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दोस्ती से कम होगा द्वन्द्व: लापरवाही और हक की लड़ाई में एक-दूसरे की जान लेते मानव और हाथी

इंसानों और हाथियों या यूं कहें जंगली जानवरों के बीच संघर्ष लंबे समय से चल रहा है. हाथियों से इंसानों के टकराव के पीछे घटते जंगल और बढ़ती इंसानी आबादी को वजह माना गया है. भारत में खासकर छत्तीसगढ़ में विकास की कहानी का सीधा मतलब आदमी और जानवर के टकराव से जुड़ा है और ये टकराव लगातार घटते जंगलों के कारण और बढ़ा है. ETV भारत ने छत्तीसगढ़ में हाथियों की मौत और उसकी वास्तविक परिस्थिति को लेकर पशु प्रेमी नितिन सिंघवी से खास बातचीत की है. जिसमें नितिन सिंघवी ने समस्या के साथ कई उपाय भी सुझाये हैं. देखिये हाथी-मानव द्वन्द्व पर ये विशेष रिपोर्ट...

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हाथी मेरे साथी
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Published : Sep 28, 2020, 12:14 PM IST

Updated : Sep 28, 2020, 3:53 PM IST

रायपुर: भारत में और खासकर छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में विकास और आधुनिकता की कहानी इंसानों और जंगली जानवरों की लड़ाई से शुरू होती है. छत्तीसगढ़ में हाथी और इंसान के बीच संघर्ष दशकों से जारी है. इस संघर्ष के लिए इंसान हाथियों को दोषी बताता है, जबकि कहा जाए तो हाथियों से संघर्ष के लिए सिर्फ और सिर्फ इंसान जिम्मेदार हैं.

दोस्ती से कम होगा द्वन्द्व

हाथियों की मौत को लिए इंसान तो जिम्मेदार हैं ही, मानव मौत के लिए भी इंसान ही जिम्मेदार हैं. छत्तीसगढ़ में 4 साल में करीब 46 हाथियों की मौत करंट की चपेट में आने से हुई है. इसमें 24 हाथियों की मौत अकेले रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ में हुई है. हाथी-मानव द्वन्द्व में इंसानों की मौत का आंकड़ा थोड़ा ज्यादा है. हाथी-मानव द्वन्द्व के पीछे लगातार घटते जंगल को बताया जा रहा है. छत्तीसगढ़ के सरगुजा, बलरामपुर, कोरिया, जशपुर, कोरबा, रायगढ़ महासमुंद जिले में हाथी विचरण करते हैं. जहां के लोग जंगली हाथियों के उत्पात से परेशान हैं. छत्तीसगढ़ के अलावा ओडिश, झारखंड और असम जैसे राज्यों में हाथी-मानव द्वन्द्व जारी है. बीते दो दशकों में हाथी के हमले से सैकड़ों लोगों ने अपनी जान गंवाई है. इंसानों को जान के साथ माल यानी घर और फसल के साथ जमापूंजी की गंवानी पड़ती है. दशकों पहले शुरू हुए हाथी-मानव द्वन्द्व आज बी बदस्तूर जारी है और दोनों ही अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे हैं.

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हाथी से करें दोस्ती

1987 में पहली बार छत्तीसगढ़ आये हाथी

छत्तीसगढ़ के पशु प्रेमी और जानवरों के जानकार नितिन सिंघवी का बताते हैं, पहली बार हाथी 1987 में अविभाजित छत्तीसगढ़ में पहुचा था. यह हाथी झारखंड और ओडिशा में हो रही माइनिंग के कारण छत्तीसगढ़ की जंगलों को ओर आये थे. इसके बाद से इन राज्यों से हाथियों का छत्तीसगढ़ आने का क्रम लगातार जारी रहा. छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद से अबतक बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों से हाथी छत्तीसगढ़ पहुंचे हैं.

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दोस्ती से कम होगा द्वन्द्व

मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ की ओर रूख कर रहे हाथी

नितिन सिंघवी बताते हैं, हाथी एक जगह नहीं रुकते हैं. वह लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान आते-जाते रहते हैं. झारखंड और ओडिशा से छत्तीसगढ़ पहुंचे हाथियों में से कुछ हाथी मध्यप्रदेश की ओर भी चले गए हैं. नितिन सिंघवी के मुताबिक वर्तमान में लगभग 40 से 46 हाथियों ने मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ की ओर रुख किया है, जहां वे शांतिपूर्ण ढंग से रह रहे हैं. नितिन सिंघवी बताते हैं, बांधवगढ़ में इंसानों और हाथियों के बीच संघर्ष जैसी स्थिति नहीं है.

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हाथी मेरे साथी

मानव-हाथी संघर्ष के पीछे का कारण
हाथियों की संख्या बढ़ती गई और हाथी और इंसान के बीच संघर्ष की स्थिति निर्मित हो गई. दोनों ही अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ने में लगे हुए हैं. इसमें कभी हाथी मारे जा रहे हैं, तो कभी इंसान. नितिन सिंघवी कहते हैं, जिस तरह से तेजी से जंगल को काटा जा रहा है, उससे इन हाथियों के सामने रहने-खाने की समस्या पैदा हो गई. जिसके कारण ये हाथी जंगल से निकलकर गांव और शहरों की ओर रुख कर रहे हैं. यहीं वजह है आए दिन इंसान और हाथी के बीच लड़ाई देखने को मिल रही है.

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हाथियों ने उजाड़ा घर

लोकसभा में अगस्त 2019 में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक

हाथी के हमले में इंसानों की मौत

  • 2016-17 में 74 लोगों की मौत
  • 2017-18 में 74 लोगों की मौत
  • 31 मार्च 2019 तक 56 लोगों की मौत
  • 2016 से अबतक 200 से ज्यादा लोगों की मौत
  • छत्तीसगढ़ में 3 साल में 204 लोगों की मौत
  • देश में 3 साल में 1,474 लोगों की मौत

छत्तीसगढ़ चौथे नंबर पर

  • 3 साल में असम 274 लोगों की मौत
  • ओडिशा में 243 लोगों की मौत
  • झारखंड में 230 लोगों की मौत
  • छत्तीसगढ़ में 204 लोगों की मौत
  • पश्चिम बंगाल में 202 लोगों की मौत

समस्या का समाधान
नितिन सिंघवी कहते हैं, हाथी की समस्या के समाधान के लिए सिर्फ इंसानों के बारे में न सोचते हुए हाथियों के बारे में भी सोचना होगा. लोगों को ध्यान देना होगा कि हाथी को किन-किन चीजों की जरूरत है. हाथी को दिनभर में डेढ़ सौ किलो खाना और 200 से 300 लीटर पानी की जरूरत होती है. इसके अलावा सुरक्षा और भ्रमण के लिए पर्याप्त जगह दे दी जाए तो शायद हाथी और इंसानों के बीच की लड़ाई में तोड़ी कमी आएगी.

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पशु प्रेमी नितिन सिंघवी

इंसानों को हाथियों के साथ सीखना होगा रहना

सिंघवी ने बताया कि इंसानों को भी यह सीखना होगा कि वे हाथी के साथ कैसे रहे. जब हाथी गांव में प्रवेश करता है और वन विभाग लोगों से हाथी के नजदीक न जाने की अपील करते हैं तो उस दौरान लोगों को वहां भीड़ नहीं लगाना चाहिए. शांति रखते हुए वहां से दूर चले जाना चाहिए इससे हाथी आक्रामक भी नहीं होते हैं.

पहले और अब की सरकार ने किए उपाय

हाथी रहवासी क्षेत्रों के विकास और प्रोजेक्ट एलीफेंट के नाम पर पिछले 10 साल में छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने करीब 64 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. 2018 में सर्वाधिक 1307 करोड़ खर्च किए. इसके बाद भी मौतों की संख्या में कमी होते नहीं दिख रहा है.

कुमकी हाथी रही फेल

जानकारी के मुताबिक खनिज न्यास मद से साल 2018 में 13 लाख रुपए खर्च कर उद्यानिकी विभाग ने 100 ग्रामीणों को मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग दी, लेकिन किट की खरीदी नहीं की गई. वन विभाग ने क्रेडा की मदद से साल 2015-16 में 11 लाख खर्चकर 25 किलोमीटर की सोलर फेंसिंग की गई थी. योजना के तहत 7 गांव में संयंत्र लगाने थे और फेसिंग में 72 किलोमीटर कबर होना था. 25 किलोमीटर के बाद यह दायरा आगे नहीं बढ़ सका. हालही में हाथियों की समस्या से निपटने प्रशिक्षित कुमकी हाथी को लाया गया, इस पर लाखों रुपए खर्च किए गए बावजूद इसके यह उपाय भी असफल रहा.

भूपेश बघेल ने लेमरू एलीफेंट रिजर्व शुरू किए जाने का किया ऐलान

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 15 अगस्त 2019 को इन हाथियों के लिए एक बड़ी परियोजना लेमरू एलीफेंट रिजर्व शुरू किए जाने का ऐलान किया था. इसके तहत कोरबा में करीब 450 वर्ग किलोमीटर घनघोर जंगल वाले लेमरू वन परिक्षेत्र में एलीफेंट रिजर्व बनाने का लक्ष्य रखा गया, लेकिन इसका काम अब तक शुरू नहीं हो सका है.

वन विभाग बनकर रह गया है सिर्फ प्रयोगशाला

नितिन सिंघवी का कहना है कि हाथियों की समस्या के समाधान के लिए वन विभाग सिर्फ प्रयोगशाला बन कर रह गया है, यहां अधिकारी शार्टटर्म में काम करना चाहते हैं और यही वजह है कि वन विभाग के प्रयोग हमेशा असफल रहे हैं. सिंघवी ने बताया कि हाथी से निपटने के लिए एक मित्र दल भी तैयार किया गया है, लेकिन यह मित्र दल हाथियों के ऊपर आग के गोले बरसाता है, जो हाथियों को आक्रामक बना देता है. इस कारण भी कई बार अप्रिय स्थिति निर्मित हो जाती है. उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ को बने 20 साल हो गए हैं, लेकिन इन 20 सालों में वन विभाग अब तक हाथियों के व्यवहार का अध्ययन नहीं कर सका है, जबकि इस समस्या से निपटने के लिए लाखों करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं. यदि हाथियों के व्यवहार का अध्ययन किया गया होता अब तक यह समस्या समाप्त हो गई होती.

वन विभाग में है एक्सपर्ट की कमी

नितिन सिंघवी ने बताया कि वन विभाग में एक्सपर्ट की कमी है, अधिकारी जैसा बताते हैं सरकार वैसा करती है. चाहे फिर हाथी के क्षेत्र को घेरने की बात हो या फिर वहां किसी अन्य तरह की व्यवस्था किए जाने की. कुछ समय पहले वन विभाग की ओर से हाथियों को रोकने के लिए हनी बी, यानी मधुमक्खियों का छत्ता लगाने की योजना बनाई गई थी जो असफल रहा.

हाथियों की करंट से मौत

  • छत्तीसगढ़ में अब तक 163 हाथियों की मौत
  • बिजली के करंट से 46 हाथी की मौत
  • 46 में से 24 हाथी सिर्फ धरमजयगढ़ में करंट की चपेट में आए

करंट से मौत पर एक्शन नहीं

सिंघवी ने कहा कि बिजली विभाग की लापरवाही के कारण लगातार करंट की वजह से हाथियों की मौत हो रही है, लेकिन वन विभाग ने इसे लेकर अब तक कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की. उन्होंने कहा कि करंट की वजह से हो रहे हाथियों की मौत को लेकर कई बार शासन-प्रशासन से शिकायत की गई, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है.


मुआवजा देना समस्या का समाधान नहीं
वन मंत्री मोहम्मद अकबर का कहना है कि हाथियों पर नियंत्रण करने एक्सपर्ट की राय ली जा रही है, हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि मानव और हाथियों के बीच चल रहा द्वंद्व युद्ध समाप्त हो और जनहानि ना हो इस पर काम किया जा रहा है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि सिर्फ मुआवजा देना ही इस समस्या का स्थाई हल नहीं है.


ऐसे में यह कहा जा सकता है कि हाथी प्रदेश के लिए समस्या नहीं है, बल्कि शासन-प्रशासन की लापरवाही दूरदर्शिता की कमी और सुनियोजित तरीके से इनके रखरखाव की व्यवस्था ना होना ही हाथी और इंसानों के बीच द्वंद की मुख्य वजह है. ऐसे में यदि सरकार सुनियोजित तरीके से व्यवस्थाओ को ध्यान में रखते हुए इंसानों और हाथियों को साथ में रखने का प्रशिक्षण देने की कोई योजना तैयार करती है उसका लाभ जरूर मिलेगा. इससे तीन दशक से हाथियों और इंसानों के बीच चले आ रहे द्वंद पर विराम लग सकता है.

रायपुर: भारत में और खासकर छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में विकास और आधुनिकता की कहानी इंसानों और जंगली जानवरों की लड़ाई से शुरू होती है. छत्तीसगढ़ में हाथी और इंसान के बीच संघर्ष दशकों से जारी है. इस संघर्ष के लिए इंसान हाथियों को दोषी बताता है, जबकि कहा जाए तो हाथियों से संघर्ष के लिए सिर्फ और सिर्फ इंसान जिम्मेदार हैं.

दोस्ती से कम होगा द्वन्द्व

हाथियों की मौत को लिए इंसान तो जिम्मेदार हैं ही, मानव मौत के लिए भी इंसान ही जिम्मेदार हैं. छत्तीसगढ़ में 4 साल में करीब 46 हाथियों की मौत करंट की चपेट में आने से हुई है. इसमें 24 हाथियों की मौत अकेले रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ में हुई है. हाथी-मानव द्वन्द्व में इंसानों की मौत का आंकड़ा थोड़ा ज्यादा है. हाथी-मानव द्वन्द्व के पीछे लगातार घटते जंगल को बताया जा रहा है. छत्तीसगढ़ के सरगुजा, बलरामपुर, कोरिया, जशपुर, कोरबा, रायगढ़ महासमुंद जिले में हाथी विचरण करते हैं. जहां के लोग जंगली हाथियों के उत्पात से परेशान हैं. छत्तीसगढ़ के अलावा ओडिश, झारखंड और असम जैसे राज्यों में हाथी-मानव द्वन्द्व जारी है. बीते दो दशकों में हाथी के हमले से सैकड़ों लोगों ने अपनी जान गंवाई है. इंसानों को जान के साथ माल यानी घर और फसल के साथ जमापूंजी की गंवानी पड़ती है. दशकों पहले शुरू हुए हाथी-मानव द्वन्द्व आज बी बदस्तूर जारी है और दोनों ही अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे हैं.

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हाथी से करें दोस्ती

1987 में पहली बार छत्तीसगढ़ आये हाथी

छत्तीसगढ़ के पशु प्रेमी और जानवरों के जानकार नितिन सिंघवी का बताते हैं, पहली बार हाथी 1987 में अविभाजित छत्तीसगढ़ में पहुचा था. यह हाथी झारखंड और ओडिशा में हो रही माइनिंग के कारण छत्तीसगढ़ की जंगलों को ओर आये थे. इसके बाद से इन राज्यों से हाथियों का छत्तीसगढ़ आने का क्रम लगातार जारी रहा. छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद से अबतक बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों से हाथी छत्तीसगढ़ पहुंचे हैं.

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दोस्ती से कम होगा द्वन्द्व

मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ की ओर रूख कर रहे हाथी

नितिन सिंघवी बताते हैं, हाथी एक जगह नहीं रुकते हैं. वह लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान आते-जाते रहते हैं. झारखंड और ओडिशा से छत्तीसगढ़ पहुंचे हाथियों में से कुछ हाथी मध्यप्रदेश की ओर भी चले गए हैं. नितिन सिंघवी के मुताबिक वर्तमान में लगभग 40 से 46 हाथियों ने मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ की ओर रुख किया है, जहां वे शांतिपूर्ण ढंग से रह रहे हैं. नितिन सिंघवी बताते हैं, बांधवगढ़ में इंसानों और हाथियों के बीच संघर्ष जैसी स्थिति नहीं है.

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हाथी मेरे साथी

मानव-हाथी संघर्ष के पीछे का कारण
हाथियों की संख्या बढ़ती गई और हाथी और इंसान के बीच संघर्ष की स्थिति निर्मित हो गई. दोनों ही अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ने में लगे हुए हैं. इसमें कभी हाथी मारे जा रहे हैं, तो कभी इंसान. नितिन सिंघवी कहते हैं, जिस तरह से तेजी से जंगल को काटा जा रहा है, उससे इन हाथियों के सामने रहने-खाने की समस्या पैदा हो गई. जिसके कारण ये हाथी जंगल से निकलकर गांव और शहरों की ओर रुख कर रहे हैं. यहीं वजह है आए दिन इंसान और हाथी के बीच लड़ाई देखने को मिल रही है.

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हाथियों ने उजाड़ा घर

लोकसभा में अगस्त 2019 में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक

हाथी के हमले में इंसानों की मौत

  • 2016-17 में 74 लोगों की मौत
  • 2017-18 में 74 लोगों की मौत
  • 31 मार्च 2019 तक 56 लोगों की मौत
  • 2016 से अबतक 200 से ज्यादा लोगों की मौत
  • छत्तीसगढ़ में 3 साल में 204 लोगों की मौत
  • देश में 3 साल में 1,474 लोगों की मौत

छत्तीसगढ़ चौथे नंबर पर

  • 3 साल में असम 274 लोगों की मौत
  • ओडिशा में 243 लोगों की मौत
  • झारखंड में 230 लोगों की मौत
  • छत्तीसगढ़ में 204 लोगों की मौत
  • पश्चिम बंगाल में 202 लोगों की मौत

समस्या का समाधान
नितिन सिंघवी कहते हैं, हाथी की समस्या के समाधान के लिए सिर्फ इंसानों के बारे में न सोचते हुए हाथियों के बारे में भी सोचना होगा. लोगों को ध्यान देना होगा कि हाथी को किन-किन चीजों की जरूरत है. हाथी को दिनभर में डेढ़ सौ किलो खाना और 200 से 300 लीटर पानी की जरूरत होती है. इसके अलावा सुरक्षा और भ्रमण के लिए पर्याप्त जगह दे दी जाए तो शायद हाथी और इंसानों के बीच की लड़ाई में तोड़ी कमी आएगी.

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पशु प्रेमी नितिन सिंघवी

इंसानों को हाथियों के साथ सीखना होगा रहना

सिंघवी ने बताया कि इंसानों को भी यह सीखना होगा कि वे हाथी के साथ कैसे रहे. जब हाथी गांव में प्रवेश करता है और वन विभाग लोगों से हाथी के नजदीक न जाने की अपील करते हैं तो उस दौरान लोगों को वहां भीड़ नहीं लगाना चाहिए. शांति रखते हुए वहां से दूर चले जाना चाहिए इससे हाथी आक्रामक भी नहीं होते हैं.

पहले और अब की सरकार ने किए उपाय

हाथी रहवासी क्षेत्रों के विकास और प्रोजेक्ट एलीफेंट के नाम पर पिछले 10 साल में छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने करीब 64 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. 2018 में सर्वाधिक 1307 करोड़ खर्च किए. इसके बाद भी मौतों की संख्या में कमी होते नहीं दिख रहा है.

कुमकी हाथी रही फेल

जानकारी के मुताबिक खनिज न्यास मद से साल 2018 में 13 लाख रुपए खर्च कर उद्यानिकी विभाग ने 100 ग्रामीणों को मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग दी, लेकिन किट की खरीदी नहीं की गई. वन विभाग ने क्रेडा की मदद से साल 2015-16 में 11 लाख खर्चकर 25 किलोमीटर की सोलर फेंसिंग की गई थी. योजना के तहत 7 गांव में संयंत्र लगाने थे और फेसिंग में 72 किलोमीटर कबर होना था. 25 किलोमीटर के बाद यह दायरा आगे नहीं बढ़ सका. हालही में हाथियों की समस्या से निपटने प्रशिक्षित कुमकी हाथी को लाया गया, इस पर लाखों रुपए खर्च किए गए बावजूद इसके यह उपाय भी असफल रहा.

भूपेश बघेल ने लेमरू एलीफेंट रिजर्व शुरू किए जाने का किया ऐलान

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 15 अगस्त 2019 को इन हाथियों के लिए एक बड़ी परियोजना लेमरू एलीफेंट रिजर्व शुरू किए जाने का ऐलान किया था. इसके तहत कोरबा में करीब 450 वर्ग किलोमीटर घनघोर जंगल वाले लेमरू वन परिक्षेत्र में एलीफेंट रिजर्व बनाने का लक्ष्य रखा गया, लेकिन इसका काम अब तक शुरू नहीं हो सका है.

वन विभाग बनकर रह गया है सिर्फ प्रयोगशाला

नितिन सिंघवी का कहना है कि हाथियों की समस्या के समाधान के लिए वन विभाग सिर्फ प्रयोगशाला बन कर रह गया है, यहां अधिकारी शार्टटर्म में काम करना चाहते हैं और यही वजह है कि वन विभाग के प्रयोग हमेशा असफल रहे हैं. सिंघवी ने बताया कि हाथी से निपटने के लिए एक मित्र दल भी तैयार किया गया है, लेकिन यह मित्र दल हाथियों के ऊपर आग के गोले बरसाता है, जो हाथियों को आक्रामक बना देता है. इस कारण भी कई बार अप्रिय स्थिति निर्मित हो जाती है. उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ को बने 20 साल हो गए हैं, लेकिन इन 20 सालों में वन विभाग अब तक हाथियों के व्यवहार का अध्ययन नहीं कर सका है, जबकि इस समस्या से निपटने के लिए लाखों करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं. यदि हाथियों के व्यवहार का अध्ययन किया गया होता अब तक यह समस्या समाप्त हो गई होती.

वन विभाग में है एक्सपर्ट की कमी

नितिन सिंघवी ने बताया कि वन विभाग में एक्सपर्ट की कमी है, अधिकारी जैसा बताते हैं सरकार वैसा करती है. चाहे फिर हाथी के क्षेत्र को घेरने की बात हो या फिर वहां किसी अन्य तरह की व्यवस्था किए जाने की. कुछ समय पहले वन विभाग की ओर से हाथियों को रोकने के लिए हनी बी, यानी मधुमक्खियों का छत्ता लगाने की योजना बनाई गई थी जो असफल रहा.

हाथियों की करंट से मौत

  • छत्तीसगढ़ में अब तक 163 हाथियों की मौत
  • बिजली के करंट से 46 हाथी की मौत
  • 46 में से 24 हाथी सिर्फ धरमजयगढ़ में करंट की चपेट में आए

करंट से मौत पर एक्शन नहीं

सिंघवी ने कहा कि बिजली विभाग की लापरवाही के कारण लगातार करंट की वजह से हाथियों की मौत हो रही है, लेकिन वन विभाग ने इसे लेकर अब तक कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की. उन्होंने कहा कि करंट की वजह से हो रहे हाथियों की मौत को लेकर कई बार शासन-प्रशासन से शिकायत की गई, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है.


मुआवजा देना समस्या का समाधान नहीं
वन मंत्री मोहम्मद अकबर का कहना है कि हाथियों पर नियंत्रण करने एक्सपर्ट की राय ली जा रही है, हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि मानव और हाथियों के बीच चल रहा द्वंद्व युद्ध समाप्त हो और जनहानि ना हो इस पर काम किया जा रहा है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि सिर्फ मुआवजा देना ही इस समस्या का स्थाई हल नहीं है.


ऐसे में यह कहा जा सकता है कि हाथी प्रदेश के लिए समस्या नहीं है, बल्कि शासन-प्रशासन की लापरवाही दूरदर्शिता की कमी और सुनियोजित तरीके से इनके रखरखाव की व्यवस्था ना होना ही हाथी और इंसानों के बीच द्वंद की मुख्य वजह है. ऐसे में यदि सरकार सुनियोजित तरीके से व्यवस्थाओ को ध्यान में रखते हुए इंसानों और हाथियों को साथ में रखने का प्रशिक्षण देने की कोई योजना तैयार करती है उसका लाभ जरूर मिलेगा. इससे तीन दशक से हाथियों और इंसानों के बीच चले आ रहे द्वंद पर विराम लग सकता है.

Last Updated : Sep 28, 2020, 3:53 PM IST
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