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छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति की भारत में पहचान

छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति का इतिहास काफी पुराना है. आज के समय में आधुनिकता के साथ प्रदेश की कला और संस्कृति को सहेजा जा रहा है.

Identity of Chhattisgarh art and culture in India
छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति की भारत में पहचान
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Published : Aug 13, 2022, 3:08 PM IST

छत्तीसगढ़ की कला एवं संस्कृति बहुआयामी है. वनों से आच्छादित और आदिवासी अधिकता के कारण यहां की कला में वनों , प्रकृति , प्राचीन और परम्परा का विशेष स्थान और महत्व है. छत्तीसगढ़ की कला में हमें कई प्रकार के लोक नृत्य , जातियां , लोक कला , मेले , भाषा , शिल्प और विशेष व्यंजन देखने को मिलते हैं. प्रदेश में यहां के आभूषणों , वस्त्रों का विशेष स्थान है जो यहां की संस्कृति को और प्रभावशाली और समृद्ध बनाती हैं. सरल जीवन जीते हुए यहां के लोग अपनी परम्परा , रीति रिवाज और मान्यताओं का पालन करते है. समय-समय पर ऋतुओं , तिथि और त्योहार अनुसार विभिन्न उत्सवों और संस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है. प्रत्येक गांव, जिले, क्षेत्र की अपनी अलग मान्यताएं, पहचान और धार्मिक महत्व (Chhattisgarh art and culture ) हैं.

छत्तीसगढ़ राज्य जीवन्त सांस्कृतिक परंपराओं से संपन्न है. राज्य सरकार ने एक वर्ष में यहां की संस्कृति और परम्पराओं की पहचान के लिए कई अहम फैसले लिए हैं . जिसमें अरपा पैरी की धार गीत को राज्य गीत घोषित किया जाना शामिल है. अब सभी सरकारी कार्यक्रमों और आयोजनों की शुरूआत राज्य गीत से करने निर्णय लिया गया है. राज्य शासन ने राजधानी रायपुर में राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन किया. इस महोत्सव ने अब अन्तर्राष्ट्रीय आयोजन का स्वरूप ले लिया है. इसमें देश के अन्य राज्यों के साथ-साथ युगांडा, मालदीव, थाइलैण्ड, श्रीलंका, बेलारूस और बांग्लादेश के प्रतिनिधियों और लोक कलाकारों ने आकर इस महोत्सव के माध्यम से छत्तीसगढ़ की पहचान विदेशों में (Artists and Culture in Chhattisgarh) पहुंचाई.

कलाकारों के लिए नया मंच : राज्य सरकार ने राजिम कुंभ कल्प मेला अधिनियम 2006 में संशोधन करते हुए ‘छत्तीसगढ़ राजिम कुंभ मेला‘का नाम परिवर्तन कर उसका प्राचीन नाम‘राजिम माघी पुन्नी मेला‘ करके मूल स्वरूप में ला दिया है. राजिम माघी पुन्न्नी मेला के अवसर पर प्रदेश के 241 लोक कलाकार दलों को मंच प्रदान किया गया था, जिसमें लगभग 6 हजार से अधिक कलाकारों ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर लोगों का मनोरंजन किया. साथ ही पारंपरिक लोक खेलों एवं प्रतियोगिता में ग्रामीण अंचल के बच्चों ने बड़े उत्साह से हिस्सा लिया. इससे स्थानीय कलाकारों को काम मिला और साथ ही उनका मान और मनोबल बढ़ा है. राज्योत्सव में छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों को सांस्क्रतिक कार्यक्रमों के लिए अवसर दिया गया. जो छत्तीसगढ़ के कलाकारों को बढ़ावा देने राज्य सरकार का यह ठोस कदम (Teej and Festivals of Chhattisgarh) है.

छत्तीसगढ़ के विशिष्ट पहचान : छत्तीसगढ़ के गौरवशाली अतीत और संस्कृति के परिचायक कुलेश्वर मंदिर राजिम , सिद्धेश्वर मंदिर पलारी , स्वास्तिक बिहार सिरपुर , शिव मंदिर चन्दखुरी और आनंद प्रभु कुटी विहार , महामाया मंदिर रतनपुर , भोरमदेव मंदिर कवर्धा , जगन्नाथ मंदिर खल्लारी और बत्तीसा मंदिर बारसूर सहित पुरातत्वीय दृष्टि से महत्वपूर्ण 58 स्मारक को राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया गया हैं.

त्यौहारों और परंपराओं का समावेश : छत्तीसगढ़ में हरेली, तीजा-पोरा जैसे पारंपरिक त्यौहारों को प्रमुखता दी (tribal tradition of chhattisgarh ) गई . हरेली, तीजा, विश्व आदिवासी दिवस एवं छठ पूजा के लिए नए सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की (tradition of chhattisgarh) गई. दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा को भी सार्वजनिक अवकाश देने की घोषणा की गई है. छत्तीसगढ़ी राज भाषा का सामान्य काम काज में उपयोग को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ विधान सभा में एक दिन की कार्यवाही केवल छत्तीसगढ़ी भाषा में की गई. राज्य के कलाकारों और साहित्यकारों अथवा उनके परिवार के सदस्यों की लंबी गंभीर बीमारी, दुर्घटना, मृत्यु अथवा प्राकृतिक आपदा की स्थिति में 29 साहित्यकार, कलाकारों को आर्थिक मदद दी गई. जगदलपुर के आसना में बस्तर लोकनृत्य और साहित्य अकादमी की स्थापना की गई है. कांकेर गढ़िया पहाड़ के सौन्दर्यीकरण के लिए 2 करोड़ तथा गढ़िया महोत्सव के लिए प्रतिवर्ष 5 लाख देने का निर्णय लिया गया है. साथ ही साथ रामवन तथा माता कौशल्या मंदिर को पर्यटन और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से विकसित किया जा रहा है. बस्तर में आदिवासी संग्रहालय की स्थापना की गई (art in chhattisgarh ) है.

जनजातीय संस्कृति को आगे लाने का प्रयास : छत्तीसगढ़ में सम्पूर्ण भारत की कईं जातियां निवास करती हैं और यहां बहुत से आदिवासी , अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजातियां व पिछड़ा वर्ग भी निवास करते हैं। जिनमें अघरीया , बिंझवार , उरांव , गोंड , भतरा , हल्बा , सवरा , कंवर आदि प्रमुख जनजातियां हैं. बैगा , पहाड़ी कोरवा , अबूझमाड़िया , कमार , बिरहोर प्रमुख विशेष पिछड़ी जातियां हैं. इनके अनुसार अन्य जनजाति समूह भी यहां निवास करती हैं लेकिन इनकी संख्या अपेक्षाकृत कम है. छत्तीसगढ़ की जनजातीय एवं लोक संस्कृति की परंपरा की पहचान के लिए निरंतर पहल की जा रही है. कला रूपों के प्रदर्शन हेतु राज्य में एवं अन्य प्रदेशों में भी सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति की व्यवस्था की जाती है. पारंपरिक उत्सवों, अशासकीय संस्थाओं को आर्थिक सहायता प्रदान कर सांस्कृतिक गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. कबीर जयंती के अवसर पर पहली बार पूरे राज्य में ख्याति प्राप्त कबीर भजन गायकों का कार्यक्रम रायपुर, बिलासपुर, बेमेतरा एवं भिलाई-दुर्ग में आयोजित कराया गया. जिल कस्बों में मेला, महोत्सव, लोक मड़ई, कृषि मेला जैसे आयोजन करके अब छत्तीसगढ़ की परंपरा को लोगों के बीच लाया जा रहा है.

छत्तीसगढ़ राज्य की कला : किसी भी राज्य की कला वहां के राज्य , प्रदेश के नाच और गीतों के साथ वहां के आम जीवन , वस्तुओं , लोक कलाओं से भी समझी जा सकती है. छत्तीसगढ़ में लौह शिल्प कला , गोदना कला , बांस कला, लकड़ी की नक्काशी कला काफी प्रसिद्ध हैं. छत्तीसगढ़ में कला का क्षेत्र अति व्यापक है यहां सिरपुर महोत्सव , राजिम कुंभ , चक्रधर समारोह और बस्तर लोकोत्सव आदि जैसे सांस्कृतिक उत्सवों का आयोजन किया जाता है. जो छत्तीसगढ़ राज्य के महान और जीवंत सांस्कृतिक को प्रदर्शित करते हैं. छत्तीसगढ़ की कलाएं महान , उन्नत, प्रभावशाली , प्रसिद्ध हैं. जिसमें बस्तर का एक खास स्थान है. लेकिन आज के आधुनिक युग में प्रदेश की दूसरी कला और परंपराओं के विलुप्त होने के साथ पारंपरिक कलाओं के भी विलुप्त होने का डर बना हुआ है. यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी इन कलाओं को बरकरार रखें. आधुनिक युग में इन्हें अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय मंच मिले है. जिस कारण यहां की कलाएं भी बाहर पहचानी जाती है. छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा भी इन शिल्पों और कलाओं को आगे बढ़ाने और संरक्षित करने के लिए प्रयास किए गए हैं.जिसके लिए संस्थाओं का निर्माण भी किया गया है. जिनमें प्रमुख छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड , पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग , राज्य लोक कला परिषद शामिल हैं

छत्तीसगढ़ की कला एवं संस्कृति बहुआयामी है. वनों से आच्छादित और आदिवासी अधिकता के कारण यहां की कला में वनों , प्रकृति , प्राचीन और परम्परा का विशेष स्थान और महत्व है. छत्तीसगढ़ की कला में हमें कई प्रकार के लोक नृत्य , जातियां , लोक कला , मेले , भाषा , शिल्प और विशेष व्यंजन देखने को मिलते हैं. प्रदेश में यहां के आभूषणों , वस्त्रों का विशेष स्थान है जो यहां की संस्कृति को और प्रभावशाली और समृद्ध बनाती हैं. सरल जीवन जीते हुए यहां के लोग अपनी परम्परा , रीति रिवाज और मान्यताओं का पालन करते है. समय-समय पर ऋतुओं , तिथि और त्योहार अनुसार विभिन्न उत्सवों और संस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है. प्रत्येक गांव, जिले, क्षेत्र की अपनी अलग मान्यताएं, पहचान और धार्मिक महत्व (Chhattisgarh art and culture ) हैं.

छत्तीसगढ़ राज्य जीवन्त सांस्कृतिक परंपराओं से संपन्न है. राज्य सरकार ने एक वर्ष में यहां की संस्कृति और परम्पराओं की पहचान के लिए कई अहम फैसले लिए हैं . जिसमें अरपा पैरी की धार गीत को राज्य गीत घोषित किया जाना शामिल है. अब सभी सरकारी कार्यक्रमों और आयोजनों की शुरूआत राज्य गीत से करने निर्णय लिया गया है. राज्य शासन ने राजधानी रायपुर में राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन किया. इस महोत्सव ने अब अन्तर्राष्ट्रीय आयोजन का स्वरूप ले लिया है. इसमें देश के अन्य राज्यों के साथ-साथ युगांडा, मालदीव, थाइलैण्ड, श्रीलंका, बेलारूस और बांग्लादेश के प्रतिनिधियों और लोक कलाकारों ने आकर इस महोत्सव के माध्यम से छत्तीसगढ़ की पहचान विदेशों में (Artists and Culture in Chhattisgarh) पहुंचाई.

कलाकारों के लिए नया मंच : राज्य सरकार ने राजिम कुंभ कल्प मेला अधिनियम 2006 में संशोधन करते हुए ‘छत्तीसगढ़ राजिम कुंभ मेला‘का नाम परिवर्तन कर उसका प्राचीन नाम‘राजिम माघी पुन्नी मेला‘ करके मूल स्वरूप में ला दिया है. राजिम माघी पुन्न्नी मेला के अवसर पर प्रदेश के 241 लोक कलाकार दलों को मंच प्रदान किया गया था, जिसमें लगभग 6 हजार से अधिक कलाकारों ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर लोगों का मनोरंजन किया. साथ ही पारंपरिक लोक खेलों एवं प्रतियोगिता में ग्रामीण अंचल के बच्चों ने बड़े उत्साह से हिस्सा लिया. इससे स्थानीय कलाकारों को काम मिला और साथ ही उनका मान और मनोबल बढ़ा है. राज्योत्सव में छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों को सांस्क्रतिक कार्यक्रमों के लिए अवसर दिया गया. जो छत्तीसगढ़ के कलाकारों को बढ़ावा देने राज्य सरकार का यह ठोस कदम (Teej and Festivals of Chhattisgarh) है.

छत्तीसगढ़ के विशिष्ट पहचान : छत्तीसगढ़ के गौरवशाली अतीत और संस्कृति के परिचायक कुलेश्वर मंदिर राजिम , सिद्धेश्वर मंदिर पलारी , स्वास्तिक बिहार सिरपुर , शिव मंदिर चन्दखुरी और आनंद प्रभु कुटी विहार , महामाया मंदिर रतनपुर , भोरमदेव मंदिर कवर्धा , जगन्नाथ मंदिर खल्लारी और बत्तीसा मंदिर बारसूर सहित पुरातत्वीय दृष्टि से महत्वपूर्ण 58 स्मारक को राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया गया हैं.

त्यौहारों और परंपराओं का समावेश : छत्तीसगढ़ में हरेली, तीजा-पोरा जैसे पारंपरिक त्यौहारों को प्रमुखता दी (tribal tradition of chhattisgarh ) गई . हरेली, तीजा, विश्व आदिवासी दिवस एवं छठ पूजा के लिए नए सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की (tradition of chhattisgarh) गई. दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा को भी सार्वजनिक अवकाश देने की घोषणा की गई है. छत्तीसगढ़ी राज भाषा का सामान्य काम काज में उपयोग को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ विधान सभा में एक दिन की कार्यवाही केवल छत्तीसगढ़ी भाषा में की गई. राज्य के कलाकारों और साहित्यकारों अथवा उनके परिवार के सदस्यों की लंबी गंभीर बीमारी, दुर्घटना, मृत्यु अथवा प्राकृतिक आपदा की स्थिति में 29 साहित्यकार, कलाकारों को आर्थिक मदद दी गई. जगदलपुर के आसना में बस्तर लोकनृत्य और साहित्य अकादमी की स्थापना की गई है. कांकेर गढ़िया पहाड़ के सौन्दर्यीकरण के लिए 2 करोड़ तथा गढ़िया महोत्सव के लिए प्रतिवर्ष 5 लाख देने का निर्णय लिया गया है. साथ ही साथ रामवन तथा माता कौशल्या मंदिर को पर्यटन और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से विकसित किया जा रहा है. बस्तर में आदिवासी संग्रहालय की स्थापना की गई (art in chhattisgarh ) है.

जनजातीय संस्कृति को आगे लाने का प्रयास : छत्तीसगढ़ में सम्पूर्ण भारत की कईं जातियां निवास करती हैं और यहां बहुत से आदिवासी , अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजातियां व पिछड़ा वर्ग भी निवास करते हैं। जिनमें अघरीया , बिंझवार , उरांव , गोंड , भतरा , हल्बा , सवरा , कंवर आदि प्रमुख जनजातियां हैं. बैगा , पहाड़ी कोरवा , अबूझमाड़िया , कमार , बिरहोर प्रमुख विशेष पिछड़ी जातियां हैं. इनके अनुसार अन्य जनजाति समूह भी यहां निवास करती हैं लेकिन इनकी संख्या अपेक्षाकृत कम है. छत्तीसगढ़ की जनजातीय एवं लोक संस्कृति की परंपरा की पहचान के लिए निरंतर पहल की जा रही है. कला रूपों के प्रदर्शन हेतु राज्य में एवं अन्य प्रदेशों में भी सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति की व्यवस्था की जाती है. पारंपरिक उत्सवों, अशासकीय संस्थाओं को आर्थिक सहायता प्रदान कर सांस्कृतिक गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. कबीर जयंती के अवसर पर पहली बार पूरे राज्य में ख्याति प्राप्त कबीर भजन गायकों का कार्यक्रम रायपुर, बिलासपुर, बेमेतरा एवं भिलाई-दुर्ग में आयोजित कराया गया. जिल कस्बों में मेला, महोत्सव, लोक मड़ई, कृषि मेला जैसे आयोजन करके अब छत्तीसगढ़ की परंपरा को लोगों के बीच लाया जा रहा है.

छत्तीसगढ़ राज्य की कला : किसी भी राज्य की कला वहां के राज्य , प्रदेश के नाच और गीतों के साथ वहां के आम जीवन , वस्तुओं , लोक कलाओं से भी समझी जा सकती है. छत्तीसगढ़ में लौह शिल्प कला , गोदना कला , बांस कला, लकड़ी की नक्काशी कला काफी प्रसिद्ध हैं. छत्तीसगढ़ में कला का क्षेत्र अति व्यापक है यहां सिरपुर महोत्सव , राजिम कुंभ , चक्रधर समारोह और बस्तर लोकोत्सव आदि जैसे सांस्कृतिक उत्सवों का आयोजन किया जाता है. जो छत्तीसगढ़ राज्य के महान और जीवंत सांस्कृतिक को प्रदर्शित करते हैं. छत्तीसगढ़ की कलाएं महान , उन्नत, प्रभावशाली , प्रसिद्ध हैं. जिसमें बस्तर का एक खास स्थान है. लेकिन आज के आधुनिक युग में प्रदेश की दूसरी कला और परंपराओं के विलुप्त होने के साथ पारंपरिक कलाओं के भी विलुप्त होने का डर बना हुआ है. यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी इन कलाओं को बरकरार रखें. आधुनिक युग में इन्हें अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय मंच मिले है. जिस कारण यहां की कलाएं भी बाहर पहचानी जाती है. छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा भी इन शिल्पों और कलाओं को आगे बढ़ाने और संरक्षित करने के लिए प्रयास किए गए हैं.जिसके लिए संस्थाओं का निर्माण भी किया गया है. जिनमें प्रमुख छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विकास बोर्ड , पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग , राज्य लोक कला परिषद शामिल हैं

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