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पोला त्योहार: कोरोना और बारिश की मार झेल रहे कुम्भकार, बाजार तक नहीं पहुंचे ग्राहक

कोरोना वायरस संक्रमण और लॉकडाउन ने लोगों के जीवन को काफी प्रभावित किया है. कई लोगों ने तो अपने व्यवसाय भी बदल लिए हैं. मिट्टी की मूर्तियां और खिलौने बनाकर घर चलाने वाले कारीगर भी कोरोना संकट की मार झेल रहे हैं. हालात ये हैं कि अब इन्हें रोजी रोटी की चिंता सताने लगी है.

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Published : Aug 18, 2020, 4:10 PM IST

Updated : Aug 18, 2020, 5:09 PM IST

Pola celebration in mahasamund
मिट्टी के खिलौनों से सजा बाजार

महासमुंद: कोरोना वायरस और अब बारिश, दोनों ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बुरा असर डाला है. हालात ये हैं कि सीमांत किसानों से लेकर मूर्ति के खिलौने और बर्तन बनाने वाले इन दिनों बुरे दौर से गुजर रहे हैं. ग्रामीण अंचलों के छोटे व्यवसायी तो दाने-दाने के लिए मोहताज हो गए हैं. आज छत्तीसगढ़ का पारंपरिक त्योहार पोला है और हम बत कर रहे हैं, पोला में मिट्टी के खिलौने बेचने वाले कुम्भकारों की, जो कोरोना और बारिश के बीच जैसे-तैसे बाजार तो पहुंचे, लेकिन ग्राहक उनका सामान खरीदने नहीं पहुंच रहे हैं.

कोरोना और बारिश की मार झेल रहे कुम्भकार

मिट्टी के खिलौने और बर्तन बनाने वाले कुम्भकार बताते हैं, उन्होंने सोचा था कि लॉकडाउन खुलने के बाद उन्हें कुछ फायदा होगा और उनके मिट्टी के खिलौने बिक जाऐंगे, लेकिन बारिश ने उनकी इस उम्मीद पर भी पानी फेर दिया. कुम्भकार बताते हैं कि हर साल इस त्योहार के दिन वे 20 से 25 हजार रुपये कमा लेते थे, जिससे उन्हें सालभर का घर का खर्च चलाने में मदद मिलती थी, लेकिन इस साल न तो मिट्टी के खिलौने बिके है और न ही बर्तन.

वे बताते हैं, इस साल कोरोना के डर से लोग घरों में ही बैल बना ले रहे हैं. हमारे बैल हमारी दुकानों में ही रुक जा रही है. पोला के बाद तीजा का पर्व आता है. पोला में की गई कमाई से ही वे तीजा मनाते थे, लेकिन इस साल उन्होंने सिर्फ मायूसी ही कमाई है. ऐसे में वे त्योहार कैसे मनाएंगे, भगवान जानें.

मिट्टी के खिलौनों से सजा बाजार
मिट्टी के खिलौनों से सजा बाजार

पढ़ें: रायपुर: मिट्टी के खिलौने और बैलों से सजा बाजार, कल ठेठरी-खुरमी से महकेंगे घर

क्या है पोला की मान्यता

पोला छत्तीसगढ़ के प्रमुख त्योहारों में से एक है. इस दिन मिट्टी के खिलौने आवश्यक रूप से खरीदे जाते हैं. कहा जाता है कि बैल और मिट्टी के बर्तन लोगों को एक तरह से साल में एक बार सामाजिक होने का एहसास दिलाता है. बैल सामान्यता बालक वर्ग लेकर घूमते हैं, जिसका संकेत खेती करना होता है. मिट्टी के बरतन लड़कियों के लिए होता है, मिट्टी के बर्तन गृहस्थी की प्रेरणा देती है.

  • खेती किसानी से जुड़ा पर्व
  • भाद्र पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है पोला
  • खेती किसानी का काम समाप्त हो जाने के बाद मनाया जाता है त्योहार
  • इस दिन अन्न माता गर्भ धारण करती हैं
  • पोला के दिन धान के पौधों में दूध भरता है
  • इस दिन खेत जाने की मनाही होती है
  • पोला महिला, पुरुष और बच्चों के लिए अलग-अलग महत्व रखता है
  • पोला के बाद तीज का त्योहार मनाया जाता है
  • पोला त्योहार के दिन महिलाें अपने मायके आती है
  • बैल और हल की होती है पूजा
  • ठेठरी, खुरमी और गुड़ का चिला बनाने की है परंपरा
  • मिट्टी के बैल, चुकिया, जाता सहित कई खिलौने खरीदने की है परंपरा

मिट्टी के खिलौने बेचने में हो रही परेशानी

मार्केट में मौजूद कुछ ग्राहकों का कहना है कि कुम्भकारों का व्यापार इन कुछ त्योहारों में ही होता है और बिना सामान पूजा होना भी मुश्किल है. ऐसे में लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए समानों की खरीददारी करना चाहिए. कारीगरों ने लॉकडाउन के दौरान बड़ी मशक्कत से मिट्टी की व्यवस्था की थी और मिट्टी के खिलौने बनाए थे. लेकिन अब इन्हें बेचना मुश्किल हो गया है.

महासमुंद: कोरोना वायरस और अब बारिश, दोनों ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बुरा असर डाला है. हालात ये हैं कि सीमांत किसानों से लेकर मूर्ति के खिलौने और बर्तन बनाने वाले इन दिनों बुरे दौर से गुजर रहे हैं. ग्रामीण अंचलों के छोटे व्यवसायी तो दाने-दाने के लिए मोहताज हो गए हैं. आज छत्तीसगढ़ का पारंपरिक त्योहार पोला है और हम बत कर रहे हैं, पोला में मिट्टी के खिलौने बेचने वाले कुम्भकारों की, जो कोरोना और बारिश के बीच जैसे-तैसे बाजार तो पहुंचे, लेकिन ग्राहक उनका सामान खरीदने नहीं पहुंच रहे हैं.

कोरोना और बारिश की मार झेल रहे कुम्भकार

मिट्टी के खिलौने और बर्तन बनाने वाले कुम्भकार बताते हैं, उन्होंने सोचा था कि लॉकडाउन खुलने के बाद उन्हें कुछ फायदा होगा और उनके मिट्टी के खिलौने बिक जाऐंगे, लेकिन बारिश ने उनकी इस उम्मीद पर भी पानी फेर दिया. कुम्भकार बताते हैं कि हर साल इस त्योहार के दिन वे 20 से 25 हजार रुपये कमा लेते थे, जिससे उन्हें सालभर का घर का खर्च चलाने में मदद मिलती थी, लेकिन इस साल न तो मिट्टी के खिलौने बिके है और न ही बर्तन.

वे बताते हैं, इस साल कोरोना के डर से लोग घरों में ही बैल बना ले रहे हैं. हमारे बैल हमारी दुकानों में ही रुक जा रही है. पोला के बाद तीजा का पर्व आता है. पोला में की गई कमाई से ही वे तीजा मनाते थे, लेकिन इस साल उन्होंने सिर्फ मायूसी ही कमाई है. ऐसे में वे त्योहार कैसे मनाएंगे, भगवान जानें.

मिट्टी के खिलौनों से सजा बाजार
मिट्टी के खिलौनों से सजा बाजार

पढ़ें: रायपुर: मिट्टी के खिलौने और बैलों से सजा बाजार, कल ठेठरी-खुरमी से महकेंगे घर

क्या है पोला की मान्यता

पोला छत्तीसगढ़ के प्रमुख त्योहारों में से एक है. इस दिन मिट्टी के खिलौने आवश्यक रूप से खरीदे जाते हैं. कहा जाता है कि बैल और मिट्टी के बर्तन लोगों को एक तरह से साल में एक बार सामाजिक होने का एहसास दिलाता है. बैल सामान्यता बालक वर्ग लेकर घूमते हैं, जिसका संकेत खेती करना होता है. मिट्टी के बरतन लड़कियों के लिए होता है, मिट्टी के बर्तन गृहस्थी की प्रेरणा देती है.

  • खेती किसानी से जुड़ा पर्व
  • भाद्र पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है पोला
  • खेती किसानी का काम समाप्त हो जाने के बाद मनाया जाता है त्योहार
  • इस दिन अन्न माता गर्भ धारण करती हैं
  • पोला के दिन धान के पौधों में दूध भरता है
  • इस दिन खेत जाने की मनाही होती है
  • पोला महिला, पुरुष और बच्चों के लिए अलग-अलग महत्व रखता है
  • पोला के बाद तीज का त्योहार मनाया जाता है
  • पोला त्योहार के दिन महिलाें अपने मायके आती है
  • बैल और हल की होती है पूजा
  • ठेठरी, खुरमी और गुड़ का चिला बनाने की है परंपरा
  • मिट्टी के बैल, चुकिया, जाता सहित कई खिलौने खरीदने की है परंपरा

मिट्टी के खिलौने बेचने में हो रही परेशानी

मार्केट में मौजूद कुछ ग्राहकों का कहना है कि कुम्भकारों का व्यापार इन कुछ त्योहारों में ही होता है और बिना सामान पूजा होना भी मुश्किल है. ऐसे में लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए समानों की खरीददारी करना चाहिए. कारीगरों ने लॉकडाउन के दौरान बड़ी मशक्कत से मिट्टी की व्यवस्था की थी और मिट्टी के खिलौने बनाए थे. लेकिन अब इन्हें बेचना मुश्किल हो गया है.

Last Updated : Aug 18, 2020, 5:09 PM IST
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