रायपुर/हैदराबाद: हिन्दू धर्म के लिए शाकंभरी पौष पूर्णिमा एक महत्वपूर्ण दिन है Shakambhari Devi Jayanti 2023. इस दिन मां आदिशक्ति जगदम्बा ने शाकंभरी देवी के रूप में सौम्य अवतार लिया था. ऐसा माना जाता है कि देवी भगवती ने अकाल और पृथ्वी पर गंभीर खाद्य संकट को कम करने के लिए शाकंभरी के रूप में अवतार लिया था. जैसा उनके नाम से ज्ञात होता है जिसका अर्थ है - ‘शाक’ जिसका अर्थ है ‘सब्जी और शाकाहारी भोजन’ और ‘भारी’ का अर्थ है ‘धारक’. इसलिए सब्जियों, फलों और हरी पत्तियों की देवी के रूप में भी जाना जाता है और उन्हें फलों और सब्जियों के हरे परिवेश के साथ चित्रित किया जाता है shakambhari devi jayanti date. शाकंभरी देवी को चार भुजाओं और कही पर अष्टभुजाओं वाली के रुप में भी दर्शाया गया है. मां शाकंभरी को ही रक्तदंतिका, छिन्नमस्तिका, भीमादेवी, भ्रामरी और श्री कनकदुर्गा कहा जाता है.
शाकंभरी देवी के पीठ : मां शाकंभरी के देश में अनेक पीठ हैं. लेकिन शक्तिपीठ केवल एक ही है जो सहारनपुर के पर्वतीय हिस्से में है. यह मंदिर उत्तर भारत के सबसे अधिक देखे जाने वाले मंदिरों में से एक है shakambhari devi jayanti date. उत्तर भारत में वैष्णो देवी के बाद दूसरा सबसे प्रसिद्ध मंदिर है. उत्तर भारत की नौ देवियों में शाकंभरी देवी का नौंवा और अंतिम दर्शन माना जाता है. नौ देवियों मे मां शाकंभरी देवी का स्वरूप सर्वाधिक करूणामय और ममतामयी मां का है.
कब है शाकंभरी जयंती : साल 2023 में मां शाकंभरी की जयंती 6 जनवरी को है. जो 7 जनवरी पूर्णिमा तिथि को समाप्त होगी. मां श्री शाकंभरी की जयंती पर मेले का आयोजन होता है. जिसमें सबसे ज्यादा माने जाने वाले मंदिर शाकंभरी देवी मंदिर सहारनपुर में है. इस दिन शाकंभरी देवी मंदिर सहारनपुर पर लाखों भक्त मां के दर्शन के लिए आते हैं. शाकंभरी देवी मंदिर सहारनपुर Shakambhari Devi Temple Saharanpur को शक्ति पीठ भी कहा जाता है. इसके अलावा दो मंदिर और है, जो शाकंभरी माता सकरायपीठ और शाकंभरी माता सांभर पीठ है. ऐसा माना जाता है कि शाकंभरी माता के पूजन से अन्न, फल, धन, धान्य और अक्षय फल की प्राप्ति होती है. मां शाकंभरी देवी सहारनपुर की अधिष्ठात्री देवी है.
शाकंभरी देवी के अवतार की कथा : देवी पुराण, शिव पुराण और धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार हिरण्याक्ष के वंश मे एक महादैत्य रूरु था bheema devi . रूरु का एक पुत्र था जिसका नाम दुर्गमासुर था. दुर्गमासुर ने ब्रह्मा जी की तपस्या करके चारों वेदों को अपने अधीन कर लिया. वेदों के ना रहने से समस्त क्रियाएं लुप्त हो गई. ब्राह्मणों ने अपना धर्म त्याग कर दिया. चौतरफा हाहाकार मच गया. ब्राह्मणों के धर्म विहीन होने से यज्ञादि अनुष्ठान बंद हो गये और देवताओं की शक्ति भी क्षीण होने लगी. जिसके कारण एक भयंकर अकाल पड़ा. किसी भी प्राणी को जल नहीं मिला रहा था. जल के अभाव में वनस्पति भी सूख गयी, जिसके कारण भूख और प्यास से समस्त जीव मरने लगे. दुर्गमासुर की देवों से भयंकर लड़ाई हुई जिसमें देवताओं की हार हुई.
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देवताओं ने किया मां दुर्गा का ध्यान : दुर्गमासुर के अत्याचारों से पीड़ित देवतागण शिवालिक पर्वतमालाओं में छिप गये.इसके बाद जगदम्बा का ध्यान, जप, पूजन और स्तुति करने लगे. उनके जगदम्बा की स्तुति करने पर महामाया मां पार्वती जो महेशानी, भुवनेश्वरि नामों से प्रसिद्ध हैं. आयोनिजा रूप में सहारनपुर शक्ति पीठ स्थल पर प्रकट हुई. समस्त सृष्टि की दुर्दशा देख जगदम्बा को बहुत दुख हुआ और उनकी आंखों से आंसुओं की धारा प्रवाहित होने लगी. आंसुओं की धारा से सभी नदियां तालाब पानी से भर गये. देवताओं ने उस समय मां की शताक्षी देवी नाम से आराधना की. शताक्षी देवी ने एक दिव्य सौम्य स्वरूप धारण किया. चतुर्भुजी मां कमलासन पर विराजमान थी. अपने हाथों मे कमल, बाण, शाक- फल और एक तेजस्वी धनुष धारण किये हुए थी. भगवती परमेश्वरी ने अपने शरीर से अनेकों शाक प्रकट किये. जिनको खाकर संसार की क्षुधा शांत हुई. माता ने पहाड़ पर दृष्टि डाली तो सर्वप्रथम सराल नामक कंदमूल की उत्पत्ति हुई. इसी दिव्य रूप में मां शाकम्भरी देवी के नाम से पूजित हुई.