रायपुर: महाशिवरात्रि के दिन भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती का विवाह हुआ था. इसलिए इसे महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है. महाशिवरात्रि के दिन मंदिरों में भक्तों की काफी भीड़ रहती है और लोग व्रत उपवास रखकर महाशिवरात्रि के इस पर्व को बड़े धूमधाम से मनाते हैं.
"साल का पहला शनि प्रदोष व्रत": ज्योतिष और वास्तुविद पंडित विनीत शर्मा ने बताया कि "साल का पहला शनि प्रदोष व्रत 18 फरवरी को मनाया जाएगा. इस दिन महाशिवरात्रि का पर्व भी पड़ रहा है. इसी दिन माता पार्वती का विवाह भगवान शिव के साथ हुआ था. प्रदोष काल 17 फरवरी शुक्रवार की रात ग्यारह बज कर छत्तीस मिनट से लेकर 18 फरवरी शनिवार के दिन रात आठ बजकर दो मिनट तक रहेगी. निशीथ काल का समय 18 फरवरी शनिवार की रात ग्यारह बज कर बावन मिनट से मध्य रात्रि बारह बज कर ब्यालीस मिनट तक रहेगी."
"भगवान शिव न्यायाधीश शनि देव के गुरु हैं": ज्योतिष और वास्तुविद पंडित विनीत शर्मा ने बताया कि "भगवान शिव न्यायाधीश शनि देव के गुरु हैं. शनिवार को प्रदोष व्रत होने से शिव के साथ ही शनि का भी आशीर्वाद मिलता है. संतान प्राप्ति की कामना के लिए शनि त्रयोदशी का व्रत विशेष रूप से सौभाग्यशाली माना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार शनि प्रदोष व्रत के प्रभाव से निसंतान दंपत्ति को पुत्र की प्राप्ति होती है. ऐसा भी माना जाता है कि भगवान शिव ने प्रदोष तिथि के दिन ही सृष्टि का निर्माण किया था और इसी दिन विलय भी करेंगे."
ऐसे करें भोले बाबा का अभिषेक: ज्योतिष और वास्तुविद पंडित विनीत शर्मा ने बताया कि "शनि प्रदोष व्रत के दिन दशरथ कृत शनि स्त्रोत का पाठ करने पर जीवन में शनि के प्रकोप से बचा जा सकता है. इस दिन शिवलिंग पर 108 बेलपत्र और पीपल के पत्ते अर्पित करें गंगाजल में काले तिल मिलाकर भोले बाबा का अभिषेक करें. ऐसी मान्यता है कि इस विधि से पूजा करने वालों को संपूर्ण धनधान्य समस्त दुखों से छुटकारा मिलता है."
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भगवान शंकर की इस विधि से करें पूजा: ज्योतिष और वास्तुविद पंडित विनीत शर्मा ने बताया कि "त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल के समय भगवान शंकर की पूजा का विधान है. त्रयोदशी की रात के पहले पहर में जो व्यक्ति किसी भेंट के साथ शिव प्रतिमा के दर्शन करता है. उसे जीवन में सुख ही सुख मिलता है. अतः आज के दिन भगवान शिव के दर्शन अवश्य करने चाहिए. वैसे तो यह वार के हिसाब से जिस दिन पड़ता है. उसी के अनुसार इसका नामकरण होता है, जैसे की शनिवार का दिन होने के कारण इसका नाम शनि प्रदोष पड़ा. शनि प्रदोष व्रत और शनि प्रदोष के दिन भगवान शंकर के साथ ही शनिदेव की पूजा का विशेष महत्व है."