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Special : ब्रह्मकमल को देखने उमड़ी लोगों की भीड़, दुर्लभ फूलों में होती है गिनती

हिमालय में खिलने वाला ब्रह्नकमल छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में खिला है. इसके न्यायधानी में खिलने के बाद से इसे अयोध्या के राम मंदिर से जोड़ा जा रहा है. लोगों को कहना है कि रामलला के मंदिर के भूमिपूजन के वक्त प्रकृति की ओर से दिया उपहार है.

Brahmkamal feeding in Bilaspur at Chhattisgarh
ब्रह्नकमल खिला छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में
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Published : Aug 5, 2020, 5:57 PM IST

बिलासपुर : जब कुछ शुभ होने वाला होता है तो प्रकृति भी उसके स्वागत में जुट जाती है और हमारे इर्दगिर्द कुछ ऐसी रोचक नजारे दिखने लगते हैं, जिसे एक शुभ संकेत के रूप में देखा जाता है. ऐसा ही एक रोचक नजारा बिलासपुर में देखने को मिला. बिलासपुर के कोटा के ग्रामीण इलाके में इन दिनों ब्रह्नकमल नाम का फूल कौतूहल का विषय बना हुआ है. लोग इसे रामलला के मंदिर के भूमिपूजन के वक्त प्रकृति की ओर से दिए गए उपहार के तौर पर ले रहे हैं.

ब्रह्नकमल बिलासपुर में खिला

इस दुर्लभ फूल के दर्शन को एक सुखद संयोग माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस फूल के दर्शन के दौरान मांगी गई मन्नत पूरी होती है. बता दें कि यह फूल हिमालय की वादियों में अकसर देखा जाता है, लेकिन छत्तीसगढ़ में इसका खिलना अचरज की तरह देखा जा रहा है. लोग दूर-दूर से इसे देखने के लिए पहुंच रहे हैं.

पढ़ें : कहां और किस हाल में हैं मां शबरी के वंशज कहे जाने वाले सबर जनजाति के लोग

ब्रह्म कमल की खासियत और मान्यताएं

  • ब्रह्मकमल औषधीय गुणों से भी परिपूर्ण है. इसे सुखाकर कैंसर रोग की दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
  • इससे निकलने वाले पानी को पीने से थकान मिट जाती है, साथ ही पुरानी खांसी में भी आराम मिलता है.
  • ऐसा माना जाता है कि, जब यह खिलता है तो इसमें ब्रह्म देव तथा त्रिशूल की आकृति बन कर उभर आती है.
  • ब्रह्म कमल न तो खरीदा जाना चाहिए और न ही इसे बेचा जाता है.
  • इस पुष्प को देवताओं का प्रिय पुष्प माना गया है और इसमें जादुई प्रभाव भी होता है. इस दुर्लभ पुष्प की प्राप्ति आसानी से नहीं होती. हिमालय में खिलने वाला यह पुष्प देवताओं के आशीर्वाद की तरह है.
  • इसका खिलना देर रात आरंभ होता है और दस से ग्यारह बजे तक यह पूरा खिल जाता है. मध्य रात्रि से इसका बंद होना शुरू हो जाता है और सुबह तक यह मुरझा चुका होता है.
  • इसकी सुगंध प्रिय होती है और ऐसी मान्यता है कि, इसकी पंखुडिय़ों से टपका जल अमृत समान होता है.
    brahmkamal-feeding-in-bilaspur-at-chhattisgarh
    भगवान राम

पढ़ें : 102 वर्षीय कार सेवक हरबी बाई ने साझा की राम मंदिर आंदोलन की यादें

तोड़ने के भी सख्त नियम

जानकारों की मानें तो लव कुश जब प्रभु श्री राम को सुंदरकांड का पाठ सुनाने पहुंचे थे, उस दौरान माता सीता ने भगवान राम की कुशलता के उद्देश्य से एक यज्ञ किया था जिसमें ब्रह्नकमल अर्पित किया गया था . दूसरी धार्मिक मान्यता के अनुसार ब्रह्म कमल का मतलब ब्रह्मा का कमल होता है, यह फूल मां नन्दा का प्रिय पुष्प है, इसलिए इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोड़ने के भी सख्त नियम होते हैं. ब्रह्म कमल एक ऐसा फूल है, जिसे खिलने के लिए सूर्य के अस्त होने का इंतजार करना पड़ता है. ब्रह्मकमल को अलग-अलग जगहों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे उत्तराखंड में ब्रह्मकमल, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस नाम से इसे जाना जाता है.

बिलासपुर : जब कुछ शुभ होने वाला होता है तो प्रकृति भी उसके स्वागत में जुट जाती है और हमारे इर्दगिर्द कुछ ऐसी रोचक नजारे दिखने लगते हैं, जिसे एक शुभ संकेत के रूप में देखा जाता है. ऐसा ही एक रोचक नजारा बिलासपुर में देखने को मिला. बिलासपुर के कोटा के ग्रामीण इलाके में इन दिनों ब्रह्नकमल नाम का फूल कौतूहल का विषय बना हुआ है. लोग इसे रामलला के मंदिर के भूमिपूजन के वक्त प्रकृति की ओर से दिए गए उपहार के तौर पर ले रहे हैं.

ब्रह्नकमल बिलासपुर में खिला

इस दुर्लभ फूल के दर्शन को एक सुखद संयोग माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस फूल के दर्शन के दौरान मांगी गई मन्नत पूरी होती है. बता दें कि यह फूल हिमालय की वादियों में अकसर देखा जाता है, लेकिन छत्तीसगढ़ में इसका खिलना अचरज की तरह देखा जा रहा है. लोग दूर-दूर से इसे देखने के लिए पहुंच रहे हैं.

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ब्रह्म कमल की खासियत और मान्यताएं

  • ब्रह्मकमल औषधीय गुणों से भी परिपूर्ण है. इसे सुखाकर कैंसर रोग की दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
  • इससे निकलने वाले पानी को पीने से थकान मिट जाती है, साथ ही पुरानी खांसी में भी आराम मिलता है.
  • ऐसा माना जाता है कि, जब यह खिलता है तो इसमें ब्रह्म देव तथा त्रिशूल की आकृति बन कर उभर आती है.
  • ब्रह्म कमल न तो खरीदा जाना चाहिए और न ही इसे बेचा जाता है.
  • इस पुष्प को देवताओं का प्रिय पुष्प माना गया है और इसमें जादुई प्रभाव भी होता है. इस दुर्लभ पुष्प की प्राप्ति आसानी से नहीं होती. हिमालय में खिलने वाला यह पुष्प देवताओं के आशीर्वाद की तरह है.
  • इसका खिलना देर रात आरंभ होता है और दस से ग्यारह बजे तक यह पूरा खिल जाता है. मध्य रात्रि से इसका बंद होना शुरू हो जाता है और सुबह तक यह मुरझा चुका होता है.
  • इसकी सुगंध प्रिय होती है और ऐसी मान्यता है कि, इसकी पंखुडिय़ों से टपका जल अमृत समान होता है.
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    भगवान राम

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तोड़ने के भी सख्त नियम

जानकारों की मानें तो लव कुश जब प्रभु श्री राम को सुंदरकांड का पाठ सुनाने पहुंचे थे, उस दौरान माता सीता ने भगवान राम की कुशलता के उद्देश्य से एक यज्ञ किया था जिसमें ब्रह्नकमल अर्पित किया गया था . दूसरी धार्मिक मान्यता के अनुसार ब्रह्म कमल का मतलब ब्रह्मा का कमल होता है, यह फूल मां नन्दा का प्रिय पुष्प है, इसलिए इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोड़ने के भी सख्त नियम होते हैं. ब्रह्म कमल एक ऐसा फूल है, जिसे खिलने के लिए सूर्य के अस्त होने का इंतजार करना पड़ता है. ब्रह्मकमल को अलग-अलग जगहों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे उत्तराखंड में ब्रह्मकमल, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस नाम से इसे जाना जाता है.

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