रायपुर: सरकार बनने के करीब डेढ़ साल बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने निगम, मंडल और आयोग के अध्यक्ष-उपाध्यक्षों सूची जारी कर दी है. इस बहुप्रतीक्षित लिस्ट में रायपुर संभाग का दबदबा नजर आ रहा है. इस संभाग से 14 नेताओं को जिम्मेदारी मिली है. वहीं बस्तर से 6 और बिलासपुर, अंबिकापुर, दुर्ग संभाग से 4-4 नेताओं का नाम इस लिस्ट में शामिल है.
राजस्थान कांग्रेस में मची उठापटक के बाद से ही अंदाजा लग रहा था कि इन मलाईदार पदों को अब ज्यादा दिन तक खाली नहीं रखा जाएगा. इससे दो दिन पहले सरकार ने 15 विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त कर दिया था. हालांकि निगम, मंडल में संगठन से जुड़े नेताओं को तरजीह दी गई है. जिन 32 नेताओं को जगह मिली है, उनमें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पसंद साफ नजर आ रही है.
इन दिग्गजों को मिला स्थान-
कांग्रेस ने अपने कई दिग्गज नेताओं को इन मलाईदार पदों पर बैठाया है. इनमें पूर्व मंत्री देवेन्द्र बहादुर सिंह, धनेश पटिला, विधायक अरुण वोरा, कुलदीप जुनेजा, चंदन कश्यप, प्रवक्ता शैलेष नितिन त्रिवेदी, गिरीश देवांगन, राजनांदगांव में रमन सिंह को कड़ी टक्कर देने वाली करुणा शुक्ला, पूर्व मेयर किरणमयी नायक को अहम जिम्मेदारी सौंपी गई है. वहीं नीता लोधी जैसे नाम भी शामिल हैं.
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बड़े नेताओं का नाम नहीं
इस तरह देखा जाए तो संगठन से जुड़े नेताओं को भूपेश बघेल ने ज्यादा मौका दिया है. वहीं कई बड़े नेता जैसे सत्यनारायण शर्मा, अमितेश शुक्ल, धनेन्द्र साहू जैसे वरिष्ठ नेताओं का नाम लिया जा रहा था, लेकिन इन्हें फिलहाल मौका नहीं मिल पाया है या इन नेताओं ने ही पद लेने से मना कर दिया, ये साफ नहीं हो पाया है.
क्षेत्रीय और जातिगत समीकरण
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपनी इस नई टीम में क्षेत्रीय संतुलन और जातिगत समीकरण का पूरा ख्याल रखा है. इस लिस्ट में रायपुर संभाग से 14, सरगुजा संभाग से 4, बिलासपुर संभाग से 4, दुर्ग संभाग से 4, बस्तर संभाग से 6 नेताओं को जगह दी गई है. इसमें बिलासपुर संभाग को लेकर थोड़ी हैरानी हो सकती है कि वहां से महज चार चेहरों को मौका दिया गया है. उनमें से भी महंत श्यामसुंदर दास रायपुर में ही रहते हैं और ज्यादातर यहीं सक्रिय रहते हैं.
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ऐसे हैं जातिगत समीकरण
वहीं बात जातिगत समीकरण की करें, तो इस लिस्ट में एसटी वर्ग से 5, 14 सामान्य वर्ग से, 8 ओबीसी वर्ग से और एससी वर्ग से 2 जबकि 3 अल्पसंख्यक वर्ग से नाम शामिल हैं.
खतरा नहीं लेकिन एहतियात बरतने में क्या बुराई!
पिछला कुछ वक्त कांग्रेस के लिए अच्छा नहीं गुजरा है. मध्य प्रदेश में पार्टी में बगावत की वजह से सरकार चली गई, वहीं राजस्थान में भी पार्टी भारी उठापटक के हालात से गुजर रही है. हालांकि छत्तीसगढ़ में ऐसी स्थिति दूर-दूर तक नजर नहीं आती. यहां पार्टी बेहद मजबूत स्थिति में है, लेकिन कांग्रेस शासित राज्यों में चल रही उठापटक के मद्देनजर पार्टी किसी भी तरह की नाराजगी को हवा देने की जहमत नहीं उठाना चाहती. हालांकि मध्यप्रदेश और राजस्थान की स्थिति को लेकर उठे सवालों को प्रदेश के कांग्रेस नेताओं ने सिरे से खारिज किया है.