रायपुर : छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण (conversion in chhattisgarh) का मुद्दा कोई नया नहीं है. चुनाव या चुनाव से पहले यह मुद्दा तपाक से पार्टियों द्वारा उठा दिया जाता है. एक बार फिर धर्मांतरण का मुद्दा उठ खड़ा हुआ है. दरअसल बस्तर में चिंतन शिविर (contemplation camp) में भाजपा नेताओं ने इसको आगामी चुनावी मुद्दा बनाने की बात कही है. इसको लेकर दोनों तरफ से बयानों का दौर शुरू हो गया है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Chief Minister Bhupesh Baghel) ने भाजपा को आड़े हाथ लेते हुए कहा है कि चुनाव के लिए भाजपा धर्मांतरण को मुद्दा बना रही है. एक नजर डालते हैं इस मुद्दे की अहमियत पर और ये कैसे चुनाव में बन सकता है बड़ा मुद्दा.
पिछले कुछ महीनों से बस्तर में धर्मांतरण कराए जाने का मुद्दा कई भाजपा नेताओं ने उठाया है. अब चिंतन शिविर में इसे दोहराते हुए इस पर चर्चा हुई है और इसे विधानसभा चुनाव में भी मुद्दा बनाने की घोषणा की गई है. भाजपा ने भूपेश सरकार पर धर्मांतरण को बल देने का आरोप भी लगाया है. इसके जवाब में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि बस्तर में रमन सिंह के 15 सालों में कितने चर्च बने हैं, ये रिकॉर्ड उठाकर देख लीजिए. इस पर रमन सिंह ने कह दिया कि जब कांग्रेस को जानकारी थी तो वे क्यों चुप बैठे थे. डॉ रमन सिंह के इस बयान पर मुख्यमंत्री ने एक बार फिर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उनके बयान से साबित होता है कि धर्मांतरण भाजपा के समय पर जमकर हुआ है. उन्होंने कहा कि अगर उन्हें जबरन किसी का धर्म परिवर्तन कराए जाने की खबर मिलती है तो उस पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
सुकमा एसपी के पत्र से मुद्दे ने पकड़ा था जोर
कुछ महीने पहले सुकमा के एसपी द्वारा विभिन्न थाना प्रभारियों को लिखे पत्र के बाद धर्मांतरण के मुद्दे ने जोर पकड़ा था. इस पत्र में जिले में ईसाई मिशनरियों द्वारा धर्मांतरण कराए जाने को लेकर चिंता जताई गई थी. इस पत्र के आधार पर सांसद रामविचार नेताम ने केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर हस्तक्षेप करने की मांग की थी. इसके अलावा भाजपा नेताओं ने राज्यपाल से मिलकर भी इस मामले में अपनी चिंता जताई थी.
क्या कहते हैं आदिवासी नेता
प्रदेश में पिछले कुछ माह से उठे धर्मांतरण के मुद्दे पर कई आदिवासी नेताओं का मानना है कि अगर आदिवासी बहुल इलाकों में सुविधाओं का विस्तार हो, खासतौर पर स्कूल और अस्पताल आदि का विस्तार किया जाए तो धर्मांतरण नहीं होगा. क्योंकि बहुत से लोग प्रलोभन में आकर या फिर कहीं से मदद नहीं मिलने पर दूसरे धर्म को अपना रहे हैं. वरिष्ठ नेता अरविंद नेताम ने कहा कि धर्म इतना जटिल विषय है, जिसे अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखे लोग भी समझ नहीं पाते. ये चिंता का विषय है, पिछले कुछ सालों से हम लोग भी इस पर आपस में चर्चा कर रहे हैं. इसकी गंभीरता को समझने की कोशिश कर रहे हैं. इस बारे में सामाज और सरकार दोनों तरफ से पहल की जरूरत है. उन्होंने कहा है कि धर्म की मार्मिकता को क्या लंगोटधारी आदिवासी समझते हैं? ईसाई मिशनरियों का तो ये कहना है कि आदिवासी अपनी इच्छा से ईसाई धर्म स्वीकार रहे हैं.
नेताम ने आगे कहा कि इस बात को मैं स्वीकार नहीं करता, जो पढ़ा-लिखा आदमी अगर ऐसा करता है तो ठीक है. लेकिन जिस तरह भोले-भाले लोगों का मदद के नाम पर धर्मांतरण कराया जा रहा है, वह ठीक नहीं है. मंत्री कवासी लखमा ने इस मुद्दे पर भाजपा को आड़े हाथ लिया है. कहा है कि इस तरह धर्म की बात कर उन्हें कोई वोट नहीं मिलने वाला. वहीं प्रदेश की सियासत पर नजर बनाए वरिष्ठ पत्रकार भी मानते हैं कि पिछले कुछ समय से रह-रहकर इस मुद्दे के उठने के पीछे कुछ मकसद हो सकता है. अब देखना ये है कि चुनावी राजनीति में ये क्या रंग लाता है.
छत्तीसगढ़ में क्या है धार्मिक स्थिति
जाति आधारित जनगणना 2011 के आंकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में 93.2 फीसदी हिन्दू, 2.01 फीसदी मुसलमान, 1.92 फीसदी ईसाई, 0.27 फीसदी सिख, 0.27 फीसदी बौद्ध, 0.24 फीसदी जैन तथा 1.93 फीसदी अन्य धर्मों के अनुयायी रहते हैं. छत्तीसगढ़ के गांवों में 1 लाख 76 हजार 500 तथा शहरों में 65 हजार 299 ईसाई रहते हैं. कैथोलिक ईसाई समाज के पदाधिकारी का कहना है कि राज्य में 68 चर्च हैं जो कि छत्तीसगढ़ बनने के समय से ही संचालित हैं. प्रोटेस्टेंट चर्चों से जुड़े आंकड़े उपलब्ध नहीं हो पाए हैं.
किस राज्य में कब लागू हुआ कानून, कितनी है सजा
- ओडिशा (1967) - कानून के उल्लंघन पर 1 साल सजा 5000 रुपये जुर्माना / एससी-एसटी मामले में 2 साल सजा, 10 हजार जुर्माना.
- मध्य प्रदेश (1968) - कानून के उल्लंघन पर 1 साल की सजा 5000 रुपये जुर्माना / एससी-एसटी मामले में 2 साल सजा, 10 हजार जुर्माना.
- अरुणाचल प्रदेश (1978) - कानून के उल्लंघन पर 2 साल की सजा 10000 रुपये जुर्माना/ एससी-एसटी मामले में 2 साल सजा, 10 हजार जुर्माना.
- छत्तीसगढ़ (2006) - कानून के उल्लंघन पर 3 साल की सजा 20000 रुपये जुर्माना/ एससी-एसटी मामले में 4 साल सजा, 20 हजार जुर्माना.
- गुजरात (2003) - कानून के उल्लंघन पर 3 साल की सजा 50000 रुपये जुर्माना/ एससी-एसटी मामले में 4 साल सजा, 1 लाख रुपये जुर्माना.
- हिमाचल प्रदेश (2019) - कानून के उल्लंघन पर 1 से 5 साल तक की सजा/ एससी-एसटी मामले में 2 से 7 साल तक की सजा.
- झारखंड (2017) - कानून के उल्लंघन पर 3 साल की सजा 50000 रुपये जुर्माना/ एससी-एसटी मामले में 4 साल सजा, 1 लाख रुपये जुर्माना.
- उत्तराखंड (2018) - कानून के उल्लंघन पर 1 से 5 साल तक की सजा/ एससी-एसटी मामले में 2 से 7 साल तक की सजा.
- यूपी (2020) - कानून के उल्लंघन पर 1 से 5 साल तक की सजा, 15 हजार या उससे ज्यादा का जुर्माना/एससी-एसटी मामले में 2 से 10 साल तक की सजा, 25 हजार या उससे ज्यादा का जुर्माना.
संसद में 3 बार हुई धर्मांतरण कानून पास कराने की नाकाम कोशिश
- संसद में पहली बार साल 1954 में भारतीय धर्मान्तरण विनियमन एवं पंजीकरण विधेयक 1954 में पेश किया गया, लेकिन पास नहीं हो सका.
- इसके बाद, 1960 और 1979 में भी इसके प्रयास हुए थे, लेकिन पास नहीं हो सका था.
- साल 2015 में तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने राष्ट्रव्यापी स्तर पर धर्मांतरण निरोधक कानून बनाने पर जोर दिया था.