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SPECIAL:लॉकडाउन में नहीं बिके रहे मिट्टी के बर्तन, कुम्हार हुए परेशान

लॉकडाउन की वजह से लोग घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं, जिसके कारण लोग मिट्टी के बर्तन नहीं खरीद रहे हैं और कुम्हारों के सामने परिवार चलाने जैसी समस्या खड़ी हो गई है.

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लॉकडाउन में कुम्हार परेशान
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Published : Apr 23, 2020, 11:41 PM IST

रायगढ़ः लॉकडाउन की वजह से सभी लोगों अपने-अपने घरों में है. इस दौरान शासन के निर्देश अनुसार जरूरी सेवाओं को छोड़ अन्य सभी बंद है. जिसके कारण दिहाड़ी मजदूर और रोजमर्रा के काम करने वाले लोगों के पास परिवार के पालन पोषण करने जैसी समस्या भी खड़ी हो गई है. लॉकडाउन की वजह से मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार भी बेरोजगार हो गए हैं. उनके बनाए हुए मिट्टी के बर्तनों की बिक्री नहीं हो पा रही है.

लॉकडाउन में कुम्हार परेशान

लॉकडाउन की वजह से लोग घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं, जिसके कारण लोग मिट्टी के बर्तन नहीं खरीद रहे हैं. कुम्हारों ने बताया कि उनकी आजीविका का साधन यही है. वे मिट्टी के बर्तन बनाते हैं और उसे बेचते हैं. जिससे अपना परिवार चलाते हैं.

नहीं बिके बर्तन

कुम्हारों ने बताया कि लोग गर्मी के दिनों में ठंड़ा पानी पीने के लिए मटका खरीदते हैं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से कोई भी अभी घर से नहीं निकल पा रहा है, जिसकी वजह से उनके मटके नहीं बिक रहे हैं. लॉकडाउन की वजह से वे साप्ताहिक बाजार भी नहीं जा रहे है. इसी प्रकार नवरात्री के समय भी लॉकडाउन की वजह मंदिरों में कलश नहीं जलाए गए,जिसके कारण उनके बनाए हुए कलश भी वैसे के वैसा ही रखा हुआ है और उनके सामने भूखे मरने वाली नौबत आ गई है.

उन्होंने बताया कि दिस्ंबर से लेकर मई तक शादी का सीजन रहता है. शादी के सीजन में ही सबसे ज्यादा मुनाफा होता है, लेकिन लॉकडाउन की वजह से सभी शादियां रोक दी गई हैं. जिसमें सबसे ज्यादा नुकसान उन्हें ही उठाना पड़ रहा है. क्योंकि इनके पास आजीविका का दूसरा कोई साधन नहीं है. वहीं बर्तन बनाने और पकाने के लिए उन्हें बहुत पैसा खर्च करना पड़ता है, जिसके लिए कर्ज भी लेना पड़ता है.

लॉकडाउन और दोहरी मार

मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार बताते हैं कि कभी उनके पास लोगों की मांग से भी ज्यादा बिक्री होती थी, उन्होंने बताया कि बाजार से भूसा, मिट्टी और लकड़ी खरीद कर लाते हैं. जिसके बाद मिट्टी के बर्तन बनाते हैं और बेचने के बाद उसकी लागत निकलती है, लेकिन बीते 1 महीने से बिक्री नहीं हुई, जिसके कारण मुनाफा दो दूर लागत भी नहीं निकल पाया है. वहीं जो मटके, दिये, गुल्लक और कलश बन गए हैं वह भी घर में रखे-रखे खराब हो रहे हैं जो कि उन पर दोहरा मार है.कुम्हार बस यही दुआ कर रहे हैं कि ये बुरा वक्त कट जाए, ताकि समय का पहिया वापस अपनी गति से घूम सके और उनकी दो जून की रोटी का जुगाड़ हो सके.

रायगढ़ः लॉकडाउन की वजह से सभी लोगों अपने-अपने घरों में है. इस दौरान शासन के निर्देश अनुसार जरूरी सेवाओं को छोड़ अन्य सभी बंद है. जिसके कारण दिहाड़ी मजदूर और रोजमर्रा के काम करने वाले लोगों के पास परिवार के पालन पोषण करने जैसी समस्या भी खड़ी हो गई है. लॉकडाउन की वजह से मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार भी बेरोजगार हो गए हैं. उनके बनाए हुए मिट्टी के बर्तनों की बिक्री नहीं हो पा रही है.

लॉकडाउन में कुम्हार परेशान

लॉकडाउन की वजह से लोग घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं, जिसके कारण लोग मिट्टी के बर्तन नहीं खरीद रहे हैं. कुम्हारों ने बताया कि उनकी आजीविका का साधन यही है. वे मिट्टी के बर्तन बनाते हैं और उसे बेचते हैं. जिससे अपना परिवार चलाते हैं.

नहीं बिके बर्तन

कुम्हारों ने बताया कि लोग गर्मी के दिनों में ठंड़ा पानी पीने के लिए मटका खरीदते हैं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से कोई भी अभी घर से नहीं निकल पा रहा है, जिसकी वजह से उनके मटके नहीं बिक रहे हैं. लॉकडाउन की वजह से वे साप्ताहिक बाजार भी नहीं जा रहे है. इसी प्रकार नवरात्री के समय भी लॉकडाउन की वजह मंदिरों में कलश नहीं जलाए गए,जिसके कारण उनके बनाए हुए कलश भी वैसे के वैसा ही रखा हुआ है और उनके सामने भूखे मरने वाली नौबत आ गई है.

उन्होंने बताया कि दिस्ंबर से लेकर मई तक शादी का सीजन रहता है. शादी के सीजन में ही सबसे ज्यादा मुनाफा होता है, लेकिन लॉकडाउन की वजह से सभी शादियां रोक दी गई हैं. जिसमें सबसे ज्यादा नुकसान उन्हें ही उठाना पड़ रहा है. क्योंकि इनके पास आजीविका का दूसरा कोई साधन नहीं है. वहीं बर्तन बनाने और पकाने के लिए उन्हें बहुत पैसा खर्च करना पड़ता है, जिसके लिए कर्ज भी लेना पड़ता है.

लॉकडाउन और दोहरी मार

मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार बताते हैं कि कभी उनके पास लोगों की मांग से भी ज्यादा बिक्री होती थी, उन्होंने बताया कि बाजार से भूसा, मिट्टी और लकड़ी खरीद कर लाते हैं. जिसके बाद मिट्टी के बर्तन बनाते हैं और बेचने के बाद उसकी लागत निकलती है, लेकिन बीते 1 महीने से बिक्री नहीं हुई, जिसके कारण मुनाफा दो दूर लागत भी नहीं निकल पाया है. वहीं जो मटके, दिये, गुल्लक और कलश बन गए हैं वह भी घर में रखे-रखे खराब हो रहे हैं जो कि उन पर दोहरा मार है.कुम्हार बस यही दुआ कर रहे हैं कि ये बुरा वक्त कट जाए, ताकि समय का पहिया वापस अपनी गति से घूम सके और उनकी दो जून की रोटी का जुगाड़ हो सके.

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