रायगढ़ : कहते हैं विघ्नहर्ता गणेश सभी के दुखों को हरते हैं. यही कारण है कि हिंदू धर्म में कोई भी मंगल कार्य करने से पहले गणेश की पूजा होती है. गणेश चतुर्थी में लोग अपने घरों में बड़े ही भक्ति भाव से बप्पा की प्रतिमा विराजित करते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन सुंदर प्रतिमाओं को आकार देने वाले मूर्तिकारों के परिवार का गुजारा कैसे होता है?
ETV भारत ने इन मूर्तिकारों से बात की. कलकत्ता से मूर्ति बनाने रायगढ़ आए एक मूर्तिकार का कहना है कि, जब छोटे थे, तो अपने पिता के साथ इस शहर में मूर्ति बनाने आते थे. अब पिताजी नहीं रहे, लेकिन पारंपरिक प्रथा और आजीविका के लिए वो भी कई सालों से अपने परिवार के साथ यहां मूर्ति बनाने आते हैं, लेकिन अब इस काम में मेहनताना भी वापस नहीं मिल रहा है.
वे परिवार के साथ मई महीने की शुरुआत में यहां आते हैं. किराए की जमीन पर अस्थायी घर और मूर्ति के लिए छप्पर बनाकर रहते हैं. गणेश-दुर्गा और अन्य देवी-देवताओं की मूर्ति बनाना इनका खानदानी पेशा है. इसी से आजीविका चलती है. इसके साथ ही 10 से 15 मजदूर एक-साथ रहकर काम करते हैं. जब ETV भारत ने मूर्तिकारों से बात की तो पता चला की कभी-कभी मूर्तिकारों को उनके द्वारा लगाई रकम भी वापस नहीं मिल पाती है. साल दर साल नुकसान बढ़ता जा रहा है. वे कहते हैं कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो ये काम छोड़ना पड़ेगा.