रायपुर: प्रदेश में NIA (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) को लेकर सत्तारूढ़ कांग्रेस और राज्य की विपक्षी दल बीजेपी के बीच तकरार बढ़ती जा रही है. रमन सरकार में मंत्री रहे बीजेपी के सीनियर विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने कहा है कि 'राज्य सरकार डरी हुई है'. वहीं राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्री अमरजीत भगत ने NIA के मामले को राजनीतिक बातों से परे और राज्य के अधिकारों को जरूरी बताया है.
प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने एनआईए अधिनियम 2008, (NIA Act) को असंवैधानिक करार देने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. सरकार ने शीर्ष अदालत में दलील दी है कि NIA कानून राज्य की शक्ति को कम करता है साथ ही अधिकारों का हनन करता है और केंद्र को मनमाना अधिकार देता है. सरकार की ओर से यह भी कहा गया है कि यह कानून NIA Act 2008 राज्य की संप्रभुता वाले विचार के खिलाफ है, जैसा कि संविधान में इसका जिक्र है. बीजेपी के सीनियर विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने कहा है कि राज्य सरकार डरी हुई है, साथ ही कहा कि 'प्रदेश सरकार को भारत के संघीय ढांचे पर विश्वास नहीं है, प्रदेश सरकार छत्तीसगढ़ को भारत मान बैठी है'.
पहली बार NIA को किसी राज्य सरकार ने दी है चुनौती
यह पहली बार हुआ है कि किसी राज्य सरकार की ओर से NIA को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है. इसके पहले प्रदेश के उच्च न्यायालय में इस पर याचिका लगाई गई थी. जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया. जिसके बाद अब सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है. इसमें कहा गया है कि 'NIA पुलिस के अधिकारों में दखल नहीं दे सकती है. इसके साथ ही यह पिटीशन भी दाखिल किया गया है कि छत्तीसगढ़ के किसी भी मामले में जांच करने का अधिकार NIA को नहीं मिलना चाहिए'.
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साल 2008 में बना था NIA कानून
NIA अधिनियम 2008 का गठन राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर किया गया है. NIA के गठन के वक्त केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. पी चिदंबरम के गृहमंत्री रहते हुए इसे बनाया गया था. ऐसे में प्रदेश सरकार उस अधिनियम को गलत ठहरा रही है जिसे खुद कांग्रेस की सरकार रहते बनाया और लागू किया गया है.