कोरिया : जिले में कई सारे पर्यटन स्थल हैं. जो अपने साथ कई कहानियां समेटे हुए हैं. वनों के गुफाओं और तलहटियों में कई पत्थरों पर गुमनाम शैलचित्र हैं. जो गहरे लाल, खड़िया, गेरू रंग में अंकित हैं. कोरिया जिले के इलाके में बेहद दुर्लभ जड़ी बूटियां भी पाई जाती हैं. गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान (Gurughasidas National Park of koriya) तीन जिले कोरिया एमसीबी सूरजपुर से घिरा है. इस राष्ट्रीय उद्यान में वन्य प्राणी, वनस्पति, जड़ी बूटी, पत्थर चट्टान, नदी नाले के अलावा प्राचीन ऐतिहासिक दुर्लभ चीजें भी मौजूद हैं.
दुर्लभ चीजों से भरी है घाटी : विकासखण्ड भरतपुर के गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान के परिक्षेत्र में लिखामाड़ा , गुड़वन्दापाठ ,अन्य दर्जन भर जगहों में प्राकृतिक रूप से गहरी खाई के ऊपर पत्थरो में शैलचित्र अंकित हैं. जिसमें प्रचीन मानव सभ्यता की पहचान दिखती है. इन भित्त चित्रों की भाषा शैली को आज तक कोई नहीं पढ़ पाया ( Rare mural paintings in Gurughasidas National Park) है. इसलिए अभी तक यह इतिहास के पन्नों में गुम है. इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के लिए आज भी यह शोध का विषय है,लेकिन जानकारी और प्रचार के अभाव के कारण इतिहास के पन्नों में ये स्थान अपनी जगह नहीं बना पाया है. इन पहाड़ी चट्टानों पर बने घोड़े, हाथी देवी ,देवता,शिकारी पशु पक्षी प्राकृतिक चित्र हस्त लिपिक है, जिन्हें देखकर लगता है कि पुराने जमाने के लोग एक दूसरे को संदेश पहुंचाने के लिए इस तरह के शैलचित्र का प्रयोग करते रहे होंगे.
पर्यटन के लिए है विकल्प : प्रकृति से लगाव रखने वाले लोगों के लिए यहां पर्यटन का अच्छा ऑप्शन हो सकता है, यहां पहाड़ों का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है. साथ ही प्राचीनकाल काल में बनाए गया शैलचित्र भी देखे जा सकते हैं. आज भी इन भित्तिचित्र वाले पहाड़ियों में किसी भी प्रकार का आवागमन नही है. पगडंडी विहीन जगहों के पत्थर चट्टानों पर भित्तिचित्र आरेखित हैं. बताया जा रहा है कि यहां चरवाहों के आवागमन पहुंच से दुर्गम पहाड़ी के भित्तिचित्र की जानकारी आम लोगों तक पहुंची. अब लोग मुश्किल रास्तों से इन्हें देखने पहुंच रहे हैं. वहीं गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान संचालक की पहल से एक दर्जन से अधिक भित्तिचित्र की पहचान करवाई जा रही है उनके सरंक्षण के लिये भी प्रयास किये जा रहे हैं. जिसके लिये बाकायदा फोटोग्राफी संग्रहण कर " शेड्स ऑफ द पास्ट "पुस्तक तैयार कर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के हांथों विमोचित की गयी है.
संरक्षण के लिए प्रयास : इनके सरंक्षण संवर्धन की साथ में इन्हें पर्यटक के रूप में विकसित करने की पहल की जा रही है. ताकि कई गुमनाम दुर्लभ भित्तचित्र और अन्य ऐतिहासिक चीजों की खोज हो सके. आप इन भित्तिचित्र के माध्यम से अन्दाजा लगा सकते कि हजारों वर्ष पूर्व भी भारतीय शिक्षा पद्धति कला कितनी विकसित रही होगी. जिसके हजारों वर्ष बाद भी जीवंत प्रमाण भित्तचित्र के रूप में मौजूद हैं. निश्चित तौर पर हजारों वर्ष पूर्व इन घने जंगल में राजा महाराजा या शिकारी के साथ भित्तचित्र के कलाकार भी आते रहे होंगे. जिन्होंने पत्थरों पर इस तरह के चित्र उकेरे हैं
लावाहोरी के जंगल में दुर्लभ जड़ीबूटी : इस क्षेत्र में फैला लावाहोरी का जंगल वैसे तो वन्य जीवों के अभ्यारण के मामले में अलग पहचान रखता है. बेशकीमती वृक्षों के अलावा इस जंगल में दुर्लभ जड़ी बूटियों का भी अकूत भंडार है. औषधीय पौधों की पहचान रखने वाले वैद्य बताते हैं कि '' इस जंगल में जो जड़ी बूटी पाई जाती है, वो अपने आप में अनूठी है. इनका दूसरे स्थान पर मिलना भी दुर्लभ है. नाग दामिनी औषधीय पौधा भी है. यहां मिलने वाली जड़ी बूटी में ग्रह दोष नाशक, बात ज्वर नाशक, विष हरण के गुण हैं. जिससे दूसरों की जिंदगी बचाई जा सकती है.