रायपुर: चैत्र मास ऋतु का संक्रमण काल रहता है. इस महीने में नीम के पत्ते और नीम की लकड़ियों का विशेष महत्व होता है. नीम के पत्तों से भगवती की पूजा की जाती है. छोटी माता, चेचक, खसरा आदि से बचाव के लिए शीतला माता की पूजा करती है. अष्टमी के दिन नीम के पत्तों की माला से मां की पूजा की जाती है.
नीम की पत्तियों से होती है मां की पूजा: नीम का विशेष महत्व है. शनि और केतु आदि की शांति के लिए चैत्र नवरात्रि में नीम की लकड़ियों से हवन किया जाता है. इसके साथ ही चर्म विकार, चेचक आदि में नीम की पत्तियों का विशेष महत्व है. नीम की पत्तियों से माता बहुत प्रसन्न होती है और शिशुओं की रक्षा करने स्वयं चली आती है. नीम का वृक्ष बहुत गुणकारी और सभी तत्वों से भरपूर और सकारात्मक होता है.
नीम की लकड़ियों से हवन: पंडित विनीत शर्मा कहते हैं कि "प्राचीन समय में कोलाहल नाम के दैत्य के प्रभाव से परेशान सभी देवताओं ने नीम की पेड़ में शरण ली थी. उन देवताओं के सारे गुण नीम के पेड़ में आ गए. इसी तरह भगवान सूर्य भी कोलाहल दैत्य से पीड़ित थे. उन्होंने भी नीम के पेड़ पर अपना आवास बनाया था. अतः सूर्य के समस्त गुण नीम के पेड़ में आ जाते हैं. नवरात्रि पर्व में नीम की सूखी लकड़ियां और सूखी पत्तियों से हवन करने से केतु और शनि के दोष खत्म होता है. नीम के वृक्ष आदि लगाए जाने पर भगवती मां प्रसन्न होती है और वातावरण शुद्ध रहता है."
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नीम से बनी रहती है शुद्धता: पंडित विनीत शर्मा ने बताया कि "नीम की पत्तियों को शुद्ध जल से धोकर नवरात्रि में प्रतिदिन उपयोग करने पर शुद्धता बनी रहती है. इसके इस्तेमाल से सारे दोष दूर होते हैं. इसके मुंह में इस्तेमाल से दातों के दोष पूरी तरह से दूर होते हैं. इस तरह से नवरात्रि काल में नीम की पत्तियों का विशेष महत्व होता है. नवरात्रि के अष्टमी में नीम की लकड़ियों से हवन करने का विधान है. शत्रु बाधा दूर होती है. वायु जनित रोग स्वास्थ संबंधी तकलीफें दूर होती है. इसके साथ ही प्रतिदिन शुद्ध मनोभावों से स्नान ध्यान कर जातक को नीम के पत्तों की माला भगवती को चढ़ाए जाने पर मां दुर्गा प्रसन्न होती है. अष्टमी के दिन नीम की पत्तियों की माला चढ़ाने पर बच्चों के स्वास्थ्य की रक्षा होती है."