रायपुर: राज्य सरकार द्वारा प्रदेश में इस बार धान की बंपर खरीदी की (chhattisgarh bumper paddy purchase ) गई है. विभाग की मानें तो 97.97 लाख मैट्रिक टन धान की खरीदी सरकार द्वारा की गई है, जिसके एवज में सरकार ने उन्हें लगभग 20 हजार करोड़ रुपए का भुगतान किया है. इस विषय में कांग्रेस का कहना है कि इससे किसान आर्थिक रूप से मजबूत (bumper paddy purchase impact on economy in chhattisgarh) होगा. वे इस पैसे का इस्तेमाल किसान बाजार में करेंगे, जिससे बाजार भी मजबूत (Bumper paddy purchase impact on farmers in chhattisgarh) होगा.
हालांकि विपक्ष का कहना है कि केंद्र सरकार के द्वारा केंद्रीय पूल में धान का कोटा बढ़ाए जाने के कारण किसानों को ज्यादा लाभ मिला(paddy purchase complete in Chhattisgarh) है. लेकिन अर्थशास्त्री का मानना है कि जहां एक ओर किसानों को दी गई इस राशि से बाजार में थोड़ा असर पड़ेगा. इसके अलावा इसका असर सरकार के खजाने पर भी पड़ेगा. अर्थशास्त्री का यह भी कहना है कि इस राशि का उपयोग किसान आगामी फसलों, जमीन को खरीदने या फिर खेती से संबंधित चीजों में नहीं कर रहे हैं. बल्कि मोटरसाइकिल, कार, व्हीकल या फिर अन्य इलेक्ट्रॉनिक चीजों पर खर्च कर रहे हैं. जिससे दीर्घकालीन लाभ उन्हें नहीं मिलेगा. इसके लिए दी जाने वाली राशि का किस तरह प्रयोग किया जाए, इसकी जानकारी भी किसानों को देनी होगी.
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किसानों के लाभ से बाजार मजबूत
इस विषय में कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर का कहना है कि जब भी राज्य सरकार द्वारा किसानों की जेब में पैसा डाला गया है तो उससे बाजार में काफी उठाव आया है. चाहे वह कपड़ा मार्केट हो, ज्वेलरी मार्केट हो, कृषि यंत्र या फिर वाहन का बाजार हो. अभी धान बेचने के बाद जो किसानों के जेब में 20 हजार करोड़ आया है. वह पैसा बाजार में आएगा और बाजार मजबूत होगा. कोरोना काल में केंद्र सरकार की गलत नीतियों के कारण देश के अन्य राज्यों में जहां आर्थिक मंदी देखने को मिल रही है. वहीं छत्तीसगढ़ सरकार के लिए गए निर्णय की वजह से छत्तीसगढ़ में इस आर्थिक मंदी का असर देखने को नहीं मिला. बल्कि छत्तीसगढ़ आर्थिक रूप से मजबूत हुआ है.
केन्द्र के कारण किसानों के जेब में पहुंचा पैसाः भाजपा
इस मुद्दे पर भाजपा नेता गौरीशंकर श्रीवास का कहना है कि केंद्र सरकार ने समर्थन मूल्य पर धान खरीदा, केंद्रीय पूल में चावल का कोटा बढ़ाया. जिसके कारण इतना बड़ा लक्ष्य छत्तीसगढ़ को हासिल हुआ है और किसानों को भुगतान किया गया है. राज्य सरकार के द्वारा मात्र बोनस की राशि दी गई है. पिछले साल के बोनस की राशि अब तक किसानों को मुहैया नहीं करायी गई है. इस साल के बोनस की राशि उन्हें कब तक मिलेगी यह भी स्पष्ट नहीं है. टुकड़े-टुकड़े में किसानों को बोनस की राशि दी जा रही है. इसलिए कांग्रेस सरकार को बहुत ज्यादा उत्साहित होने की आवश्यकता नहीं है. जो किसानों के खाते में आज पैसा पहुंचा है, वह केंद्र सरकार के कारण पहुंचा है.
राशि का किसान खेती में करें उपयोग-अर्थशास्त्री
इस विषय में अर्थशास्त्री प्रोफेसर तपेश गुप्ता का कहना है कि जो किसानों के जेब में राशि आ रही है, उसका उपयोग किसान किस तरीके से करता है.. यह देखना होगा. क्योंकि अब तक का जो अनुभव रहा है कि किसानों को जो राशि मिलती रही है, उस पैसे का इस्तेमाल किसान अपने घरेलू आवश्यकताओं या गाड़ी, मोटर, टीवी खरीदने मकानों में या फिर अन्य वस्तुओं की खरीदी में करता रहा है. खासकर इलेक्ट्रॉनिक मार्केट भी उस दौरान काफी आगे है. सरकार द्वारा इतनी बड़ी राशि बांटी जा रही है. पैसा बाजार में सर्कुलेट भी हो रहा है लेकिन इस बीच यह भी बात सामने आ रही है कि सरकार का खजाना खाली हो रहा है इसका भी अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ेगा. सरकार का समाज कल्याण योजनाओं पर योगदान तो रहेगा लेकिन विकास से संबंधित कार्यों पर व्यवधान उत्पन्न हो सकता है. पूंजीगत यानी कि कैपिटल निवेश कम होगा.
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किसानों में वित्तीय जागरूकता जरूरी
अर्थशास्त्री प्रोफेसर तपेश गुप्ता ने कहा कि इससे अनाज का बाजार बहुत मजबूत होगा. किसानों को प्रोत्साहन मिलेगा, लेकिन इस दौरान यदि किसानों में वित्तीय जागरूकता पैदा की जाए तो वह कहीं ज्यादा फायदेमंद होगा. इससे पंजाब के बाद सबसे ज्यादा आर्थिक रूप से सबल किसान छत्तीसगढ़ का ही होगा. सरकार को किसानों को यह बताना होगा कि जो राशि दी जा रही है उसे कहां खर्च किया जाए, क्योंकि यह चीजें कुछ समय के लिए ठीक लगती है लेकिन कृषि के लिए भी इस राशि का खर्च होना चाहिए. जो वर्तमान किसानों के द्वारा नहीं किया जा रहा है. यानी कि इस राशि से न तो किसान जमीन और ट्रैक्टर खरीद रहे हैं और ना ही उस अनुपात में कृषि से संबंधित अन्य उपकरण खरीदे जा रहे हैं. हालांकि बड़े किसान इसका समुचित उपयोग कर रहे हैं, लेकिन छोटे-मोटे किसान इस आर्थिक मैनेजमेंट से अछूते हैं.
कोरोनाकाल में ऑटोमोबाइल्स के मार्केट में उछाल
अर्थशास्त्री प्रोफेसर तपेश गुप्ता ने उदाहरण देते हुए कहा कि जब कोरोना काल में पूरे देश में ऑटोमोबाइल्स का मार्केट क्रैश हुआ था, तब छत्तीसगढ़ में ऑटो मोबाइल का मार्केट उछाल में था. इसके पीछे मुख्य वजह किसानों को मिली राशि थी. दूसरा उदाहरण इसके पहले नया रायपुर बनाया गया, उस दौरान भी किसानों को अच्छी खासी राशि दी गई. लेकिन एक भी किसान ने खेत नहीं खरीदा. किसी ने भी अपने खेत के विस्तार के लिए विचार नहीं किया. वह उपभोगवादी दृष्टिकोण में चला गया. इसलिए हमको कृषक को जागरूक करना होगा कि कृषि उसका व्यवसाय है. यदि उसमें इन्वेस्ट किया जाएगा तो उसका विकास होगा. यदि किसान ऐसा नहीं करता है और दूसरी चीजों की खरीदी करता है. तो उससे जरूर कुछ समय के लिए बाजार मजबूत होगा. सरकार को राजस्व मिलेगा. लेकिन जिस उद्देश्य को लेकर धान खरीद रहे हैं. किसानों को आर्थिक रूप से सबल बनाने का प्रयास किया जा रहा है वह नहीं हो पाएगा. अल्पकालीन जीवन स्तर जरूर उठेगा लेकिन दीर्घकालीन के लिए उनके व्यापार यानी कि कृषि संबंधी बुनियाद को मजबूत करना जरूरी है.
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ये है धान खरीदी का रिकॉर्ड
खाद्य विभाग से मिली जानकारी के अनुसार 7 फरवरी की स्थिति में सरकार ने 97.97 लाख मेट्रिक टन धान की खरीदी की है, जो रिकॉर्ड खरीदी रही है. इस साल धान खरीदी 1 दिसंबर 2021 से शुरू की गई जो कि 7 फरवरी 2022 को संपन्न हुई. पिछले साल की बात करे तो वर्ष 2021 में 92 लाख मैट्रिक टन, वर्ष 2020 में 83.94 लाख मैट्रिक टन और साल 2019 में 80.37 लाख मैट्रिक टन धान की खरीदी की गई है. इस साल खरीफ विपणन वर्ष 2021-22 में धान बेचने के लिए कुल 24,06,560 किसानों ने पंजीयन कराया था, जिनके द्वारा बोये गए धान का रकबा 30 लाख 10 हजार 880 हेक्टेयर है, जबकि गत वर्ष पंजीकृत धान का रकबा 27 लाख 92 हजार 827 एकड़ था. यदि एक साल के आंकड़ों की तुलना की जाए तो धान बेचने के लिए पंजीकृत किसानों की संख्या में लगभग सवा लाख और पंजीकृत धान के रकबे में लगभग 2 लाख 18 हजार की वृद्धि हुई है.