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इसलिए सावन माह में होती है भगवान भोलेनाथ की पूजा - सावन में हुआ था समुद्र मंथन

सावन माह आने वाला है. ये माह भगवान भोलेनाथ को समर्पित हैं. इस माह में भगवान भोलेनाथ की आक, धतूरा, बेलपत्र चढ़ाकर खास पूजा अर्चना की जाती (Lord Bholenath is worshiped in month of Sawan) है.

Worship of Lord Bholenath
भगवान भोलेनाथ की पूजा
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Published : Jul 12, 2022, 6:04 AM IST

रायपुर: सावन का महीना 14 जुलाई 2022 से प्रारंभ हो रहा है. यह 12 अगस्त रक्षाबंधन के दिन खत्म होगा. इस सावन माह में चार सावन सोमवार पड़ रहे हैंं. इसी सावन महीने में ही हरेली और रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है. पूरे सावन महीने में देवालयों में भगवान शंकर को बेलपत्र, धतूरा, आक चढ़ाया जाता है. फिर जलाभिषेक, दुग्ध अभिषेक, रुद्राभिषेक के माध्यम से भोलेनाथ की पूजा की (Shiva worship in Sawan) जाती है. पंचाक्षरी मंत्र ओम नमः शिवाय शिवालयों में नित्य गूंजते रहते हैं.

सावन में होती है भगवान भोलेनाथ की पूजा !

महामृत्युंजय के पवित्र मंत्र का सभी शिव भक्त श्रद्धा और भक्ति से पाठ करते हैं. सावन का पूरा एक महीना भगवान शिव के लिए समर्पित रहता (Lord Bholenath is worshiped in month of Sawan) है. सावन के महीने में शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ सोमवार के अलावा महीने भर देखने को मिलती है. आखिर सावन महीने में ही 1 महीने तक भगवान शिव की आराधना और पूजा अर्चना क्यों की जाती है? इसके पीछे के रहस्य और पौराणिक कथाएं हैं. जिसके कारण देवों के देव महादेव की भक्त सावन के महीने में 1 महीने तक पूजा अर्चना करते हैं. इसे लेकर ईटीवी भारत ने ज्योतिष, पंडित और पुरातत्वविद की राय जानने की कोशिश की.

सावन महीने में प्रकृति के देवता की पूजा: ज्योतिष पंडित अरुणेश शर्मा ने बताया, "1 महीने तक सावन के महीने में ही भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना क्यों की जाती है. भगवान भोलेनाथ प्रकृति के देवता है. आदिदेव हैं, महादेव हैं. वेदों में भगवान महादेव का वर्णन है. इस महीने में प्रकृति की पूजा के रूप में महादेव की पूजा की जाती है. सनातन परंपरा में प्रकृति पूजा को ही सर्वोच्च स्थान दिया गया है. प्रकृति हमें सब कुछ देती है. उसके धन्यवाद स्वरूप सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ की पूजा की जाती है. पुराणों के अनुसार इस माह में भगवान भोलेनाथ ने विषपान भी किया था. भोलेनाथ को शांत करने के लिए भगवान इंद्र ने वर्षा की. इसी माह में सारे भक्त विभिन्न नदियों से जल लाकर के शिवजी को अर्पित कर प्रसन्न करते हैं. सावन माह में ही पर्वतराज की पुत्री पार्वती ने जन्म लिया और तपस्या करके इसी माह में भगवान शिव को प्रसन्न किया."

चौमास में शिव सहित उनके परिवार की पूजा: महामाया मंदिर के पुजारी पंडित मनोज शुक्ला ने बताया, "देवशयनी एकादशी के बाद भगवान शिव और उनके परिवार गणों का पूजन आरंभ हो जाता है. जैसे सावन मास भर शिवजी की पूजा, नागपंचमी पर नाग की पूजा, पोला के दिन नंदी बैल की पूजा, तीजा के दिन शिव पार्वती जी की पूजा, भादो माह में 11 दिन गणेश जी की पूजा और नवरात्र पक्ष में दुर्गा देवी की पूजा शरद पूर्णिमा में चंद्र देव की पूजा की जाती है. इस तरह से 4 महीने के चौमासे में पूरे शिव परिवार की पूजा की जाती है. पौराणिक मान्यता है कि भगवान विष्णु राजा बलि के घर पाताल लोक में आतिथ्य स्वीकार करने जाते हैं."

सावन में हुआ था समुद्र मंथन: ज्योतिष पंडित विनीत शर्मा ने बताया, "पौराणिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन का कार्य भी इसी सावन महीने में ही हुआ था. समुद्र मंथन के फल स्वरुप निकलने वाले जहर को अनादि शंकर ने देवताओं के आग्रह करने पर अपने कंठ में लिया था. फलस्वरूप वे नीलकंठ कहलाए. सृष्टि की रक्षा और देवताओं को योग्य अमृत की प्राप्ति कराने महालक्ष्मी का जन्म होने और ऐरावत हाथी के जन्म के लिए भगवान शिव का ही महत्वपूर्ण योगदान माना गया. इसके परिणाम स्वरूप सावन महीने में शिव की पूजा आराधना, अभिषेक, रुद्राभिषेक की परंपरा शुरू हुई. इस महीने में नर्मदा, गंगा, गन्ने का रस, शुद्ध पानी, कच्चे दूध आदि से मृत्युंजय का अभिषेक करना बहुत ही पुण्य माना गया है. बेलपत्र, आक सभी तरह के फूल, धतूरा आदि भगवान शिव को अर्पित करने मात्र से ही भगवान शिव अति प्रसन्न होते हैं."

दक्ष पुत्री ने अगले जन्म में माता पार्वती का रूप लिया: ज्योतिष पंडित विनीत शर्मा ने बताया, "पौराणिक मान्यता है कि दक्ष पुत्री ने अगले जन्म में माता पार्वती का रूप लिया. माता पार्वती ने भोलेनाथ की पुनः प्राप्ति के लिए इस सावन के पावन महीने में ही शिव की घनघोर आराधना और तपस्या की. इस व्रत से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में धारण किया. इसके फलस्वरूप यह महीना कुंवारी कन्याओं के द्वारा शिव की भक्ति उपासना स्तुति हेतु सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है. ऐसी मान्यता है कि कुंवारी कन्याएं इस महीने में शिव की पूजा उपासना और अभिषेक करती हैं, तो उन्हें मन चाहा वर मिलता है."

यह भी पढ़ें: जांजगीर चांपा में महाशिवरात्रि पर शिवालयों में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़

भगवान शिव सामंजस्य के देवता: पुरातत्वविद डॉक्टर हेमू यदु ने बताया, "सावन का पूरा एक महीना भगवान शिव के लिए समर्पित रहता है. देवों के देव महादेव की पूजा आराधना प्राचीन समय से लोग करते आ रहे हैं. भगवान शिव को सबसे प्राचीन देवता बताते हैं. उन्होंने आगे कहा कि भगवान शिव सामंजस्य के देवता हैं. क्योंकि भगवान शिव के परिवार में अलग-अलग सभी के वाहन हैं. जो एक दूसरे के खिलाफ विपरीत व्यवहार करते हैं. बावजूद इसके उनके परिवार में इस तरह का सामंजस्य देखने को मिलता है. इसलिए पुरातत्वविद का मानना है कि भगवान शिव सामंजस्य के देवता हैं."

कुंवारी कन्या सावन के सोमवार को रखती है उपवास: सावन के महीने में शिवालयों में शिव भक्त और श्रद्धालुओं की भीड़ भी लगी होती है. खास तौर पर श्रद्धालु सावन महीने में सोमवार के दिन उपवास रहकर भगवान भोलेनाथ की विधि-विधान से शिवालयों में पूजा अर्चना करते हैं. कुंवारी कन्या सावन के महीने में उपवास रखकर भगवान भोलेनाथ की विधि-विधान से पूजा आराधना करते हैं, जिससे कुंवारी कन्या को मनचाहा वर मिल सके.

रायपुर: सावन का महीना 14 जुलाई 2022 से प्रारंभ हो रहा है. यह 12 अगस्त रक्षाबंधन के दिन खत्म होगा. इस सावन माह में चार सावन सोमवार पड़ रहे हैंं. इसी सावन महीने में ही हरेली और रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है. पूरे सावन महीने में देवालयों में भगवान शंकर को बेलपत्र, धतूरा, आक चढ़ाया जाता है. फिर जलाभिषेक, दुग्ध अभिषेक, रुद्राभिषेक के माध्यम से भोलेनाथ की पूजा की (Shiva worship in Sawan) जाती है. पंचाक्षरी मंत्र ओम नमः शिवाय शिवालयों में नित्य गूंजते रहते हैं.

सावन में होती है भगवान भोलेनाथ की पूजा !

महामृत्युंजय के पवित्र मंत्र का सभी शिव भक्त श्रद्धा और भक्ति से पाठ करते हैं. सावन का पूरा एक महीना भगवान शिव के लिए समर्पित रहता (Lord Bholenath is worshiped in month of Sawan) है. सावन के महीने में शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ सोमवार के अलावा महीने भर देखने को मिलती है. आखिर सावन महीने में ही 1 महीने तक भगवान शिव की आराधना और पूजा अर्चना क्यों की जाती है? इसके पीछे के रहस्य और पौराणिक कथाएं हैं. जिसके कारण देवों के देव महादेव की भक्त सावन के महीने में 1 महीने तक पूजा अर्चना करते हैं. इसे लेकर ईटीवी भारत ने ज्योतिष, पंडित और पुरातत्वविद की राय जानने की कोशिश की.

सावन महीने में प्रकृति के देवता की पूजा: ज्योतिष पंडित अरुणेश शर्मा ने बताया, "1 महीने तक सावन के महीने में ही भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना क्यों की जाती है. भगवान भोलेनाथ प्रकृति के देवता है. आदिदेव हैं, महादेव हैं. वेदों में भगवान महादेव का वर्णन है. इस महीने में प्रकृति की पूजा के रूप में महादेव की पूजा की जाती है. सनातन परंपरा में प्रकृति पूजा को ही सर्वोच्च स्थान दिया गया है. प्रकृति हमें सब कुछ देती है. उसके धन्यवाद स्वरूप सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ की पूजा की जाती है. पुराणों के अनुसार इस माह में भगवान भोलेनाथ ने विषपान भी किया था. भोलेनाथ को शांत करने के लिए भगवान इंद्र ने वर्षा की. इसी माह में सारे भक्त विभिन्न नदियों से जल लाकर के शिवजी को अर्पित कर प्रसन्न करते हैं. सावन माह में ही पर्वतराज की पुत्री पार्वती ने जन्म लिया और तपस्या करके इसी माह में भगवान शिव को प्रसन्न किया."

चौमास में शिव सहित उनके परिवार की पूजा: महामाया मंदिर के पुजारी पंडित मनोज शुक्ला ने बताया, "देवशयनी एकादशी के बाद भगवान शिव और उनके परिवार गणों का पूजन आरंभ हो जाता है. जैसे सावन मास भर शिवजी की पूजा, नागपंचमी पर नाग की पूजा, पोला के दिन नंदी बैल की पूजा, तीजा के दिन शिव पार्वती जी की पूजा, भादो माह में 11 दिन गणेश जी की पूजा और नवरात्र पक्ष में दुर्गा देवी की पूजा शरद पूर्णिमा में चंद्र देव की पूजा की जाती है. इस तरह से 4 महीने के चौमासे में पूरे शिव परिवार की पूजा की जाती है. पौराणिक मान्यता है कि भगवान विष्णु राजा बलि के घर पाताल लोक में आतिथ्य स्वीकार करने जाते हैं."

सावन में हुआ था समुद्र मंथन: ज्योतिष पंडित विनीत शर्मा ने बताया, "पौराणिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन का कार्य भी इसी सावन महीने में ही हुआ था. समुद्र मंथन के फल स्वरुप निकलने वाले जहर को अनादि शंकर ने देवताओं के आग्रह करने पर अपने कंठ में लिया था. फलस्वरूप वे नीलकंठ कहलाए. सृष्टि की रक्षा और देवताओं को योग्य अमृत की प्राप्ति कराने महालक्ष्मी का जन्म होने और ऐरावत हाथी के जन्म के लिए भगवान शिव का ही महत्वपूर्ण योगदान माना गया. इसके परिणाम स्वरूप सावन महीने में शिव की पूजा आराधना, अभिषेक, रुद्राभिषेक की परंपरा शुरू हुई. इस महीने में नर्मदा, गंगा, गन्ने का रस, शुद्ध पानी, कच्चे दूध आदि से मृत्युंजय का अभिषेक करना बहुत ही पुण्य माना गया है. बेलपत्र, आक सभी तरह के फूल, धतूरा आदि भगवान शिव को अर्पित करने मात्र से ही भगवान शिव अति प्रसन्न होते हैं."

दक्ष पुत्री ने अगले जन्म में माता पार्वती का रूप लिया: ज्योतिष पंडित विनीत शर्मा ने बताया, "पौराणिक मान्यता है कि दक्ष पुत्री ने अगले जन्म में माता पार्वती का रूप लिया. माता पार्वती ने भोलेनाथ की पुनः प्राप्ति के लिए इस सावन के पावन महीने में ही शिव की घनघोर आराधना और तपस्या की. इस व्रत से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में धारण किया. इसके फलस्वरूप यह महीना कुंवारी कन्याओं के द्वारा शिव की भक्ति उपासना स्तुति हेतु सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है. ऐसी मान्यता है कि कुंवारी कन्याएं इस महीने में शिव की पूजा उपासना और अभिषेक करती हैं, तो उन्हें मन चाहा वर मिलता है."

यह भी पढ़ें: जांजगीर चांपा में महाशिवरात्रि पर शिवालयों में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़

भगवान शिव सामंजस्य के देवता: पुरातत्वविद डॉक्टर हेमू यदु ने बताया, "सावन का पूरा एक महीना भगवान शिव के लिए समर्पित रहता है. देवों के देव महादेव की पूजा आराधना प्राचीन समय से लोग करते आ रहे हैं. भगवान शिव को सबसे प्राचीन देवता बताते हैं. उन्होंने आगे कहा कि भगवान शिव सामंजस्य के देवता हैं. क्योंकि भगवान शिव के परिवार में अलग-अलग सभी के वाहन हैं. जो एक दूसरे के खिलाफ विपरीत व्यवहार करते हैं. बावजूद इसके उनके परिवार में इस तरह का सामंजस्य देखने को मिलता है. इसलिए पुरातत्वविद का मानना है कि भगवान शिव सामंजस्य के देवता हैं."

कुंवारी कन्या सावन के सोमवार को रखती है उपवास: सावन के महीने में शिवालयों में शिव भक्त और श्रद्धालुओं की भीड़ भी लगी होती है. खास तौर पर श्रद्धालु सावन महीने में सोमवार के दिन उपवास रहकर भगवान भोलेनाथ की विधि-विधान से शिवालयों में पूजा अर्चना करते हैं. कुंवारी कन्या सावन के महीने में उपवास रखकर भगवान भोलेनाथ की विधि-विधान से पूजा आराधना करते हैं, जिससे कुंवारी कन्या को मनचाहा वर मिल सके.

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