रायपुर: जया एकादशी की ऐसी मान्यता है कि कई जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है. विधिपूर्वक व्रत का पालन किया जाए तो भगवान विष्णु की शरणागति मिलती है. ब्रह्मह्त्या जैसे पापों से भी मुक्ति मिलती है. ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि पदमपुराण के अनुसार जो व्यक्ति दान पुण्य करने में सक्षम नहीं है. वह यदि जया एकादशी का व्रत करें तो दान से बढ़कर पुण्य फल की प्राप्ति होती है. यज्ञ करने से ज्यादा फल व्रत रखने से मिलता है.
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ऐसे करें पूजा: सुबह स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा करें. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मन्त्र का जाप करें. विष्णु प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराएं. वस्त्र चन्दन, जनेऊ , गंध, अक्षत, पुष्प, तिल, धूप- दीप, नैवैद्य , ऋतुफल, पान, नारियल,आदि अर्पित करके आरती करें. दूसरे दिन द्वादशी पर पारणा करके यथा शक्ति दान दें. व्रत के दौरान सात्विक रहकर केवल पूजा पाठ में समय व्यतीत करें.
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जया एकादशी पर कथा: माल्यवान गन्धर्व व पुष्पवन्ती अप्सरा इंद्र की सभा में नृत्य गायन की प्रस्तुति दे रहे थे। दोनों प्रेम में पड़कर ठीक से गायन, नृत्य नहीं कर पाए। इंद्र ने नाराज होकर पिशाच बन जाने का श्राप दिया। पिशाच योनि को पाकर दोनों हिमालय पर्वत पर भयंकर दुःख भोगने लगे। जया एकादशी के दिन दोनों ने आहार, जलपान त्याग दिया। पीपल के वृक्ष के निकट बैठकर रात गुज़ार दी। द्वादशी का दिन आया,उन पिशाचों के द्वारा 'जया' के उत्तम व्रत का पालन हो गया। उस व्रत के प्रभाव से व भगवान विष्णु की शक्ति से उन्हें पिशाच योनि से मुक्ति मिल गई। पुष्पवन्ती और माल्यवान पुनःअपना दिव्य रूप प्राप्त कर स्वर्ग चले गए।