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छत्तीसगढ़ में उपचुनाव का समीकरण, भानुप्रतापपुर उपचुनाव का नंबर है 14वां

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भानुप्रतापपुर उपचुनाव होने हैं. इस चुनाव को जहां सत्ताधारी दल कांग्रेस जीतकर अपनी सीट बचाना चाहेगी.वहीं बीजेपी भी इस सीट पर अपना दावा ठोककर विधानसभा चुनाव से पहले चार्ज होना चाहती है. छत्तीसगढ़ की इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है कि सरकार के चार साल में चार बार उपचुनाव हुए हैं.ऐसे में ये जानना जरुरी है कि उपचुनाव में किसका पलड़ा भारी रहता है.

छत्तीसगढ़ में उपचुनाव का समीकरण
छत्तीसगढ़ में उपचुनाव का समीकरण
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Published : Nov 11, 2022, 1:16 PM IST

Updated : Nov 11, 2022, 2:00 PM IST

रायपुर : छत्तीसगढ़ में भानुप्रतापपुर उपचुनाव (Bhanupratappur byelection 2022 ) की तैयारी शुरू हो गई है. यह सीट विधानसभा उपाध्यक्ष मनोज मंडाली की मौत के बाद खाली हुई है. यहां कांग्रेस, भाजपा और आप समेत कई पार्टियां जोर आजमाइश कर रही हैं. राज्य गठन के बाद से अब तक प्रदेश में विधानसभा के 13 उपचुनाव हो चुके हैं. भानुप्रतापपुर में होने वाला यह 14 वां उपचुनाव है. यदि इन उपचुनाव में जीत हार की बात करें तो केवल कोटा विधासभा में हुए उपचुनाव को छोड़कर सभी में सत्ताधारी दल की ही जीत हुई है. खास बात ये है कि राज्य के पहले दो उपचुनाव मुख्यमंत्रियों के लिए हुए हैं. आइये जानते हैं कब-कब उपचुनाव हुआ. किसकी जीत हुई है. आखिर सत्ताधारी दल ही उपचुनाव में क्यों विजयी होती है. (byelection equation in chhattisgarh)

पहले दो उपचुनाव मुख्यमंत्रियों के लिए हुए : छत्तीसगढ़ में अब तक हुए उपचुनाव में सबसे खास बात यह है कि पहले दो उपचुनाव राज्य के मुख्यमंत्रियों के लिए रहा. राज्य के पहले दोनों मुख्यमंत्री यानी जोगी और डॉ. रमन सिंह जब मुख्यमंत्री चुने गए, तब वे विधायक नहीं थे. जोगी के लिए तत्कालीन भाजपा विधायक रामदयाल उइके ने मरवाही सीट छोड़ी थी. तब से वे मरवाही से ही विधानसभा चुनाव लड़े और जीतते रहे. 2003 में जब भाजपा सरकार बनी, तब प्रदीप गांधी ने डॉ. रमन के लिए डोंगरगांव सीट खाली की. हालांकि जीतने के बाद रमन ने अपनी सीट बदल ली और राजनांदगांव से चुनाव लड़े . उसी सीट से तीसरी बार विधायक चुने गए हैं.


इतिहास में पहली बार चार साल में पांच उपचुनाव : छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार को चार वर्ष होने जा रहा है. इन चार वर्षों में अब तक चार विधानसभा में उपचुनाव हो चुके हैं. इससे सदन में कांग्रेस विधायकों की संख्या 68 से बढ़कर 71 पहुंच गई थी, लेकिन भानुप्रतापपुर से विधायक रहे विधानसभा उपाध्यक्ष मनोज मंडावी की मौत के बाद सदन में कांग्रेस विधायकों की संख्या 70 तक पहुंच गई है, जबकि विपक्ष की ताकत 22 से घटकर अब 19 रह गई है. विधानसभा उपाध्यक्ष की मौत के बाद अब भानुप्रतापपुर में उपचुनाव होने जा रहा है. इसी के साथ प्रदेश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी एक सरकार के कार्यकाल में पांचवी बार उपचुनाव होगा.


अब तक 13 उपचुनाव, कोटा के अलावा सभी में सत्ता की जीत : राज्य स्थापना के बाद से प्रदेश में 13 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव हुए हैं. इनमें से केवल एक कोटा को छोड़कर बाकी सभी सीटों पर जनता ने सत्ता का साथ दिया. यानी हर चुनाव में सत्तारुढ़ पार्टी के प्रत्याशी की जीत हुई. पॉलीटिकल रिपोर्टर और वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र पांडे बताते हैं कि '' राज्य के पहले विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद के निधन की वजह से खाली हुई कोटा सीट पर जब उपचुनाव हुआ, तब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी. इसके बावजूद वहां से कांग्रेस की डा. रेणु जोगी जीती थीं. हालांकि वर्तमान में पार्टी छोड़कर डॉ. रेणु जोगी जनता कांग्रेस जोगी से जुड़ गई हैं और वह अब कोटा विधानसभा की विधायक हैं.''


अब तक हो चुके 13, भानुप्रतापपुर में होने वाला 14 वां उपचुनाव : वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र पांडे बताते हैं कि राज्य गठन के बाद 13 उपचुनाव हुए हैं. भानुप्रतापपुर में 14 वां उपचुनाव होने जा रहा है. वहां विधानसभा उपाध्यक्ष मनोज मंडावी जी के निधन के बाद उपचुनाव हो रहा है. 13 उपचुनाव को देखें तो सत्ताधारी दल की ही विजय हुई है. प्रथम उपचुनाव अजीत जोगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद मरवाही से चुनाव लड़ा था. प्रथम विधानसभा उपाध्यक्ष रहे राजेंद्र प्रसाद शुक्ला जी के निधन के बाद कोटा विधानसभा सीट खाली हुई थी. उस दौरान भाजपा की सरकार थी. डॉ. रमन सिंह मुख्यमंत्री थे. उनके कार्यकाल में कांग्रेस उम्मीदवार डॉ. रेणु जोगी विजयी हुई थी. डॉ. रेणु जोगी उस समय से लेकर अब तक कोटा से चुनाव जीतते आ रहीं है.

आखिर क्यों सत्ताधारी दल की होती है जीत : वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र बताते हैं कि '' जो वोटर होते हैं उनके मन में एक स्योरिटी का भाव रहता है कि सत्ताधारी दल का विधायक चुना जाएगा. तो उसके विधानसभा क्षेत्र में विकास होगा. उपचुनाव आमतौर पर जो विपरित परिस्थितियां बनती है, जैसे अभी पिछले भूपेश बघेल जी के कार्यकाल में यह पांचवा उपचुनाव है. आप देखेंगे कि दंतेवाड़ा विधानसभा से भाजपा के विधायक थे भीमा मंडावी. उनकी नक्सलियों ने हत्या कर दी थी. वहां पर भी जनता ने देवती कर्मा के प्रति विश्वास जताया. वह विश्वास कुल मिलाकर सरकार के प्रति विश्वास होता है. खैरागढ़ उपचुनाव उसका सबसे बड़ा उदाहरण है. वहां कांग्रेस सरकार ने घोषणा की, हम जिला बनाएंगे. उसके बाद वोटरों ने एक दम दिल खोलकर वोट किया. यही वजह है कि लोगों को लगता है कि सत्ताधारी दल के साथ जानें पर उनका विकास होगा. यही एक पैमाना रहता है कि आमतौर पर सत्ताधारी दल ही जीतते हैं. यदि कहीं आक्रोश जैसी स्थिति होती है तो कोटा उपचुनाव में देखने को मिला. जिसमें भाजपा सरकार में कांग्रेस ने जीता. फिलहाल आक्रोश की स्थिति अभी नहीं है.


जानिए कब कब हुआ उपचुनाव
2000-03 मरवाही: रामदयाल उइके ने सीट खाली की और अजीत जोगी जीते.
2003-08 डोंगरगांव: प्रदीप गांधी ने सीट खाली की और डॉ. रमन सिंह जीते.
2003-08 मालखरौदा: निर्मल सिन्हा ने कांग्रेस विधायक के चुनाव को हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिससे निर्वाचन रद्द हुआ और वे उपचुनाव में जीते.
2003-2008 कोटा: राजेंद्र प्रसाद शुक्ल के निधन के बाद डॉ. रेणु जोगी जीतीं.
2008-13 खैरागढ़: देवव्रत सिंह के सांसद बनने पर खाली हुई सीट पर कोमल जंघेल जीते.
2008-2013 केशकाल: महेश बघेल के निधन के बाद सेवक राम नेताम की जीत हुई.
2008-2013 भटगांव: रविशंकर त्रिपाठी के निधन के बाद उनकी पत्नी रजनी त्रिपाठी जीतीं.
2008-2013 संजारी बालोद: मदनलाल साहू के निधन के बाद उनकी पत्नी कुमारी बाई जीतीं।
2013-18 अंतागढ़: विक्रम उसेंडी के सांसद बनने के बाद खाली सीट पर भोजराज नाग जीते.
2018 से अब तकः दंतेवाड़ा में नक्सल हमले में भीमा मंडावी के निधन के बाद देवती कर्मा की जीत हुई. चित्रकोट में दीपक बैज के सांसद बनने के बाद खाली सीट पर राजमन बेंजाम जीते.

2021 मरवाही में अजीत जोगी के निधन के बाद डॉ. केके ध्रुव की जीत हुई.

2022खैरागढ़ में देवव्रत सिंह के निधन के बाद यशोदा वर्मा जीतीं.

रायपुर : छत्तीसगढ़ में भानुप्रतापपुर उपचुनाव (Bhanupratappur byelection 2022 ) की तैयारी शुरू हो गई है. यह सीट विधानसभा उपाध्यक्ष मनोज मंडाली की मौत के बाद खाली हुई है. यहां कांग्रेस, भाजपा और आप समेत कई पार्टियां जोर आजमाइश कर रही हैं. राज्य गठन के बाद से अब तक प्रदेश में विधानसभा के 13 उपचुनाव हो चुके हैं. भानुप्रतापपुर में होने वाला यह 14 वां उपचुनाव है. यदि इन उपचुनाव में जीत हार की बात करें तो केवल कोटा विधासभा में हुए उपचुनाव को छोड़कर सभी में सत्ताधारी दल की ही जीत हुई है. खास बात ये है कि राज्य के पहले दो उपचुनाव मुख्यमंत्रियों के लिए हुए हैं. आइये जानते हैं कब-कब उपचुनाव हुआ. किसकी जीत हुई है. आखिर सत्ताधारी दल ही उपचुनाव में क्यों विजयी होती है. (byelection equation in chhattisgarh)

पहले दो उपचुनाव मुख्यमंत्रियों के लिए हुए : छत्तीसगढ़ में अब तक हुए उपचुनाव में सबसे खास बात यह है कि पहले दो उपचुनाव राज्य के मुख्यमंत्रियों के लिए रहा. राज्य के पहले दोनों मुख्यमंत्री यानी जोगी और डॉ. रमन सिंह जब मुख्यमंत्री चुने गए, तब वे विधायक नहीं थे. जोगी के लिए तत्कालीन भाजपा विधायक रामदयाल उइके ने मरवाही सीट छोड़ी थी. तब से वे मरवाही से ही विधानसभा चुनाव लड़े और जीतते रहे. 2003 में जब भाजपा सरकार बनी, तब प्रदीप गांधी ने डॉ. रमन के लिए डोंगरगांव सीट खाली की. हालांकि जीतने के बाद रमन ने अपनी सीट बदल ली और राजनांदगांव से चुनाव लड़े . उसी सीट से तीसरी बार विधायक चुने गए हैं.


इतिहास में पहली बार चार साल में पांच उपचुनाव : छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार को चार वर्ष होने जा रहा है. इन चार वर्षों में अब तक चार विधानसभा में उपचुनाव हो चुके हैं. इससे सदन में कांग्रेस विधायकों की संख्या 68 से बढ़कर 71 पहुंच गई थी, लेकिन भानुप्रतापपुर से विधायक रहे विधानसभा उपाध्यक्ष मनोज मंडावी की मौत के बाद सदन में कांग्रेस विधायकों की संख्या 70 तक पहुंच गई है, जबकि विपक्ष की ताकत 22 से घटकर अब 19 रह गई है. विधानसभा उपाध्यक्ष की मौत के बाद अब भानुप्रतापपुर में उपचुनाव होने जा रहा है. इसी के साथ प्रदेश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी एक सरकार के कार्यकाल में पांचवी बार उपचुनाव होगा.


अब तक 13 उपचुनाव, कोटा के अलावा सभी में सत्ता की जीत : राज्य स्थापना के बाद से प्रदेश में 13 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव हुए हैं. इनमें से केवल एक कोटा को छोड़कर बाकी सभी सीटों पर जनता ने सत्ता का साथ दिया. यानी हर चुनाव में सत्तारुढ़ पार्टी के प्रत्याशी की जीत हुई. पॉलीटिकल रिपोर्टर और वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र पांडे बताते हैं कि '' राज्य के पहले विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद के निधन की वजह से खाली हुई कोटा सीट पर जब उपचुनाव हुआ, तब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी. इसके बावजूद वहां से कांग्रेस की डा. रेणु जोगी जीती थीं. हालांकि वर्तमान में पार्टी छोड़कर डॉ. रेणु जोगी जनता कांग्रेस जोगी से जुड़ गई हैं और वह अब कोटा विधानसभा की विधायक हैं.''


अब तक हो चुके 13, भानुप्रतापपुर में होने वाला 14 वां उपचुनाव : वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र पांडे बताते हैं कि राज्य गठन के बाद 13 उपचुनाव हुए हैं. भानुप्रतापपुर में 14 वां उपचुनाव होने जा रहा है. वहां विधानसभा उपाध्यक्ष मनोज मंडावी जी के निधन के बाद उपचुनाव हो रहा है. 13 उपचुनाव को देखें तो सत्ताधारी दल की ही विजय हुई है. प्रथम उपचुनाव अजीत जोगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद मरवाही से चुनाव लड़ा था. प्रथम विधानसभा उपाध्यक्ष रहे राजेंद्र प्रसाद शुक्ला जी के निधन के बाद कोटा विधानसभा सीट खाली हुई थी. उस दौरान भाजपा की सरकार थी. डॉ. रमन सिंह मुख्यमंत्री थे. उनके कार्यकाल में कांग्रेस उम्मीदवार डॉ. रेणु जोगी विजयी हुई थी. डॉ. रेणु जोगी उस समय से लेकर अब तक कोटा से चुनाव जीतते आ रहीं है.

आखिर क्यों सत्ताधारी दल की होती है जीत : वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र बताते हैं कि '' जो वोटर होते हैं उनके मन में एक स्योरिटी का भाव रहता है कि सत्ताधारी दल का विधायक चुना जाएगा. तो उसके विधानसभा क्षेत्र में विकास होगा. उपचुनाव आमतौर पर जो विपरित परिस्थितियां बनती है, जैसे अभी पिछले भूपेश बघेल जी के कार्यकाल में यह पांचवा उपचुनाव है. आप देखेंगे कि दंतेवाड़ा विधानसभा से भाजपा के विधायक थे भीमा मंडावी. उनकी नक्सलियों ने हत्या कर दी थी. वहां पर भी जनता ने देवती कर्मा के प्रति विश्वास जताया. वह विश्वास कुल मिलाकर सरकार के प्रति विश्वास होता है. खैरागढ़ उपचुनाव उसका सबसे बड़ा उदाहरण है. वहां कांग्रेस सरकार ने घोषणा की, हम जिला बनाएंगे. उसके बाद वोटरों ने एक दम दिल खोलकर वोट किया. यही वजह है कि लोगों को लगता है कि सत्ताधारी दल के साथ जानें पर उनका विकास होगा. यही एक पैमाना रहता है कि आमतौर पर सत्ताधारी दल ही जीतते हैं. यदि कहीं आक्रोश जैसी स्थिति होती है तो कोटा उपचुनाव में देखने को मिला. जिसमें भाजपा सरकार में कांग्रेस ने जीता. फिलहाल आक्रोश की स्थिति अभी नहीं है.


जानिए कब कब हुआ उपचुनाव
2000-03 मरवाही: रामदयाल उइके ने सीट खाली की और अजीत जोगी जीते.
2003-08 डोंगरगांव: प्रदीप गांधी ने सीट खाली की और डॉ. रमन सिंह जीते.
2003-08 मालखरौदा: निर्मल सिन्हा ने कांग्रेस विधायक के चुनाव को हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिससे निर्वाचन रद्द हुआ और वे उपचुनाव में जीते.
2003-2008 कोटा: राजेंद्र प्रसाद शुक्ल के निधन के बाद डॉ. रेणु जोगी जीतीं.
2008-13 खैरागढ़: देवव्रत सिंह के सांसद बनने पर खाली हुई सीट पर कोमल जंघेल जीते.
2008-2013 केशकाल: महेश बघेल के निधन के बाद सेवक राम नेताम की जीत हुई.
2008-2013 भटगांव: रविशंकर त्रिपाठी के निधन के बाद उनकी पत्नी रजनी त्रिपाठी जीतीं.
2008-2013 संजारी बालोद: मदनलाल साहू के निधन के बाद उनकी पत्नी कुमारी बाई जीतीं।
2013-18 अंतागढ़: विक्रम उसेंडी के सांसद बनने के बाद खाली सीट पर भोजराज नाग जीते.
2018 से अब तकः दंतेवाड़ा में नक्सल हमले में भीमा मंडावी के निधन के बाद देवती कर्मा की जीत हुई. चित्रकोट में दीपक बैज के सांसद बनने के बाद खाली सीट पर राजमन बेंजाम जीते.

2021 मरवाही में अजीत जोगी के निधन के बाद डॉ. केके ध्रुव की जीत हुई.

2022खैरागढ़ में देवव्रत सिंह के निधन के बाद यशोदा वर्मा जीतीं.

Last Updated : Nov 11, 2022, 2:00 PM IST
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