रायपुर/ सरगुजा: 2023 का छत्तीसगढ़ चुनाव जीतने के बाद अब छत्तीसगढ़ बीजेपी ने प्रदेश में सरकार बनाने की तैयारियां तेज कर दी है. सीएम कौन बनेगा अब ये पार्टी और जनता दोनों के लिए बड़ा सवाल हो गया है. भरतपुर सोनहत से चुनाव जीतकर आने वाली रेणुका सिंह की दमदारी का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि मोदी के मंत्रिमंडल में भी उनको जगह मिली. टीएस सिंह देव के गढ़ में घुसकर उन्होने कांग्रेस को न सिर्फ चुनौती दी बल्कि सरगुजा की सभी सीटों पर पार्टी को चुनाव भी जितवाया. भरतपुर सोनहत सीट से जिस गुलाब कमरो को रेणुका सिंह ने हराया वो कांग्रेस के मौजूदा विधायक थे.
सीएम बनने की रेस में सबसे आगे रेणुका सिंह: छत्तीसगढ़ की कद्दावर महिलाओं नेताओं में रेणुका सिंह सबसे आगे हैं. आदिवासी लोगों के बीच इनकी पैठ काफी गहरी है. राजनीति का लंबा अनुभव भी इनके पक्ष में जाता है. जिस तरह से सरगुजा संभाग में रेणुका सिंह ने प्रचार की कमान संभालकर पार्टी को एकतरफा जीत दिलाई वो काबिले तारीफ रहा. पार्टी जब छत्तीसगढ़ के सीएम पद के दावेदारी पर चर्चा करेगी तो रेणुका सिंह का नाम सबसे पहले आएगा. नारी वंदन योजना के पीछे भी इनका ही दिमाग था. कहा जाता है कि पार्टी ने जिस नारी वंदन योजना को चुनाव के दौरान लांच किया उसके पीछे का दिमाग रेणुका सिंह का ही था. रेणुका सिंह ने अपने प्रचार के दौरान पूरे सरगुजा संभाग में नारी वंदन योजना का फायद घर घर पहुंचाया. गोंड समाज पर रेणुका सिंह की पकड़ काफी जोरदार है. सरगुजा संभाग में गोंड समाज की अच्छी खासी संख्या है. लोकसभा चुनावों में अगर बीजेपी को ये रिकार्ड दोहराना है तो रेणुका सिंह उस जीत को सही रास्ता दे सकती हैं.
दिल्ली से लेकर छत्तीसगढ़ तक पकड़ मजबूत: विष्णुदेव साय के बाद रेणुका सिंह ही एक मात्र केंद्रीय राज्य मंत्री रहीं जिनको खुद मोदी ने अपनी कैबिनेट में जगह दिया. जनपद पंचायत से शुरु हुआ उनका लंबा संघर्ष ये बताता है कि वो कितनी बड़ी महिला नेता हैं. 1999 में पहली बार वो जनपद पंचायत के सदस्य के तौर पर चुनीं गईं. पार्टी ने उनका काम और मेहनत को देखते हुए साल 2000 में उनको रामानुजगंज मडंल का बीजेपी अध्यक्ष बनाया. यहां से शुरु आ उनका पार्टी सफर फिर आगे कभी रुका नहीं साल 2008 में दूसरी बार वो विधायक बन गईं.
लंबा राजनीतिक अनुभव और संगठन में सर्व प्रिय: साल 2002 में रेणुका सिंह को समाज कल्याण बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्ति किया गया. कल्याण बोर्ड का अध्यक्ष बनने के बाद रेणुका सिंह ने कई ऐसे बड़े फैसले लिए जिससे गरीबों का उत्थान हुआ और आदिवासी समाज में उनकी पैठ बढ़ती गई. छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाके से आने वाली रेणुका सिंह के बढ़के कद को पार्टी ने भी स्वीकार किया और साल 2019 में उनका सांसद का टिकट दिया. पार्टी आलाकमान के फैसले पर रेणुका सिंह खरी उतरीं और जीत दर्ज की. केंद्रीय नेतृत्व और खुद प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी तारीफ करते हुए उनको कैबिनेट में जगह दी. वर्तमान में रेणुका सिंह जनजातीय मामलों की केंद्रीय राज्य मंत्री हैं.
तेज तर्रार नेता के रुप में पहचान: कोरिया के छोटे से गांव पोडी बच्चा में उनका जन्म 5 जनवरी 1964 को हुआ था. ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई उनकी छत्तीसगढ़ में ही हुई. कॉलेज के जमाने से ही उनको उनके साथ तेज तर्रार नेता की तरह देखते थे, उनके भीतर नेता बनने और नेतृत्व करने का गुण भी देखते थे. रेणुका सिंह का विवाह सूरजपुर जिले में नरेंद्र सिंह के साथ हुआ. रेणुका सिंह की दो बेटियां है जिनका नाम पूर्णिमा सिंह और मोनिका सिंह हैं. रेणुका सिंह के दो बेटे भी हैं पहले का नाम यशवंत सिंह और दूसरे बेटे का नाम बलवंत सिंह है.
गोमती साय भी रेस में शामिल: पत्थलगांव विधानसभा सीट से जीतने वाली बीजेपी की महिला नेत्री गोमती साय भी सीएम पद की दौड़ में शामिल हैं. गोमती साय को विष्णुदेव साय का करीबी माना जाता है. गोमती साय भी मंडल स्तर से राजनीति करते हुए सांसद तक पहुंची हैं. गोमती साय की छवि पार्टी में तेज तर्रार महिला नेता के तौर पर मानी जाती हैं.आदिवासी चेहरा होने के चलते पार्टी को उनपर पूरा भरोसा है. गोमती साय के बारे में कहा जाता है कि सरगुजा संभाग में जितने भी जनजाति के लोग हैं उनमें सबसे अच्छी पकड़ उनकी ही है.
लता उसेंडी भी रेस में: रमन सिंह सरकार में मंत्री रहीं लता उसेंडी भी सीएम बनने की रेस में शामिल हैं. लता उसेंडी ने रमन सरकार में मंत्री रहते हुए कई बेहतर काम किए. आदिवासी इलाकों में उनके किए काम की तारीफ खुद अफसर भी करते हैं. लता उसेंडी के पास रमन सरकार में काम करने का अनुभव भी है और सरकार को चलाने की काबिलियत भी वो जानती हैं. पार्टी उनके चेहरे पर भी एक बार जरुर विचार कर सकती है.