रायपुर/नई दिल्ली : आखिरकार वह घड़ी आ ही गई जब छत्तीसगढ़ के फिल्मकार मनोज वर्मा ने छत्तीसगढ़ के खाते में एक और उपलब्धि दर्ज करा दी. जी हां मौका था दिल्ली के विज्ञान भवन में 25 अक्टूबर को आयोजित 67वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह का. इस समारोह में छत्तीसगढ़ के फिल्मकार मनोज वर्मा द्वारा बनाई गई फिल्म "भूलन द मेज" को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया. उन्हें यह पुरस्कार उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के हाथों दिया गया. मनोज बीते 23 अक्टूबर को ही इस समारोह में शामिल होने के लिए दिल्ली पहुंच गए थे. बता दें कि बीते 22 मार्च 2021 को ही तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने पुरस्कारों की घोषणा की थी. इसमें छत्तीसगढ़ की फिल्म "भूलन द मेज" को भी राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के लिए नामित किया गया था.
इससे पहले देश भर में कई जगहों समेत विदेश में भी फिल्म को मिल चुका है पुरस्कार
बता दें कि मनोज वर्मा द्वारा बनाई गई इस फिल्म को इससे पहले कोलकाता, दिल्ली, ओरछा, आजमगढ़, रायपुर, रायगढ़, एवं अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल इटली एवं कैलिफोर्निया भी पुरस्कार मिल चुका है. इसी के साथ 'भूलन द मेज' के नाम अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार स्तर पर पुरस्कार जीतने वाली छत्तीसगढ़ की पहली फिल्म का ऐतिहासिक रिकॉर्ड भी दर्ज हो गया है. हाल ही में अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार की श्रेणी में छत्तीसगढ़ सरकार ने एक करोड़ रुपये की अनुदान राशि देने की भी घोषणा की है. इस फिल्म की शूटिंग गरियाबंद के भुजिया गांव में हुई थी. इसमें एक्टर ओंकार दास मानिकपुरी ने काम किया है. इस फिल्म के टाइटल सॉन्ग का म्यूजिक कैलाश खेर ने दिया है.
जानिए क्या है भूलन कांदा, जिस पर बनी फिल्म को मिला राष्ट्रीय पुरस्कार
भूलन कांदा (Bhulan Kanda) छत्तीसगढ़ के जंगलों में पाया जाने वाला एक पौधा है. जिसपर पैर पड़ने से इंसान सब कुछ भूलने लगता है. रास्ता भूल जाता है. वह भटकने लगता है. इस दौरान कोई दूसरा इंसान जब आकर जब उस इंसान को छूता है तब जाकर फिर से वह होश में आता है. केशकाल की कुछ जड़ी बूटी के विशेषज्ञों की मानें तो भूलन कांदा का वैज्ञानिक नाम 'डायलो फोरा रोटोन डिफोलिया' है.
भूलन कांदा उपन्यास पर आधारित है यह फिल्म
इसी भूलन कांदा पर 'भूलन द मेज' (Bhulan The Maze) फिल्म बनी है. जिसके जरिये आज के सामाजिक, इंसानी, सरकारी व्यवस्था में आए भटकाव को दिखाया गया है. 'भूलन दा मेज' फिल्म 'भूलन कांदा' उपन्यास पर आधारित है. इसके लेखक संजीव बख्शी (Sanjeev Bakshi) हैं. उनकी मानें तो नौकरी के दौरान वे बस्तर और गरियाबंद जैसे इलाकों में पदस्थ थे. उसी दौरान उन्होंने आदिवासियों से भूलन पौधे की बात सुनी थी. उन्हें ये काफी रोचक लगा. इसके बाद उन्होंने इस पर लिखना शुरू किया, जिस पर काम करते हुए 3 से 4 साल में उन्होंने भूलन कांदा उपन्यास लिखा. इसी उपन्यास को 'भूलन द मेज' फिल्म के रूप में बनाया गया. जिसे 67वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की घोषणा के दौरान बेस्ट छत्तीसगढ़ी फिल्म का अवॉर्ड दिया गया.