रायपुर: गणेश चतुर्थी को लेकर तैयारी जोर शोर से चल रही है. इस पर्व को लेकर शहर के मूर्तिकारों द्वारा अलग-अलग थीम पर मूर्तियां बनाई गई है, जो लगभग पूरी तरह बनकर तैयार भी हो चुका है. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मूर्तिकार के यहां लेकर आए हैं, जिनकी बनाई मूर्तियां न केवल चर्चा का विषय है, बल्कि आकर्षण का केंद्र भी. क्योंकि इस परिवार ने मौली धागा, सुपाड़ी, जुट की रस्सी, चंदन की मोती समेत अनेक पदार्थों की मूर्तियां बनाई है. वैसे तो मूर्तिकार शिव चरण यादव का परिवार आम दिनों में गुपचुप का ठेला लगाते हैं, लेकिन गणेशोसत्व के इस खास मौके पर पूरा परिवार एक होकर मूर्तियां बनाने में जुट जाते हैं. खास बात यह है कि यहां की मूर्तियां हर साल अलग-अलग थीम पर होती है, जिसकी वजह से दूर-दूर से लोग मूर्तियों का आर्डर देने आते हैं.
जुट रस्सी से बने बुद्धि के देवता
राजधानी रायपुर में यह पहली दफा होगा जब जुट रस्सी से बने बुद्धि के देवता विराजमान होंगे. करीब डेढ़ फीट की ऊंचाई से बने गजानंद पूरी तरह से जुट रस्सी से तैयार किया गया है. मूर्तिकार ने इसे बनाने में पूरे एक सप्ताह लगा दिए हैं. मूर्ति की शाइनिंग इतनी शानदार है कि आपको देखकर अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि यह मूर्ति जुट रस्सी से तैयार की गई हो. पगड़ी से लेकर धोती तक सब कुछ पूरी तरह जुट की रस्सी का इस्तेमाल हुआ है. इसे बनाने में करीब डेढ़ किलो जुट रस्सी लग गई है.
चंदन माला की मोती के गजानंद
मूर्तिकार परिवार ने चंदन माला की मोती से गजानंद को आकार दिया है. पूरी तरह से गजानंद का शरीर चंदन माला की मोती से बनाया गया है. एक एक मोती को इतनी बारीकी से मूर्ति पर लगाया गया है कि उसकी चमक देखते ही बन रही है. ऐसा लग रहा है मानों भगवान गणेश साक्षात दर्शन दे रहे हैं. मूर्तिकार की माने तो यह राजधानी रायपुर में पहली बार लोगों को चंदन माला की मोती के गजानंद के दर्शन होंगे.
मौली, सुपाड़ी और धान के भी लम्बोदर
मूर्तिकार शिव चरण के परिवार ने इस बार करीब 8 किस्म की मूर्तियां बनाई है. सभी मूर्तियां मनमोहक है. शिव चरण के परिवार ने मौली, सुपाड़ी, धान, क्रिस्टल मोती का उपयोग कर विभिन्न तरह की मूर्तियां बनाई है. मौली धागा से बने गजानंद पूरी तरह से धागा से बनाया गया है, जबकि सुपाड़ी वाले लम्बोदर में धान का भी इस्तेमाल किया है. वहीं चावल और धान से भी मूर्तियां बनाई है.
मूंग और दाल के भी गजानंद
मूर्तिकार की बेटी निशा यादव ने बताया कि मूंग और दाल के भी बुद्धि के देवता बनाए हैं. इसमें मूंग से पूरा शरीर तैयार किया गया है और दाल से धोती को बनाया गया है. इसके अलावा दाल का इस्तेमाल गहने के तौर पर भी किया है. वह कहती है कि और दाल से बने गजानंद को यदि नदी या तालाब में विसर्जित करें तो मछलियों के दाने का भी काम आ सकती है.
40 मूर्तियों की हो गई बिक्री
मूर्तिकार शिव चरण यादव की बेटी राशि यादव ने बताया कि विभिन्न इलाकों से मूर्ति बनाने के ऑर्डर मिलते हैं. इस बार भी आर्डर के आधार पर मूर्तियां बनाई गई थी. जिनमें से 40 लोगों ने ऑर्डर की मूर्तियां ले जा चुके हैं. अब बाकी बची मूर्तियां शहर के अलग-अलग इलाको के लिए है. उन्होंने बताया कि उनके परिवार को 10 साल हो गए हैं. अब तक 40-45 प्रकार की मूर्तियां बनाई जा चुकी है.
3 फीट तक की बनाई गई है मूर्तियां
कोरोना की तीसरी लहर को देखते हुए प्रशासन ने इस बार 3 फीट तक की ही मूर्तियां बनाने के निर्देश दिए थे, गणेश चतुर्थी नजदीक आते ही हालांकि उस पर प्रशासन ने संशोधन किया और 8 फीट तक की मूर्तियां बैठाने के आदेश दिए हैं, लेकिन इतनी कम समय में मूर्तियां बनाना संभव नहीं है. ऐसे में शिव चरण के परिवार के लोग महज 3 फ़ीट तक ही मूर्तियां बनाई है.
पूरा परिवार मिलकर तैयार करता है मूर्ति
रायपुर के महादेव घाट स्थित रहने वाले मूर्तिकार शिवचरण यादव की बेटी राशि यादव बताती है कि पूरा परिवार मिलकर मूर्तियां बनाता है. इस काम में उसकी पत्नी अनीता यादव और उसके बेटे रवि यादव, बेटी राशि यादव और सबसे छोटा बेटा राहुल यादव सभी मिलकर मूर्तियां बनाने का काम करते हैं. उन्होंने बताया कि बाकी दिनों पर गुपचुप का ठेला लगाते हैं जैसे ही गणेश उत्सव नजदीक आता है उसके बाद मूर्ति बनाने के काम में पूरा परिवार जूट जाता है.
1500 से लेकर 5 हजार तक मूर्तियां
पूर्ति का अर्थ यू चरण यादव ने बताया कि गणेश चतुर्थी से पांच छह माह पहले उन्हें आर्डर देना होता है. ऑर्डर के हिसाब से सामान भी निर्धारित करना होता है. उस लिहाज से फिर वह मूर्ति बनाने का काम करते हैं वैसे तो ज्यादातर मूर्तियां छोटी ही बनाने का काम करते हैं. लेकिन जब आर्डर मिलता है तो बड़ी मूर्तियां भी बनाते हैं. शिवचरण ने बताया कि उनके यहां 100 से लेकर 5000 तक की मूर्तियां बनाई जाती है. समान के हिसाब से इनके दाम और भी बढ़ सकते हैं.
कुछ लोग घर पर भी विराजते हैं गजानन
गणेश चतुर्थी के समय बहुत से लोग घर पर बुद्धि के देवता को विराजते हैं तो कई चौक चौराहे पर 11 दिनों तक भगवान गजानंद की पूजा अर्चना होती है. चौक चौराहे पर अधिकतर बड़ी मूर्तियां ही बैठाई जाती है और पूरे इलाके को दुल्हन की तरह सजाया जाता है. इसके साथ ही कई लोग गणेश चतुर्थी पर मूर्तियां खरीद कर हमेशा के लिए अपने घर में भगवान गजानंद को विराजते हैं.