रायपुर: रमजान का पाक महीना खत्म होने के करीब 70 दिनों बाद बकरीद का पर्व मनाया जाता है. इस दिन इस्लाम धर्म में अल्लाह के नाम पर कुर्बानी देने की परंपरा है. इस दिन मुस्लिम समुदाय नमाज अदा करने के बाद बकरे की कुर्बानी देता है. सऊदी अरब ने इस बार दुनियाभर में 31 जुलाई को बकरीद मनाने की घोषणा की है. वहीं भारत में ईद का चांद दिखने के बाद 1 अगस्त को बकरीद मनाई जाएगी. इस बार कोरोना संकट ने सभी त्योहारों की रौनक कम कर दी है. इसका असर बकरीद पर भी देखने को मिला.
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में हर साल बकरीद बेहद धूमधाम से मनाई जाती है, लेकिन इस बार कोरोना संकट ने इस पर भी ग्रहण लगा दिया. प्रदेश में कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए राज्य सरकार ने लॉकडाउन की अवधि 6 अगस्त तक बढ़ा दी, जिसकी वजह से इस बार बाजार भी ठंडे पड़े हैं. रायपुर में लॉकडाउन का सख्ती से पालन किया जा रहा है. राजधानी कोरोना का हॉटस्पॉट बना हुआ है. बकरीद को लेकर लोगों में उत्साह तो है, लेकिन लोग कोरोना के डर से घरों से बाहर नहीं निकल रहे.
मीट कारोबारियों में छाई मायूसी
राजधानी रायपुर का सबसे बड़ा मीट मार्केट गोल बाजार के बीच स्थित है. वहां पर भी बीते सालों के मुकाबले कम ग्राहक देखने को मिल रहे हैं. कोरोना महामारी ने सभी का व्यापार ठप कर दिया. लोगों की आर्थिक स्थिति भी खराब हो गई है. इस मामले में मटन कारोबारियों का कहना है कि बाजार में लॉकडाउन का पूरा असर देखने को मिल रहा है.
दुकानदारों का कहना है कि उन्हें उम्मीद थी कि लोग दुकान में मटन खरीदने आएंगे, लेकिन राज्य सरकार ने 6 बजे से 10 बज तक ही बाजार खुलने का समय निर्धारित किया है. जिस वजह से दुकानदारों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है. करीब ढाई-तीन महीने के लॉकडाउन के बाद अनलॉक किया गया था, जिसके बाद उम्मीद थी कि अब धीरे-धीरे व्यापार ट्रैक पर आने लगेगा, लेकिन संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए लॉकडाउन वापस लगा दिया गया. अब दुकान पर मुश्किल से गिने-चुने ग्राहक ही पहुंच रहे हैं.
लॉकडाउन से ठंडा पड़ा बकरीद का बाजार
आंकड़ों की बात की जाए, तो हर साल सिर्फ राजधानी में ही करीब 10 हजार से ज्यादा बकरों की कुर्बानी दी जाती है. लोगों का कहना है कि इस साल रायपुर में 3 से 5 हजार बकरों से ज्यादा की कुर्बानी नहीं दी जा सकेगी.
हर साल इस मौके पर राजधानी में कई वैरायटी के बकरे भी बिकने आते हैं. जिसमें सबसे महंगा बकरा हैदराबादी और हंसा नस्ल का होता है. इन बकरों की कीमत एक लाख से चार लाख के आसपास होती है. वहीं तोतापरी, सिरोही, लाचा नस्ल के बकरे-बकरियां भी इस दौरान राजधानी में देखने को मिलते हैं, लेकिन इस बार लॉकडाउन होने की वजह से बाजार काफी ठंडा पड़ा हुआ है.
बीते सालों के मुकाबले इस बार 20 फीसदी लगा बाजार
बकरा कारोबारियों का कहना है कि लॉकडाउन होने के बावजूद सरकार और पुलिसकर्मी का सपोर्ट हमें मिल रहा है. दूसरे राज्यों से बकरे लाने की इजाजत दे दी गई है, लेकिन बाजार काफी ठंडा पड़ा हुआ है. लॉकडाउन के चलते इस साल कुर्बानी ज्यादा नहीं दी जा सकेगी. बीते सालों के मुकाबले इस साल 20 प्रतिशत भी बाजार नहीं है, हालांकि मटन मार्केट में सभी बकरा कारोबारी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं, मास्क लगा रहे हैं और साफ-सफाई को लेकर भी सावधानियां बरत रहे हैं, लेकिन ग्राहक नहीं आने से काफी परेशान हैं.
कभी हुआ करती थी रौनक
ग्राहकों ने बताया कि पहले बकरीद के समय बाजारों में रौनक हुआ करती थी. इस साल बाजार वीरान पड़े हैं. रायपुर में इस बार कम बकरे-बकरियां बिकने आए हैं. मटन व्यापारी संघ के अध्यक्ष ने बताया कि बकरीद के दिन कुर्बानी का गोश्त तीन हिस्सों में बांटा जाता है, जिसमें से एक हिस्सा खुद के लिए, दूसरा हिस्सा सगे-संबंधियों के लिए और तीसरा हिस्सा गरीब लोगों को बांटने के लिए निकाला जाता है. उन्होंने कहा कि सरकार को इस दिन लॉकडाउन में थोड़ी छूट देनी चाहिए, जिससे गरीब और जरूरतमंद लोगों तक उनके हिस्से का खाना उनको पहुंचाया जा सके.
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इस्लाम धर्म की मान्यता के अनुसार, पैगंबर हजरत इब्राहिम से ही कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई थी. कहा जाता है कि इब्राहिम को कई मन्नतों के बाद एक संतान की प्राप्ति हुई, जिसका नाम उन्होंने इस्माइल रखा था. इब्राहिम अपने बेटे इस्माइल से बेहद प्यार करते थे. लेकिन एक रात अल्लाह ने इब्राहिम के सपने में आकर उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी मांग ली. इब्राहिम ने अपने सभी प्यारे जानवरों की एक-एक कर कुर्बानी दे दी, लेकिन इसके बाद अल्लाह एक बार फिर उसके सपने में आए और फिर उससे सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी करने के लिए कहा.
इब्राहिम अपने बेटे से सबसे ज्यादा प्यार करते थे. अल्लाह के आदेश पर वह अपने बेटे की कुर्बानी देने को तैयार हो गए. जिसके बाद जब उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देनी चाही, तो उन्होंने देखा कि उनके बेटे की जगह बकरे की कुर्बानी हो गई है. अल्लाह ने इब्राहिम की निष्ठा देख उनके बेटे की जगह बकरा रख दिया था. तब से ही बकरीद पर बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा चली आ रही है.