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sant tukaram jayanti 2023 : जानिए कौन थे संत तुकाराम महाराज

बीते जमाने में ऐसे कई संत हुए जिनके उपदेश सुनकर राजाओं ने धर्म के साथ कर्म के मार्ग में चलना निर्धारित किया. कई राजाओं ने धर्म के मार्ग पर चलकर काफी ख्याति भी पाई. 17वीं शताब्दी में वीर शिवाजी के शासन काल में एक महान संत हुए जिनका नाम था संत तुकाराम.ऐसा माना जाता है कि संत तुकाराम महाराज सदेह बैकुंठ धाम को गए थे.

sant tukaram jayanti 2023
जानिए कौन थे संत तुकाराम महाराज
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Published : Feb 27, 2023, 4:50 PM IST

रायपुर : संत तुकाराम के भक्ति वचन और संदेशों ने समाज को नई दिशा दी. खुद शिवाजी भी तुकाराम से प्रभावित होकर भक्ति मार्ग के अनुयायी हुए. वीर शिवाजी ने संत तुकाराम के संदेश और निर्देशों का पालन करते हुए धर्मियों की रक्षा की. तुकाराम में मराठा साम्राज्य के दौरान अपने उपदेशों से समाज का उत्थान किया. उनके उपदेश और संदेशों से प्रेरित होकर समाज में नई क्रांति आई.

कौन थे संत तुकाराम : संत तुकाराम महाराज (तुकोबा) 17वीं शताब्दी के वारकरी संप्रदाय के संत थे. उनका जन्म वसंत पंचमी माघ शुद्ध पंचमी, हिंदू चंद्र कैलेंडर के उज्ज्वल पखवाड़े के 5 वें दिन को महाराष्ट्र के देहू गांव में बोल्होबा और कनकई में हुआ था. संत की उपाधि प्राप्त करने से पहले उनका नाम तुकाराम बोल्होबा अम्बिले (मोरे) था. तुकाराम ने फाल्गुन के द्वितीया दिवस पर अवतरित होने के बाद बैकुंठ के लिए प्रस्थान किया. पंढरपुर के विठ्ठल या विठोबा संत तुकाराम के आराध्य देवता थे. उन्होंने भक्ति गीतों के माध्यम से लोगों को ईश्वर-प्राप्ति का आसान मार्ग दिखाया.

तुकाराम ने किनसे ली दीक्षा : उनके गुरु बाबाजी चैतन्य ने उन्हें बीजमंत्र से दीक्षित किया और उनकी कृपा से ही तुकाराम महाराज को आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ. इस युग के दौरान वे कीर्तन कविता और कहानियों के माध्यम से भगवान की स्तुति के माध्यम से राष्ट्र और धर्म पर लोगों को उपदेश देने वाले एक महत्वपूर्ण संत बन गए. उपदेश देते समय तुकाराम महाराज मनुष्य को बताते थे कि ''सांसारिक जीवन और आध्यात्मिकता दोनों ही जीवन जीने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं, कि सांसारिक जीवन के बिना ईश्वर-साक्षात्कार नहीं होता है. आध्यात्मिकता के बिना सांसारिक जीवन अपूर्ण है.

ये भी पढ़ें- जानिए शीतलाष्टमी का महत्व और पूजन विधि

शिवाजी महाराज को किया था प्रभावित : संत तुकाराम से प्रभावित होकर वीर शिवाजी ने अपना राजपाठ त्याग दिया था. इसके बाद तुकोबा के भजन सुनने लगे. उस समय संत तुकाराम ने क्षत्रधर्म के लिए शिवाजी और उनके सेवकों को साधकों की रक्षा करने और दुष्टों को नष्ट करने के लिए कहा. तुकाराम ने शिवाजी से कहा 'मैं दुनिया को आध्यात्मिकता का उपदेश दूंगा, तुम धर्मियों की रक्षा और दुष्टों को नष्ट करने का ध्यान रखोगे.' संत तुकाराम ने आशीर्वाद देकर राजा शिवाजी को विदा किया. राजा और उसके सैनिक दोनों ने संत की शिक्षाओं को समझा और उनका पालन किया. उनके आशीर्वाद से शिवाजी एक शक्तिशाली और धनी राजा बने.

रायपुर : संत तुकाराम के भक्ति वचन और संदेशों ने समाज को नई दिशा दी. खुद शिवाजी भी तुकाराम से प्रभावित होकर भक्ति मार्ग के अनुयायी हुए. वीर शिवाजी ने संत तुकाराम के संदेश और निर्देशों का पालन करते हुए धर्मियों की रक्षा की. तुकाराम में मराठा साम्राज्य के दौरान अपने उपदेशों से समाज का उत्थान किया. उनके उपदेश और संदेशों से प्रेरित होकर समाज में नई क्रांति आई.

कौन थे संत तुकाराम : संत तुकाराम महाराज (तुकोबा) 17वीं शताब्दी के वारकरी संप्रदाय के संत थे. उनका जन्म वसंत पंचमी माघ शुद्ध पंचमी, हिंदू चंद्र कैलेंडर के उज्ज्वल पखवाड़े के 5 वें दिन को महाराष्ट्र के देहू गांव में बोल्होबा और कनकई में हुआ था. संत की उपाधि प्राप्त करने से पहले उनका नाम तुकाराम बोल्होबा अम्बिले (मोरे) था. तुकाराम ने फाल्गुन के द्वितीया दिवस पर अवतरित होने के बाद बैकुंठ के लिए प्रस्थान किया. पंढरपुर के विठ्ठल या विठोबा संत तुकाराम के आराध्य देवता थे. उन्होंने भक्ति गीतों के माध्यम से लोगों को ईश्वर-प्राप्ति का आसान मार्ग दिखाया.

तुकाराम ने किनसे ली दीक्षा : उनके गुरु बाबाजी चैतन्य ने उन्हें बीजमंत्र से दीक्षित किया और उनकी कृपा से ही तुकाराम महाराज को आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ. इस युग के दौरान वे कीर्तन कविता और कहानियों के माध्यम से भगवान की स्तुति के माध्यम से राष्ट्र और धर्म पर लोगों को उपदेश देने वाले एक महत्वपूर्ण संत बन गए. उपदेश देते समय तुकाराम महाराज मनुष्य को बताते थे कि ''सांसारिक जीवन और आध्यात्मिकता दोनों ही जीवन जीने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं, कि सांसारिक जीवन के बिना ईश्वर-साक्षात्कार नहीं होता है. आध्यात्मिकता के बिना सांसारिक जीवन अपूर्ण है.

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