रायपुर: छत्तीसगढ़ के जंगलों में हाथियों का बसेरा है. बड़ी संख्या में हाथी छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों के जंगलों में विचरण करते हैं. लेकिन हाथियों की मौत और हाथियों के कारण वनांचलों में रहने वाले लोगों को होने वाली परेशानी एक बड़ी समस्या बनती जा रही है. (conflict between human and elephant) पिछले कुछ समय में छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में हाथियों की मौत हुई है. वहीं हाथियों ने भी रहवासी इलाकों में उत्पात मचाया है. कई लोगों की जान गई है. साथ ही ग्रामीण आर्थिक नुकसान झेल रहे हैं. (elephant movement fast in forests of chhattisgarh )
वर्तमान की भूपेश सरकार और उससे पहले की रमन सरकार की कोई भी योजना हाथी और मानव के द्वंद रोक पाने में अबतक सफल नहीं हो सकी है. मधुमक्खी पालन जैसी योजनाएं भी लागू की गई, लेकिन इसका असर नहीं दिखा. इसके अलावा लेमरू एलीफेंट कॉरिडोर का काम भी फिलहाल बेहद धीमी गति से चल रहा है. इस योजना को सरकार कई बार कारगर बता चुकी है. लेकिन इसे ग्रामीणों का विरोध भी झेलना पड़ रहा है. ETV भारत हाथी और मानव के बीच द्वंद को लेकर कई विस्तृत खबरें प्रकाशित कर चुका है. ETV भारत की टीम ने हाथियों के विचरण को लेकर पर्यावरणविद नितिन सिंघवी से बात की है. इसके अलावा छत्तीसगढ़ में विपक्ष भी सरकार पर इसे लेकर निशाना साध रहा है.
छत्तीसगढ़ में हाथियों की गतिविधियां हुई तेज
छत्तीसगढ़ में हाथियों की गतिविधियां तेज हो गई है. हाथियों के गतिविधियों के साथ ही हाथी प्रभावित क्षेत्रों में ग्रामीणों के बीच दहशत का माहौल बन गया है. वर्तमान में हाथियों का दल रायगढ़, सरगुजा, नवापारा से होकर दुधवा नदी के पास से होते हुए कांकेर जिला में प्रवेश किया है. हाथियों के कांकेर प्रवेश करते ही वहां के लोगों में दहशत का माहौल देखने को मिल रहा है. साथ ही यह शासन प्रशासन के लिए चिंता का विषय भी बना हुआ है. पहले के सालों में देखा गया है कि हाथी जब किसी क्षेत्र में जाते हैं तो वहां फसलों को नुकसान पहुंचता है. हाथी कई झोपड़ियों को तोड़ देते हैं. इतना ही नहीं कई बार हाथी इंसानों पर हमला भी करते हैं.
यहां हाथियों से बचने के लिए 'जेल' में रहने को मजबूर हैं 400 ग्रामीण
छत्तीसगढ़ के किन इलाकों संक्रिय हैं हाथी
छत्तीसगढ़ में सरगुजा, बलरामपुर, कोरिया, जशपुर, कोरबा, रायगढ़, महासमुंद, बालोद, सूरजपुर जिले जंगली हाथियों के उत्पात से काफी परेशान हैं. छत्तीसगढ़ के अलावा ओडिशा और झारखंड जैसे कुछ राज्यों में भी हाथियों की समस्या बनी हुई है.
छत्तीसगढ़ के जंगलों में क्यों आए हाथी?
पर्यावरणविद नितिन सिंघवी का मानना है कि कई दशकों के बाद पहली बार हाथियों ने साल 1988 में अविभाजित मध्यप्रदेश (वर्तमान में छत्तीसगढ़) के जगंलों में पहुंचे थे. यह हाथी झारखंड और ओडिशा से छत्तीसगढ़ आए थे. दरअसल झारखंड में माइनिंग और ओडिशा के जंगलों में इंसानों के प्रभाव से परेशान होकर हाथियों ने छत्तीसगढ़ की ओर रुख किया था. इसके बाद इन हाथियों का छत्तीसगढ़ आने का क्रम लगातार जारी रहा. छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद से अबतक काफी संख्या में हाथी यहां पहुंच चुके हैं. वे पिछले तीन दशकों से यहीं निवास कर रहे हैं. साथ ही उनका छत्तीसगढ़ के जंगलों से काफी मोह है. (Why elephants came in forests of Chhattisgarh )
संकट में गजराज: 10 दिन में 6 हाथियों ने गंवाई जान, मौत के कारण से विभाग अनजान
इंसानों को समझना होगा कि जंगल है हाथी का घर
नितिन सिंघवी मानते हैं कि हाथी और इंसान कभी साथी नहीं हो सकते हैं. लेकिन हमें यह भी समझना होगा इन हाथी को उनकी जगह में रहने दें. इंसान अपनी जगह में रहें. तभी इन दोनों के बीच अच्छा वातावरण निर्मित हो सकता है. लेकिन देखा जाता है कि लगातार इंसान जंगलों की कटाई कर रहे हैं. जिससे हाथियों के विचिरण का क्षेत्र कम होता जा रहा है. यही वजह है कि हाथी अब गांव की ओर रुख कर रहे हैं. इस दौरान कई बार इंसान की हाथियों के कारण मौत हो जाती है. कुछ जगहो पर इंसान हाथियों को मौत के घाट उतार देते हैं. (elephant problem in chhattisgarh)
क्या कभी रुकेगा हाथियों और इंसानों के बीच द्वंद?
नितिन सिंघवी का कहना है कि हाथी कभी आक्रामक नहीं होते हैं. लेकिन लोगों की गतिविधियां उसे आक्रामक बना देती हैं. कई बार लोग हाथी को देखने भीड़ लगा देते हैं. उसके साथ सेल्फी लेने लगते हैं. और हाथियों के गुस्से का शिकार हो जाते हैं. नितिन सिंघवी ने कहा कि हाथी झोपड़ियों को तोड़ देते हैं, लेकिन यह हाथी शौक के कारण या फिर खुशी से झोपड़ी नहीं तोड़ते हैं. नितिन सिंघवी का कहना है कि इन हाथियों के द्वारा झोपड़ी इसलिए तोड़ी जाती है क्योंकि वहां खाने का अनाज होता है. हाथियों को पता चल गया है कि जंगल में वह कितना भी खा ले लेकिन अनाज से मिलने वाली ताकत नहीं मिल सकती. यही कारण है कि वह अनाज की लालच में झोपड़ी को तोड़कर वहां घुस जाते हैं. इस बीच कई बार इंसानों की मौत भी हो जाती है.
दोस्ती से कम होगा द्वन्द्व: लापरवाही और हक की लड़ाई में एक-दूसरे की जान लेते मानव और हाथी
कितनी विकराल हुई छत्तीसगढ़ में हाथियों की समस्या
लोकसभा में अगस्त 2019 में प्रस्तुत एक आंकड़े के मुताबिक पिछले 3 सालों में छत्तीसगढ़ में 204 से अधिक लोगों की मौत हाथियों के कुचलने से हुई है.
- 3 साल में देश में कुल 1474 लोग मारे गए हैं.
- छत्तीसगढ़ में 2016-17 में 74 लोगों ने जान गवाई थी.
- 2017-18 में 74 लोगों की मौत हुई है.
- 31 मार्च 2019 की स्थिति में 56 लोगों की मौत हुई थी.
हाथियों की वजह से होने वाली मौत के मामले में छत्तीसगढ़ देश में चौथे स्थान पर
- 3 सालों में असम में 274 लोगों की जान गई.
- ओडिशा में 243 लोगों की मौत हुई.
- झारखंड में 230 लोगों की जान गई है.
- छत्तीसगढ़ 204 लोगों की मौत हाथियों के कारण गई.
- पश्चिम बंगाल में 202 लोगों की मौत हुई है.
2021 की गणना के मुताबिक कर्नाटक में सबसे ज्यादा हाथी पाए गए हैं. इसके बाद भी यहां केवल 83 मौत ही दर्ज हुई है. छत्तीसगढ़ की तुलना में कर्नाटक में मौत का आंकड़ा करीब 40% तक कम है. ऐसे में प्रदेश में इस मुद्दे को लेकर विपक्ष भी भूपेश सरकार को घेर रहा है.
द्वंद में हाथियों की भी गई जान
पिछले कुछ समय में छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में हाथियों की मौत हुई है. साल 2020 की बात करें तो छत्तीसगढ़ में जून 2020 में 6 हाथियों की मौत हुई थी. जिसके बाद कई अधिकारियों को सस्पेंड और कई को ट्रांसफर कर दिया गया था. उन हाथियों की मौत के मामले में वन विभाग के साथ-साथ विद्युत विभाग की लापरवाही सामने आई थी, इन सबके अलावा कई असामाजिक तत्वों की मिलीभगत का मामला भा सामने आया था. इससे पहले धरमजयगढ़ में 16 और 18 जून को भी 2 हाथियों की मौत हुई थी. छत्तीसगढ़ में चार साल में करीब 46 हाथियों की मौत करंट लगने से हुई है. इसमें 24 हाथियों की मौत अकेले रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ में हुई है. हाथी-मानव द्वंद में इंसानों की मौत का आंकड़ा थोड़ा ज्यादा है. कुल मिलाकर छत्तीसगढ़ में अब तक 163 हाथियों की मौत हुई है. (Elephants also lost their lives )
ढाई साल में एक भी कार्य योजना बनाई हो तो जनता के सामने करें प्रस्तुत : बृजमोहन अग्रवाल
विपक्ष में बैठी बीजेपी की बात की जाए तो उन्होंने भी कांग्रेस की सरकार पर हाथियों को लेकर नई नीतियां और कार्य योजना ना बनाने का आरोप लगाया है. हाथियों के आतंक को लेकर पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा है कि सरकार की ना ही कोई कार्य योजना है और ना ही नीति है. सरकार न ही हाथी और मानव के बीच का द्वंद रोकना चाहती है. सरकार हाथी परियोजना के नाम पर केवल भ्रष्टाचार कर रही है. इसके अलावा ढाई साल के कार्यकाल में कुछ नहीं किया है. ढाई साल में अगर एक भी कार्य योजना बनाई हो तो जनता के सामने प्रस्तुत करें.
सीएम भूपेश ने कहा ये हाथियों का पुराना रूट
सरकार की बात की जाए तो भूपेश सरकार का दावा है कि हाथी जिन क्षेत्रों में प्रवेश कर रहे हैं वहां से पहले भी गुजरते रहे हैं. यह उनका पुराना क्षेत्र है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि हाथी पहले रायगढ़, फिर सरगुजा की तरफ बढ़े और वह हाथी नीचे उतरते हुए बार नवापारा से होकर दुधावा नदी के पास होते हुए कांकेर जिले में प्रवेश किए हैं. यह शायद उनका पुराना रूट रहा है. वन विभाग इस पर निगरानी रखा है.
सूरजपुर में मिला हाथी का शव, वन विभाग कर रहा जांच
64 करोड़ खर्च करने के बाद भी नहीं रुका मौत का सिलसिला
हाथी रहवासी क्षेत्रों के विकास और प्रोजेक्ट एलीफेंट के नाम पर पिछले 10 साल में छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने करीब 64 करोड़ खर्च किए हैं. साल 2018 में सर्वाधिक 1307 करोड़ रुपए खर्च किए हैं. इसके बाद भी मौतों की संख्या में कमी होते नहीं दिख रही है.
सीएम भूपेश बघेल ने लेमरू एलीफेंट रिजर्व शुरू किए जाने का किया था ऐलान
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 15 अगस्त 2019 को इन हाथियों के लिए एक बड़ी परियोजना लेमरू एलीफेंट रिजर्व शुरू किए जाने का ऐलान किया था. इस प्रस्तावित एलीफेंट कॉरिडोर में 4 वनमंडल के 12 रेंज शामिल किए गए थे, जिनमें धरमजयगढ़, कोरबा, कटघोरा और सरगुजा क्षेत्र शामिल हैं. इसके तहत परिक्षेत्रों को मिलाकर करीब 450 वर्ग किलोमीटर घनघोर जंगल वाले लेमरू वन परिक्षेत्र में एलीफेंट रिजर्व बनेगा. लेकिन इसका काम अबतक शुरू नहीं हो सका है. देखना होगा कि छत्तीसगढ़ की भपेश सरकार कितने वक्त में इस द्वंद को रोक पाने में कितनी कामयाब होती है. (Lemru Elephant Corridor )