रायपुर : प्रेम का संदेश देने और समाज को दोहों के माध्यम से एक नई दिशा दिखाने वाले संत कबीर की आज जयंती है. निम्न जाति से होने की उनमें कोई कुंठा नहीं थी, बल्कि वह स्वाभिमान से कहते थे, 'मैं काशी का एक जुलाहा, बूझहु मोर गियाना' अर्थात् वह जाति-धर्म को नहीं, ज्ञान को ही सर्वोपरि मानते थे. उन्होंने धर्मों में व्याप्त कुरीतियों के प्रति लोगों को सचेत किया. यही कारण है कि कबीर की वाणी में वैष्णवों की अहिंसा और सूफियाना प्रेम है. कबीर दास जी की जयंती ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है. आज कबीर दास जी की 623वीं जयंती है, इसे कबीर प्राकट्य दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. संत कबीर की जयंती पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और राज्यपाल अनुसुइया उइके ने प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं दी हैं.
मुख्यमंत्री बघेल ने कहा कि संत कबीर का दर्शन हर युग में प्रासंगिक रहेगा
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने संत कबीर की जयंती पर प्रदेशवासियों को बधाई दी. अपने बधाई संदेश में बघेल ने कहा कि संत कबीर का जीवन दर्शन हर युग में प्रासंगिक है. वे सामान्य बोलचाल की भाषा में बड़ी सहजता से गहरी बात कह जाते थे. सरलता से सीधी कही गई उनकी बातें लोगों के दिल में अपनी पैठ जमा लेती थी. छत्तीसगढ़ में भी संत कबीर के जीवनदर्शन का लोगों के जनजीवन पर गहरा प्रभाव रहा है. भूपेश बघेल ने कहा कि संत कबीर ने अपने दोहों के माध्यम से भाईचारे, प्रेम, सद्भावना और सामाजिक समानता का संदेश दिया है. उन्होंने समाज में फैले आडंबर और जात-पात का सख्त विरोध किया. अपने दोहों के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों पर कठोर प्रहार किया. उन्होंने लोगों को सत्य, अहिंसा, दया, करुणा, परोपकार जैसे मानवीय मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा दी. संत कबीर के उपदेश हमें हमेशा सही राह दिखाते रहेंगे.
संत कबीर दास ने समाज को दिखाई नई दिशा : राज्यपाल उइके
राज्यपाल अनुसुइया उइके ने कहा कि भक्तिकाल के महान कवि के साथ-साथ संत कबीर दास समाज सुधारक भी थे. उन्होंने तत्कालीन समाज को नई दिशा प्रदान की थी और समाज में फैली हुई कुरीतियों पर कड़ा प्रहार किया था. उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से आम जनता में भाईचारा, प्रेम और सद्भावना का संदेश दिया है. उनके दोहे मनुष्य को अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश में ले जाने का काम करते हैं. उनके संदेश वर्तमान समय में भी प्रासंगिक हैं.
मोक्ष पाना कर्मों पर निर्भर, किसी शहर पर नहीं
कबीर प्राकट्य स्थली के महान आचार्य गोविंद दास का कहना है कि कबीर समाज में फैली भ्रांतियों और कुरीतियों को खत्म करने के लिए लगातार संघर्षरत थे. लहरतारा में उनका प्रकट होना और काशी के कबीरचौरा इलाके में अपने जीवन के 20 साल बिताने के बाद काशी से ही कबीर पंथ को आगे ले जाने की शुरुआत की. इसलिए काशी कबीर को बेहद नजदीक लाती है, जीवन का पूरा वक्त काशी में बिताने वाले कबीर जीवन के अंत में काशी में मोक्ष मिलने की बात को गलत साबित करने के लिए काशी छोड़कर मगहर चले गए थे, क्योंकि कबीर मानते थे कि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के बाद मोक्ष उसके कर्मों की वजह से मिलता है. जीवन भर पाप कीजिए और अंत में काशी आकर अपनी मृत्यु प्राप्त कर लीजिए तो फिर मोक्ष संभव नहीं है.