रायपुर: जांजगीर चांपा में कोई भी चुनाव हो, मुकाबला त्रिकोणीय होता है. इसमें से तीन पार्टियां तो बड़ी होती हैं. इस वजह से पूरा वोट बंट जाता है. किसी एक पार्टी को भारी बहुमत नहीं मिलता है. जब तक जीत नहीं हो जाती है तब तक प्रत्याशी की सांसे अटकी रहती है. ऐसा पिछले चुनावों के डेटा कहते हैं और राजनीतिक विश्लेषक भी. पांच सालों में जांजगीर में जो चुनाव हुए उनमें कांग्रेस का वोट बैंक तो स्थिर दिखता है, पर बीएसपी का वोट बैंक खिसकता रहता है और यही खिसका हुआ वोट बीजेपी को ताकत देता है.
लोकसभा सीट के नजरिए से विधानसभा का हाल: जांजगीर-चांपा लोकसभा सीट अविभाजित मध्यप्रदेश में भी रही और अभी भी है. जांजगीर जिले की आबादी की बात की जाए जनसंख्या करीब 23 लाख 94 हजार 556 (अनुमानित) है. इसमें गांवों में 88.27 फीसदी और शहरी इलाके में 11.73 फीसदी लोग रहते हैं. एससी आबादी करीब 24.92 फीसदी है तो एसटी 11.68 फीसदी है. वरिष्ठ पत्रकार मनोज शर्मा कहते हैं, 'जांजगीर छत्तीसगढ़ का इकलौता ऐसा जिला है, जहां किसी एक पार्टी को स्पष्ट तौर पर बहुत अधिक वोट नहीं मिलता. जांजगीर लोकसभा सीट से ही 2003 में अलग होकर कोरबा लोकसभा सीट बनी. अभी जांजगीर में जो सीटें बची हैं, वो सभी में बंट जाती हैं.' इस बात को विस्तार से समझने के लिए 2019 में हुए लोकसभा के परिणाम पर नजर डालते हैं. जांजगीर लोकसभा सीट पर 2019 चुनावों के अनुसार करीब 18 लाख 50 हजार 601 मतदाता थे. इनमें से 12 लाख 47 हजार 650 मतदाताओं ने मतदान किया था. बीजेपी को करीब 5 लाख 72 हजार 790 मत मिले थे. बीजेपी के गुहाराम अजगल्ली ने चुनाव जीता. बीजेपी को 5 लाख 72 हजार 790 मत मिले. बीएसपी को एक लाख 31 हजार 387 वोट मिले जबकि कांग्रेस दूसरे नंबर की पार्टी बनी और 489537 वोट बटोरने में कामयाब रही.
आठ में से चार विधानसभा सीटें कांग्रेस के पास: इस लोकसभा सीट में आठ विधानसभाएं आती हैं. इनमें अकलतरा, जांजगीर, सक्ती, चंद्रपुर, जैजैपुर, पामगढ़, बिलाईगढ़ और कसडोल शामिल हैं. इन आठ सीटों में से छह सीटें सामान्य है जबकि दो सीट एसटी वर्ग की हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में जांजगीर सीट पर जहां बीजेपी ने जीत हासिल की थी. वहीं उसके पहले हुए विधानसभा (2018) के चुनाव में बीजेपी को केवल दो सीटों से संतोष करना पड़ा. कांग्रेस के खाते में चार सीटें गईं तो बीएसपी के खाते में भी दो सीटें आईं. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि एक साल में मतदाता बीजेपी की ओर शिफ्ट हो गया था. ऐसे मतदाताओं की संख्या ज्यादा नहीं थी, करीब दो लाख थी. ये मतदाता बीएसपी और निर्दलीयओं की तरफ से बीजेपी में शिफ्ट हुआ. कांग्रेस का वोट बैंक उसके पास ही रहा, ऐसा माना जा सकता है. छह विधानसभा सीटों के 2018 के डेटा को देखा जाए तो इन सीटों पर करीब 16 लाख 44 हजार 827 मतदाता थे. इसमें से 11 लाख 19 हजार 515 लोगों ने मतदान किया था. इसमें से बीजेपी को तीन लाख 91 हजार 582 मत मिले थे. बीएसपी को तीन लाख 39 हजार 909 वोट मिले, वहीं कांग्रेस को चार लाख 86 हजार 314 मत मिले थे. यानी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के पास वोट बैंक ज्यादा था.
क्यों हैं बीएसपी का दबदबा ?: इसको समझने के लिए इतिहास में जाना होगा. बिलासपुर के राजनीतिक जानकार राजेश अग्रवाल बताते हैं,'जांजगीर-चांपा जिले में बीएसपी ने करीब 40 साल पहले पैर जमाना शुरू किया था. 1984 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी के संस्थापक कांशीराम ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत यहीं से की. उन्होंने 1984 में लोकसभा का चुनाव जांजगीर-चांपा सीट से निर्दलीय लड़ा था. इस चुनाव में उनको आठ फीसदी वोट मिले थे. यानी उस समय इस सीट पर कुल वोटर 7 लाख 22 हजार 845 थे. इसमें से तीन लाख 78 हजार 143 वोटरों ने मतदान किया था. इसमें से 32 हजार वोट बीएसपी के खाते में आए थे. बाद में बीएसपी के प्रदेश अध्यक्ष दाऊ राम रत्नाकर बने, जो विधायक भी रहे. उनका गृह जिला जांजगीर था. प्रदेश अध्यक्ष का गृह जिला होने के कारण, जांजगीर में बहुजन समाज पार्टी हमेशा से मजबूत रही. जांजगीर जिले का जो जातिगत समीकरण है, वह बसपा की राजनीतिक स्टाइल को सूट भी करता है. इसके कारण ही यहां कभी भी कांग्रेस की लहर का असर नहीं होता है'. हालांकि 2019 लोकसभा चुनाव में बीएसपी को ज्यादा वोट नहीं मिले, लेकिन बीएसपी ने विधानसभा चुनावों जीत हासिल की थी. पामगढ़ और जैजेपुर विधानसभा सीट फिलहाल बसपा के पास है. अकलतरा सामान्य सीट है, पर वहां से भी बसपा ने काफी मजबूती से चुनाव लड़ा था. भाजपा के सौरव सिंह जीते जरूर थे, लेकिन काफी कम करीब दो हजार वोटों का ही अंतर था. जानकारों के अनुसार साल 2018 में बसपा की एक मजबूत रणनीति भी बन गई थी. पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी ने बसपा से गठबंधन किया था. बसपा अकलतरा सीट पर दूसरे नंबर पर आ गई थी. इसका नुकसान कांग्रेस को हुआ और कांग्रेस की हार हुई थी.
विधानसभा और लोकसभा चुनाव में अलग वोटिंग पैटर्न : राजनीतिक जानकार राजेश अग्रवाल कहते हैं, 'वोटिंग पैटर्न मुद्दों के अनुसार होता है. विधानसभा में दो सीट बीएसपी ने जीतीं जरूर पर 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले पीएम मोदी जांजगीर आए थे. वे करीब 3200 करोड़ रुपये की योजनाओं का शिलान्यास करके गए. इस वजह से बीजेपी ने बीएसपी के वोटों को अपनी तरफ खींचा'. जांजगीर में वोट बहुत करीब से बंटा हुआ है. यानी एक तरफा वोटिंग नहीं होती है. जीत हार का अंतर बहुत कम रहता है. 2018 में जांजगीर में जीत हार का अंतर करीब पांच हजार वोटों का था. वहीं जैजेपुर में बीएसपी को बीस हजार वोटों से जीत मिली थी. पामगढ़ में तीन हजार वोटों से बीएसपी जीती थी.
राजनीति पार्टियों का टेंशन क्या है ?: डेटा के अनुसार तो अब तक आप समझ गए होंगे की इस इलाके का समीकरण कैसा है. इसी वजह से राजनीतिक पार्टियों ने इस बार अभी से मतदाताओं को साधना शुरू कर दिया है. राजनीतिक विश्लेषक मनोज गुप्ता का मानाना है,'जांजगीर की सभी सीटों पर त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति रहती है. जातिगत समीकरण के आधार पर कांग्रेस इस कोशिश में है कि बसपा के जातिगत वोट में सेंध लगा सके और अपनी जीत सुनिश्चित कर सके. कांग्रेस को विश्वास है कि उसके वोटर हिले नहीं हैं. अगर इस इलाके में फोकस किया जाए तो सफलता मिल सकती है. मोटे तौर पर देखा जाए तो कांग्रेस यहां अच्छी स्थिति में है. उसे छह विधानसभा सीटों में से चार मिली थी पिछले चुनाव में. इस बार कोशिश छह की छह सीटों को लेने की है. इस वजह से कांग्रेस पूरी ताकत झोंक रही है'. कांग्रेस ने सबसे बड़े दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को बुलाया है. वो जांजगीर में 13 अगस्त को अनुसूचित जाति सम्मेलन में शामिल होंगे. मल्लिकार्जुन खड़गे के छत्तीसगढ़ दौरे को देखते हुए पार्टी ने तैयारी शुरू कर दी है. सम्मेलन का नाम भरोसे का सम्मेलन है. ऐसे सम्मेलन करके कांग्रेस सीएम भूपेश बघेल की ब्रांडिंग भरोसे वाला आदमी के तौर पर कर रही है. वहीं बीएसपी ने विधानसभा की इन छह सीटों के लिए प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है.