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Pongal festival 2023 : पोंगल का महत्व और इतिहास, क्यों मनाया जाता है यह पर्व

पोंगल दक्षिण भारत के राज्यों में मनाया जाने वाला एक अहम हिंदू पर्व है. उत्तर भारत में जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं तो मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है ठीक उसी प्रकार तमिलनाडु में Pongal festival धूमधाम से मनाया जाता है. पोंगल पर्व से ही तमिलनाडु में नव वर्ष का शुभारंभ होता है. History of Pongal festival करीब एक हजार साल पुराना है. तमिलनाडु के अलावा श्रीलंका, कनाडा और अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में रहने वाले तमिल भाषी लोग इस पर्व को उत्साह के साथ मनाते हैं.

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Published : Jan 2, 2023, 8:26 PM IST

Pongal festival 2023
पोंगल त्यौहार के धार्मिक अनुष्ठान

रायपुर /हैदराबाद : Pongal festival का मूल कृषि है. सौर पंचांग के अनुसार यह त्यौहार तमिल माह की पहली तारीख यानि 14 या 15 जनवरी को आता है. जनवरी तक तमिलनाडु में गन्ना और धान की फसल पक कर तैयार हो जाती Pongal festival 2023 है. प्रकृति की असीम कृपा से खेतों में लहलहाती फसलों को देखकर किसान खुश हो जाते हैं और प्रकृति का आभार प्रकट करने के लिए इंद्र, सूर्य देव और पशु धन यानि गाय व बैल की पूजा करते हैं. पोंगल उत्सव करीब 3 से 4 दिन तक चलता है. इस दौरान घरों की साफ-सफाई और लिपाई-पुताई शुरू हो जाती है. मान्यता है कि तमिल भाषी लोग पोंगल के अवसर पर बुरी आदतों को त्याग करते हैं. इस परंपरा को पोही कहा जाता है.

पोंगल के धार्मिक कर्म कांड :Religious rituals on Pongal

1. पोंगल पर्व का पहला दिन देवराज इंद्र को समर्पित होता है इसे भोगी पोंगल कहते हैं. देवराज इंद वर्षा के लिए उत्तरदायी होते हैं इसलिए अच्छी बारिश के लिए उनकी पूजा की जाती है और खेतों में हरियाली और जीवन में समृद्धता की कामना की जाती है. इस दिन लोग घरों में पुराने हो चुके सामानों की होली जलाते हैं. इस दौरान महिलाएं और लड़कियां अग्नि के चारों ओर लोक गीत पर नृत्य करती हैं. इस परंपरा को भोगी मंटालू कहते हैं।

2. सूर्य के उत्तरायण होने के बाद दूसरे दिन सूर्य पोंगल पर्व मनाया जाता है. इस दिन पोंगल नाम की विशेष खीर बनाई जाती है. इस मौके पर लोग खुले आंगन में हल्दी की गांठ को पीले धागे में पिरोकर पीतल या मिट्टी की हांडी के ऊपर बांधकर उसमें चावल और दाल की खिचड़ी पकाते हैं. खिचड़ी में उबाल आने पर दूध और घी डाला जाता है. खिचड़ी में उबाल या उफान आना सुख और समृद्धि का प्रतीक है. पोंगल तैयार होने के बाद सूर्य देव की पूजा की जाती है.इस मौके पर लोग गाते-बजाते हुए एक-दूसरे की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं.

3. पोंगल पर्व के तीसरे दिन यानि मात्तु पोंगल पर कृषि पशुओं जैसे गाय, बैल और सांड की पूजा की जाती है. इस मौके पर गाय और बैलों को सजाया जाता है और उनके सींगों को रंगकर उनकी पूजा की जाती है. इस दिन बैलों की रेस यानि जली कट्टू (jali kattu race)का आयोजन भी होता है. मात्तु पोंगल को केनू पोंगल के नाम से भी जाना जाता है. जिसमें बहनें अपने भाइयों की खुशहाली के लिए पूजा करती हैं.

4. चार दिवसीय पोंगल त्यौहार के आखिरी दिन कन्या पोंगल मनाया जाता है, इसे तिरुवल्लूर के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन घर को फूलों से सजाया जाता है. दरवाजे पर आम और नारियल के पत्तों से तोरण बनाया जाता है. इस मौके पर महिलाएं आंगन में रंगोली बनाती हैं. चूंकि इस दिन पोंगल पर्व का समापन होता है इसलिए लोग एक-दूसरे को बधाई और मिठाई देते हैं.

ये भी पढ़ें- पोंगल के मौके पर जलीकट्टू का आयोजन

क्या है पोंगल का महत्व : यह त्यौहार मुख्य रूप से तमिलनाडु में मनाया जाता है लेकिन इस पर्व का आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व मानव समुदाय के लिए बेहद अहम है. इस त्योहार पर गाय के दूध में उफान या उबाल को महत्व दिया जाता है .मान्यता है कि जिस तरह दूध का उबलना शुभ है ठीक उसी तरह हर मनुष्य का मन भी शुद्ध संस्कारों से उज्ज्वल होना चाहिए.Importance and History of Pongal

रायपुर /हैदराबाद : Pongal festival का मूल कृषि है. सौर पंचांग के अनुसार यह त्यौहार तमिल माह की पहली तारीख यानि 14 या 15 जनवरी को आता है. जनवरी तक तमिलनाडु में गन्ना और धान की फसल पक कर तैयार हो जाती Pongal festival 2023 है. प्रकृति की असीम कृपा से खेतों में लहलहाती फसलों को देखकर किसान खुश हो जाते हैं और प्रकृति का आभार प्रकट करने के लिए इंद्र, सूर्य देव और पशु धन यानि गाय व बैल की पूजा करते हैं. पोंगल उत्सव करीब 3 से 4 दिन तक चलता है. इस दौरान घरों की साफ-सफाई और लिपाई-पुताई शुरू हो जाती है. मान्यता है कि तमिल भाषी लोग पोंगल के अवसर पर बुरी आदतों को त्याग करते हैं. इस परंपरा को पोही कहा जाता है.

पोंगल के धार्मिक कर्म कांड :Religious rituals on Pongal

1. पोंगल पर्व का पहला दिन देवराज इंद्र को समर्पित होता है इसे भोगी पोंगल कहते हैं. देवराज इंद वर्षा के लिए उत्तरदायी होते हैं इसलिए अच्छी बारिश के लिए उनकी पूजा की जाती है और खेतों में हरियाली और जीवन में समृद्धता की कामना की जाती है. इस दिन लोग घरों में पुराने हो चुके सामानों की होली जलाते हैं. इस दौरान महिलाएं और लड़कियां अग्नि के चारों ओर लोक गीत पर नृत्य करती हैं. इस परंपरा को भोगी मंटालू कहते हैं।

2. सूर्य के उत्तरायण होने के बाद दूसरे दिन सूर्य पोंगल पर्व मनाया जाता है. इस दिन पोंगल नाम की विशेष खीर बनाई जाती है. इस मौके पर लोग खुले आंगन में हल्दी की गांठ को पीले धागे में पिरोकर पीतल या मिट्टी की हांडी के ऊपर बांधकर उसमें चावल और दाल की खिचड़ी पकाते हैं. खिचड़ी में उबाल आने पर दूध और घी डाला जाता है. खिचड़ी में उबाल या उफान आना सुख और समृद्धि का प्रतीक है. पोंगल तैयार होने के बाद सूर्य देव की पूजा की जाती है.इस मौके पर लोग गाते-बजाते हुए एक-दूसरे की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं.

3. पोंगल पर्व के तीसरे दिन यानि मात्तु पोंगल पर कृषि पशुओं जैसे गाय, बैल और सांड की पूजा की जाती है. इस मौके पर गाय और बैलों को सजाया जाता है और उनके सींगों को रंगकर उनकी पूजा की जाती है. इस दिन बैलों की रेस यानि जली कट्टू (jali kattu race)का आयोजन भी होता है. मात्तु पोंगल को केनू पोंगल के नाम से भी जाना जाता है. जिसमें बहनें अपने भाइयों की खुशहाली के लिए पूजा करती हैं.

4. चार दिवसीय पोंगल त्यौहार के आखिरी दिन कन्या पोंगल मनाया जाता है, इसे तिरुवल्लूर के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन घर को फूलों से सजाया जाता है. दरवाजे पर आम और नारियल के पत्तों से तोरण बनाया जाता है. इस मौके पर महिलाएं आंगन में रंगोली बनाती हैं. चूंकि इस दिन पोंगल पर्व का समापन होता है इसलिए लोग एक-दूसरे को बधाई और मिठाई देते हैं.

ये भी पढ़ें- पोंगल के मौके पर जलीकट्टू का आयोजन

क्या है पोंगल का महत्व : यह त्यौहार मुख्य रूप से तमिलनाडु में मनाया जाता है लेकिन इस पर्व का आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व मानव समुदाय के लिए बेहद अहम है. इस त्योहार पर गाय के दूध में उफान या उबाल को महत्व दिया जाता है .मान्यता है कि जिस तरह दूध का उबलना शुभ है ठीक उसी तरह हर मनुष्य का मन भी शुद्ध संस्कारों से उज्ज्वल होना चाहिए.Importance and History of Pongal

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