदम से कितना सहमत है?

Gujarat Bilkis Bano case
सुशील आनंद शुक्ला
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Published : Aug 17, 2022, 11:20 PM IST

रायपुर: गुजरात के 2002 दंगे के बिलकिस बानो मामले में सभी 11 कैदियों को रेमिशन पॉलिसी के तहत जेल से रिहा (Gujarat 2022 riots) कर दिया गया. इस रिहाई के बाद कांग्रेस ने गुजरात सरकार पर जमकर हमला बोला है. कांग्रेस का कहना है कि "एक गर्भवती महिला के साथ सामूहिक दुराचार और उसकी तीन वर्षीय बच्ची और 7 परिजनों की हत्या के आरोप में सजा काट रहे 11 अपराधियों को रिहा कर भाजपा की गुजरात सरकार ने अमानुषता की सारी सीमाओं को तोड़ दिया है."

भाजपा की छत्तीसगढ़ प्रभारी डी पुरंदेश्वरी से पूछे सवाल: छत्तीसगढ़ कांग्रेस संचार विभाग अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि "भाजपा की छत्तीसगढ़ प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी, जो खुद भी एक महिला है, वे बतायें कि अपनी पार्टी की गुजरात सरकार के इस अमानवीय कदम से कितना सहमत है? गुजरात सरकार का यह कदम भाजपा के क्रूर और महिला विरोधी मानसिकता को (Sushil Anand Shukla asked question to Purandeshwari) प्रदर्शित करता है. भाजपा अपनी विचारधारा को पोषित करने क्रूर से क्रूरतम स्तर तक गिर सकती है. गुजरात सरकार के इस कदम से पूरी मानवता शर्मसार हुई है."
यह भी पढ़ें: कांग्रेस का पीएम से सवाल, क्या बिल्कीस बानो के दोषियों की रिहाई पर केंद्र से अनुमति ली गई


"फैसला पूर्ण रूप से गुजरात सरकार का है, न कि सुप्रीम कोर्ट का": छत्तीसगढ़ कांग्रेस संचार विभाग अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि "गुजरात सरकार का दावा है कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार अभियुक्तों को रिहा किया है. जबकि माननीय सर्वोच्च अदालत ने गुजरात सरकार को 3 महीने के भीतर रिहाई पर नियमानुसार विचार करने को कहा था न कि रिहा करना. इसलिए बलात्कार एवं हत्या के अभियुक्तों को रिहा करने का फैसला पूर्ण रूप से गुजरात सरकार का है, न कि सुप्रीम कोर्ट का. गुजरात सरकार ने दावा किया है कि अभियुक्तों के क्षमा एवं रिहाई का निर्णय 1992 की नीति के तहत लिया गया है. लेकिन सच्चाई ये है कि 8 मई 2013 को गुजरात सरकार द्वारा यह नीति समाप्त कर दी गई थी. 2014 के केंद्रीय गृह मंत्रालय के दिशा निर्देशों के अनुसार भी हत्या, सामूहिक बलात्कार जैसे मामलों में अभियुक्तों की क्षमा या रिहाई पर रोक लगा दी गई है."

"राज्य सरकार अभियुक्तों की रिहाई या क्षमा का निर्णय नहीं ले सकती": छत्तीसगढ़ कांग्रेस संचार विभाग अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि "दूसरा महत्वपूर्ण कानूनी तथ्य यह है कि ऐसे किसी भी अपराध, जिसकी जांच केंद्रीय एजेंसी द्वारा की गई हो, जैसा इस प्रकरण में सीबीआई द्वारा जांच की गई, तो राज्य सरकार अभियुक्तों की रिहाई या क्षमा का निर्णय नहीं ले सकती. सीआरपीसी की धारा 435 के तहत राज्य सरकार को केंद्र सरकार से अनुमति लेनी होती है. ऐसे में केंद्रीय गृह मंत्री एवं प्रधानमंत्री बतायें कि क्या गुजरात सरकार ने रिहाई देते समय केंद्र सरकार की अनुमति ली थी? अगर राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से अनुमति नहीं ली थी, तो क्या गुजरात सरकार के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी?"
यह भी पढ़ें: बिल्किस केस में दोषियों की रिहाई पर राहुल गांधी का प्रधानमंत्री से सवाल


ये था पूरा मामला: 27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के कोच को जला दिया गया था. इस ट्रेन से कारसेवक अयोध्या से लौट रहे थे. इससे कोच में बैठे 59 कारसेवकों की मौत हो गई थी. इसके बाद गुजरात में दंगे भड़क गए थे. दंगों की आग से बचने के लिए बिल्किस बानोअपनी बच्ची और परिवार के साथ गांव छोड़कर चली गई थीं. बिलकिस बानो और उनका परिवार जहां छिपा था, वहां 3 मार्च 2002 को 20-30 लोगों की भीड़ ने तलवार और लाठियों से हमला कर दिया. भीड़ ने बिलकिस बानो के साथ बलात्कार किया. उस समय बिलकिस 5 महीने की गर्भवती थीं. इतना ही नहीं, उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या भी कर दी थी. बाकी 6 सदस्य वहां से भाग गए थे.

रायपुर: गुजरात के 2002 दंगे के बिलकिस बानो मामले में सभी 11 कैदियों को रेमिशन पॉलिसी के तहत जेल से रिहा (Gujarat 2022 riots) कर दिया गया. इस रिहाई के बाद कांग्रेस ने गुजरात सरकार पर जमकर हमला बोला है. कांग्रेस का कहना है कि "एक गर्भवती महिला के साथ सामूहिक दुराचार और उसकी तीन वर्षीय बच्ची और 7 परिजनों की हत्या के आरोप में सजा काट रहे 11 अपराधियों को रिहा कर भाजपा की गुजरात सरकार ने अमानुषता की सारी सीमाओं को तोड़ दिया है."

भाजपा की छत्तीसगढ़ प्रभारी डी पुरंदेश्वरी से पूछे सवाल: छत्तीसगढ़ कांग्रेस संचार विभाग अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि "भाजपा की छत्तीसगढ़ प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी, जो खुद भी एक महिला है, वे बतायें कि अपनी पार्टी की गुजरात सरकार के इस अमानवीय कदम से कितना सहमत है? गुजरात सरकार का यह कदम भाजपा के क्रूर और महिला विरोधी मानसिकता को (Sushil Anand Shukla asked question to Purandeshwari) प्रदर्शित करता है. भाजपा अपनी विचारधारा को पोषित करने क्रूर से क्रूरतम स्तर तक गिर सकती है. गुजरात सरकार के इस कदम से पूरी मानवता शर्मसार हुई है."
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"फैसला पूर्ण रूप से गुजरात सरकार का है, न कि सुप्रीम कोर्ट का": छत्तीसगढ़ कांग्रेस संचार विभाग अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि "गुजरात सरकार का दावा है कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार अभियुक्तों को रिहा किया है. जबकि माननीय सर्वोच्च अदालत ने गुजरात सरकार को 3 महीने के भीतर रिहाई पर नियमानुसार विचार करने को कहा था न कि रिहा करना. इसलिए बलात्कार एवं हत्या के अभियुक्तों को रिहा करने का फैसला पूर्ण रूप से गुजरात सरकार का है, न कि सुप्रीम कोर्ट का. गुजरात सरकार ने दावा किया है कि अभियुक्तों के क्षमा एवं रिहाई का निर्णय 1992 की नीति के तहत लिया गया है. लेकिन सच्चाई ये है कि 8 मई 2013 को गुजरात सरकार द्वारा यह नीति समाप्त कर दी गई थी. 2014 के केंद्रीय गृह मंत्रालय के दिशा निर्देशों के अनुसार भी हत्या, सामूहिक बलात्कार जैसे मामलों में अभियुक्तों की क्षमा या रिहाई पर रोक लगा दी गई है."

"राज्य सरकार अभियुक्तों की रिहाई या क्षमा का निर्णय नहीं ले सकती": छत्तीसगढ़ कांग्रेस संचार विभाग अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि "दूसरा महत्वपूर्ण कानूनी तथ्य यह है कि ऐसे किसी भी अपराध, जिसकी जांच केंद्रीय एजेंसी द्वारा की गई हो, जैसा इस प्रकरण में सीबीआई द्वारा जांच की गई, तो राज्य सरकार अभियुक्तों की रिहाई या क्षमा का निर्णय नहीं ले सकती. सीआरपीसी की धारा 435 के तहत राज्य सरकार को केंद्र सरकार से अनुमति लेनी होती है. ऐसे में केंद्रीय गृह मंत्री एवं प्रधानमंत्री बतायें कि क्या गुजरात सरकार ने रिहाई देते समय केंद्र सरकार की अनुमति ली थी? अगर राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से अनुमति नहीं ली थी, तो क्या गुजरात सरकार के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी?"
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ये था पूरा मामला: 27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के कोच को जला दिया गया था. इस ट्रेन से कारसेवक अयोध्या से लौट रहे थे. इससे कोच में बैठे 59 कारसेवकों की मौत हो गई थी. इसके बाद गुजरात में दंगे भड़क गए थे. दंगों की आग से बचने के लिए बिल्किस बानोअपनी बच्ची और परिवार के साथ गांव छोड़कर चली गई थीं. बिलकिस बानो और उनका परिवार जहां छिपा था, वहां 3 मार्च 2002 को 20-30 लोगों की भीड़ ने तलवार और लाठियों से हमला कर दिया. भीड़ ने बिलकिस बानो के साथ बलात्कार किया. उस समय बिलकिस 5 महीने की गर्भवती थीं. इतना ही नहीं, उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या भी कर दी थी. बाकी 6 सदस्य वहां से भाग गए थे.

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