ETV Bharat / state

हिन्दी की पहली कहानी लिखने वाले पं. माधवराव सप्रे, जिन्होंने महिलाओं की आजादी पर खूब लिखा

author img

By

Published : Jun 19, 2021, 8:07 PM IST

हिंदी साहित्य को पहली कहानी देने वाले पं. माधवराव सप्रे (Pandit Madhavrao Sapre birth anniversary) की 19 जून को 150 वीं जयंती है. इस मौके पर ETV BHARAT उन्हें याद कर रहा है. छत्तीसगढ़ के माधवराव सप्रे 19वीं शताब्दी की शुरुआत में बिलासपुर के एक छोटे से गांव पेंड्रा से 'छत्तीसगढ़ मित्र' (Chhattisgarh Mitra Patrika ) पत्रिका निकालकर देशभर में क्रांति की अलख जगाई थी. उन्हें आज भी देशभर में उनके योगदान के लिए याद किया जाता है.

Pandit Madhavrao Sapre birth anniversary
pandit-madhavrao-sapre

रायपुर: हिंदी साहित्य को पहली कहानी देने वाले पं. माधवराव सप्रे की 19 जून को 150वीं जयंती है. (Pandit Madhavrao Sapre birth anniversary) छत्तीसगढ़ के लाल वर्षों पहले जब देश में गिनी चुनी पत्रिकाएं निकलती थी, उस दौर में यानी 19वीं शताब्दी की शुरुआत में बिलासपुर के एक छोटे से गांव पेंड्रा से 'छत्तीसगढ़ मित्र' पत्रिका निकालकर देशभर में क्रांति की अलख जगाई थी. (Chhattisgarh Mitra Patrika ) देश के हिंदी साहित्य और पत्रकारिता में पंडित माधवराव सप्रे एक बड़ा नाम हैं. आज भले ही डिजिटल और टेलीविजन के पत्रकारिता के दौर में कई तरह की बड़ी-बड़ी बातें होती हैं, लेकिन आज से करीब 120 साल पहले छत्तीसगढ़ के दुरंचल में माधवराव सप्रे ने 'छत्तीसगढ़ मित्र' की शुरुआत की थी. उन्होंने नैतिक मूल्यों पर आधारित पत्रकारिता का आधार स्तंभ बनाते हुए पत्रकारिता और हिंदी साहित्य की लौ जलाई थी.

हिन्दी की पहली कहानी लिखने वाले पं. माधवराव सप्रे

दुनिया को बताया पूजनीय हैं नारी

देश के हिंदी साहित्य को पहली कहानी देने वाले पंडित माधवराव सप्रे का नाम उन महापुरुषों में शामिल किया जाता है जो आधुनिक भारतीय समाज के निर्माण में नींव का पत्थर साबित हुए. आज से 120 साल पहले जब देश में गिने चुने प्रिंटिंग प्रेस हुआ करते थे, तब उन्होंने बिलासपुर जिले के पेंड्रा से ना सिर्फ नैतिक पत्रकारिता बल्कि सामाजिक मूल्यों को लेकर भी एक अलख जगाई. (first story in hindi ) पंडित माधवराव सप्रे का भारतीय नारी के उत्थान में अतुलनीय योगदान रहा है. एक संपादक और पत्रकार के रूप में सप्रे ने भारतीय महिला की दशा और दिशा पर कई पत्रिकाएं प्रकाशित की. विशेषकर स्त्री को शिक्षा का अधिकार और कर्तव्य के साथ उपलब्धियां और उनकी शौर्य गाथाओं का प्रकाशन कर उन्होंने दुनिया को यह बतलाने का सार्थक प्रयास किया कि नारी पूजनीय है. रायपुर में भी पहले कन्या विद्यालय जानकी देवी महिला पाठशाला की स्थापना का श्रेय पंडित माधव राव सप्रे को ही जाता है. रायपुर में बूढ़ा तालाब के पास आज भी सालों से पंडित माधवराव सप्रे स्कूल का संचालन किया जा रहा है. उनके नाम से एक ऐतिहासिक मैदान भी है, जहां देश के तमाम दिग्गज नेता भी आ चुके हैं.

समाज को दिशा देना था मुख्य उद्देश्य

वरिष्ठ साहित्यकार और 'छत्तीसगढ़ मित्र' के वर्तमान में संपादक डॉ सुशील त्रिवेदी (Editor Dr Sushil Trivedi ) कहते हैं, 'पंडित माधव राव सप्रे जी ने आज से 121 साल पहले ही पत्रकारिता की मजबूत शुरुआत की थी. उस समय देशभर में गिनी चुनी पत्रिका निकला करती थी. इलाहाबाद से सरस्वती 1900 में प्रकाशित हुई थी. 1900 में ही पेंड्रा जो कि बिलासपुर का छोटा सा गांव था, हालांकि आज जिला बन गया है, यहां से एक पत्रिका का प्रकाशन किया गया. शुरुआत में पत्रिका का प्रकाशन कुछ दिनों तक रायपुर और बाद में नागपुर से किया गया. सप्रे जी लोकमान्य तिलक (Lokmanya Tilak ) के अनुयाई थे, लोकमान्य तिलक ने जो राजनीति में मानदंड निर्धारित किए थे उस आधार पर वे काम कर रहे थे. स्वदेशी की भावना और शिक्षक का काम के साथ ही समाज सुधार और पत्रकारिता का उनका मूल रूप से उद्देश्य लोगों को जागृत करने का था. उन्होंने जब पत्रिका शुरू की तब लिखा कि पत्रकारिता का काम नैतिक मानदंड को निर्धारित करना, समाज को दिशा देना ही उनका उद्देश्य था. यहीं कारण था कि 3 साल तक उनकी पत्रिका निकली उसमें लगातार अच्छे और महान लोगों की जीवनी, शिक्षा, भाषा और इतिहास की समग्र बातें थी. उस जमाने में यह सारी चीजें हिंदी में उपलब्ध नहीं थी. सप्रे जी अंग्रेजी से, बंगाली से, गुजराती से, मराठी से ट्रांसलेट कर इसे प्रकाशित करते थे.'

pandit-madhavrao-sapre
पंडित माधवराव सप्रे

पत्रकारिता में नैतिक मूल्यों का पतन

डॉ सुशील त्रिवेदी कहते हैं, 'पत्रकारिता का मूल्य तो हमेशा अच्छा ही रहा. पत्रकारिता का अर्थ है कि जनता की भावनाओं को अभिव्यक्ति देना, जनता को दिशा दिखाना. उस वक्त प्रेस भी नहीं था. रायपुर में प्रेस न होने के चलते नागपुर पत्रिका छपवाने जाते थे. आज हर जगह राजनीतिक, सामाजिक और सभी क्षेत्रों में नैतिकता का पतन हो रहा है. यही स्थिति पत्रकारिता में भी है. पहले समाचार पत्र जनता की भावनाओं को व्यक्त करते थे और लोगों को ज्ञान देने का काम करते थे. इस वक्त हमारी पत्रकारिता में ज्यादातर कुछ एजेंडा को लेकर लोग चल रहे हैं. यह एक बड़ा उद्योग हो गया है, जिस तरह से उद्योग में एक लाभ का बड़ा काम होता है उसी तरह से लोग मीडिया में भी लाभ कमाने के उद्देश्य से देखते हैं.'

महिलाओं से क्षमा, दान और सहनशीलता सीखने की जरूरत

वरिष्ठ पत्रकार अनिल द्विवेदी कहते हैं, 'पंडित माधवराव सप्रे ऐसे शख्सियत थे, जिन्होंने पत्रकारिता में अप्रतिम योगदान दिया है. वे देश के पहले ऐसे पत्रकार माने गए, जिन्होंने पहली कहानी लिखी. उन्होंने 'छत्तीसगढ़ मित्र' प्रकाशित किया. माधवराव सप्रे को हम एक पत्रकारिता पुरुष के रूप में देख सकते हैं. जिस तरह से उनकी लेखनी समाज के अनुकूल चलती रही, छत्तीसगढ़ सरकार ने भी उनके महत्व को ध्यान में रखते हुए पंडित माधवराव सप्रे पत्रकारिता पुरस्कार भी शुरू किया है.'

'सप्रे जी के योगदान के लिए कई बातें पढ़ी है. उसमें उन्होंने समकालीन स्त्री विमर्श पर काफी बड़ी बात कही है. उनका कहना था कि महिलाओं में जो गुण क्षमा के, दान के, सहनशीलता के हैं, यदि पुरुष में आ जाए तो पुरुष का जीवन सफल हो जाएगा. माधवराव सप्रे जी ने तमाम तरह का स्त्री विमर्श लिखा है.'

महिलाओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर किया काम

पंडित माधव राव सप्रे की अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ थी. उन्हें ब्रिटिश पुस्तक में छपी अंग्रेजी की कहानी का हिंदी रूपांतरण देते हुए उन्होंने सद्गुणी लड़की की कहानी मई 1902 के अंक में प्रकाशित की थी. लगभग 2 किस्तों और 12 पन्नों की कहानी में उन्होंने कहा कि नव युवतियों को अपना जीवनसाथी चुनने या प्यार करने का पूरा अधिकार है. मगर इसमें उन्हें ध्यान रखना है कि वे माता-पिता की नजरों में गलत साबित ना हों. सप्रे जी के छत्तीसगढ़ के संपादन में महिला पाठिकाओं के पत्रों को जगह देते हुए उनके अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पूरा सम्मान रखते थे.

रायपुर: हिंदी साहित्य को पहली कहानी देने वाले पं. माधवराव सप्रे की 19 जून को 150वीं जयंती है. (Pandit Madhavrao Sapre birth anniversary) छत्तीसगढ़ के लाल वर्षों पहले जब देश में गिनी चुनी पत्रिकाएं निकलती थी, उस दौर में यानी 19वीं शताब्दी की शुरुआत में बिलासपुर के एक छोटे से गांव पेंड्रा से 'छत्तीसगढ़ मित्र' पत्रिका निकालकर देशभर में क्रांति की अलख जगाई थी. (Chhattisgarh Mitra Patrika ) देश के हिंदी साहित्य और पत्रकारिता में पंडित माधवराव सप्रे एक बड़ा नाम हैं. आज भले ही डिजिटल और टेलीविजन के पत्रकारिता के दौर में कई तरह की बड़ी-बड़ी बातें होती हैं, लेकिन आज से करीब 120 साल पहले छत्तीसगढ़ के दुरंचल में माधवराव सप्रे ने 'छत्तीसगढ़ मित्र' की शुरुआत की थी. उन्होंने नैतिक मूल्यों पर आधारित पत्रकारिता का आधार स्तंभ बनाते हुए पत्रकारिता और हिंदी साहित्य की लौ जलाई थी.

हिन्दी की पहली कहानी लिखने वाले पं. माधवराव सप्रे

दुनिया को बताया पूजनीय हैं नारी

देश के हिंदी साहित्य को पहली कहानी देने वाले पंडित माधवराव सप्रे का नाम उन महापुरुषों में शामिल किया जाता है जो आधुनिक भारतीय समाज के निर्माण में नींव का पत्थर साबित हुए. आज से 120 साल पहले जब देश में गिने चुने प्रिंटिंग प्रेस हुआ करते थे, तब उन्होंने बिलासपुर जिले के पेंड्रा से ना सिर्फ नैतिक पत्रकारिता बल्कि सामाजिक मूल्यों को लेकर भी एक अलख जगाई. (first story in hindi ) पंडित माधवराव सप्रे का भारतीय नारी के उत्थान में अतुलनीय योगदान रहा है. एक संपादक और पत्रकार के रूप में सप्रे ने भारतीय महिला की दशा और दिशा पर कई पत्रिकाएं प्रकाशित की. विशेषकर स्त्री को शिक्षा का अधिकार और कर्तव्य के साथ उपलब्धियां और उनकी शौर्य गाथाओं का प्रकाशन कर उन्होंने दुनिया को यह बतलाने का सार्थक प्रयास किया कि नारी पूजनीय है. रायपुर में भी पहले कन्या विद्यालय जानकी देवी महिला पाठशाला की स्थापना का श्रेय पंडित माधव राव सप्रे को ही जाता है. रायपुर में बूढ़ा तालाब के पास आज भी सालों से पंडित माधवराव सप्रे स्कूल का संचालन किया जा रहा है. उनके नाम से एक ऐतिहासिक मैदान भी है, जहां देश के तमाम दिग्गज नेता भी आ चुके हैं.

समाज को दिशा देना था मुख्य उद्देश्य

वरिष्ठ साहित्यकार और 'छत्तीसगढ़ मित्र' के वर्तमान में संपादक डॉ सुशील त्रिवेदी (Editor Dr Sushil Trivedi ) कहते हैं, 'पंडित माधव राव सप्रे जी ने आज से 121 साल पहले ही पत्रकारिता की मजबूत शुरुआत की थी. उस समय देशभर में गिनी चुनी पत्रिका निकला करती थी. इलाहाबाद से सरस्वती 1900 में प्रकाशित हुई थी. 1900 में ही पेंड्रा जो कि बिलासपुर का छोटा सा गांव था, हालांकि आज जिला बन गया है, यहां से एक पत्रिका का प्रकाशन किया गया. शुरुआत में पत्रिका का प्रकाशन कुछ दिनों तक रायपुर और बाद में नागपुर से किया गया. सप्रे जी लोकमान्य तिलक (Lokmanya Tilak ) के अनुयाई थे, लोकमान्य तिलक ने जो राजनीति में मानदंड निर्धारित किए थे उस आधार पर वे काम कर रहे थे. स्वदेशी की भावना और शिक्षक का काम के साथ ही समाज सुधार और पत्रकारिता का उनका मूल रूप से उद्देश्य लोगों को जागृत करने का था. उन्होंने जब पत्रिका शुरू की तब लिखा कि पत्रकारिता का काम नैतिक मानदंड को निर्धारित करना, समाज को दिशा देना ही उनका उद्देश्य था. यहीं कारण था कि 3 साल तक उनकी पत्रिका निकली उसमें लगातार अच्छे और महान लोगों की जीवनी, शिक्षा, भाषा और इतिहास की समग्र बातें थी. उस जमाने में यह सारी चीजें हिंदी में उपलब्ध नहीं थी. सप्रे जी अंग्रेजी से, बंगाली से, गुजराती से, मराठी से ट्रांसलेट कर इसे प्रकाशित करते थे.'

pandit-madhavrao-sapre
पंडित माधवराव सप्रे

पत्रकारिता में नैतिक मूल्यों का पतन

डॉ सुशील त्रिवेदी कहते हैं, 'पत्रकारिता का मूल्य तो हमेशा अच्छा ही रहा. पत्रकारिता का अर्थ है कि जनता की भावनाओं को अभिव्यक्ति देना, जनता को दिशा दिखाना. उस वक्त प्रेस भी नहीं था. रायपुर में प्रेस न होने के चलते नागपुर पत्रिका छपवाने जाते थे. आज हर जगह राजनीतिक, सामाजिक और सभी क्षेत्रों में नैतिकता का पतन हो रहा है. यही स्थिति पत्रकारिता में भी है. पहले समाचार पत्र जनता की भावनाओं को व्यक्त करते थे और लोगों को ज्ञान देने का काम करते थे. इस वक्त हमारी पत्रकारिता में ज्यादातर कुछ एजेंडा को लेकर लोग चल रहे हैं. यह एक बड़ा उद्योग हो गया है, जिस तरह से उद्योग में एक लाभ का बड़ा काम होता है उसी तरह से लोग मीडिया में भी लाभ कमाने के उद्देश्य से देखते हैं.'

महिलाओं से क्षमा, दान और सहनशीलता सीखने की जरूरत

वरिष्ठ पत्रकार अनिल द्विवेदी कहते हैं, 'पंडित माधवराव सप्रे ऐसे शख्सियत थे, जिन्होंने पत्रकारिता में अप्रतिम योगदान दिया है. वे देश के पहले ऐसे पत्रकार माने गए, जिन्होंने पहली कहानी लिखी. उन्होंने 'छत्तीसगढ़ मित्र' प्रकाशित किया. माधवराव सप्रे को हम एक पत्रकारिता पुरुष के रूप में देख सकते हैं. जिस तरह से उनकी लेखनी समाज के अनुकूल चलती रही, छत्तीसगढ़ सरकार ने भी उनके महत्व को ध्यान में रखते हुए पंडित माधवराव सप्रे पत्रकारिता पुरस्कार भी शुरू किया है.'

'सप्रे जी के योगदान के लिए कई बातें पढ़ी है. उसमें उन्होंने समकालीन स्त्री विमर्श पर काफी बड़ी बात कही है. उनका कहना था कि महिलाओं में जो गुण क्षमा के, दान के, सहनशीलता के हैं, यदि पुरुष में आ जाए तो पुरुष का जीवन सफल हो जाएगा. माधवराव सप्रे जी ने तमाम तरह का स्त्री विमर्श लिखा है.'

महिलाओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर किया काम

पंडित माधव राव सप्रे की अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ थी. उन्हें ब्रिटिश पुस्तक में छपी अंग्रेजी की कहानी का हिंदी रूपांतरण देते हुए उन्होंने सद्गुणी लड़की की कहानी मई 1902 के अंक में प्रकाशित की थी. लगभग 2 किस्तों और 12 पन्नों की कहानी में उन्होंने कहा कि नव युवतियों को अपना जीवनसाथी चुनने या प्यार करने का पूरा अधिकार है. मगर इसमें उन्हें ध्यान रखना है कि वे माता-पिता की नजरों में गलत साबित ना हों. सप्रे जी के छत्तीसगढ़ के संपादन में महिला पाठिकाओं के पत्रों को जगह देते हुए उनके अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पूरा सम्मान रखते थे.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.