कोरबा: भीषण प्रदूषण के इस दौर में अगर कोई आपसे यह कहे कि विलुप्त होती गौरैया, मेरे बुलाने पर आंगन में चली आती है तो आप इसे मजाक ही समझेंगे. लेकिन आज हम आपको 15 साल की दुर्गा और गौरेया के बीच के अनोखे रिश्ते के बारे में बताएंगे, तब आपको यह बात मजाक नहीं लगेगी.
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लगभग एक दशक पहले तक गौरैया की चहचहाहट लगभग सभी घरों में आम हुआ करती थी. इनके चेहरे से ही नींद खुलना आम बात थी. लेकिन अब गौरैया की यह प्रजाति विलुप्ति के कगार पर है. आसानी से दिख जाने वाली गौरैया अब नहीं दिखती. लेकिन कोरबा जिले के गोढ़ी गांव की दुर्गा एक उम्मीद की किरण हैं. जिसके आंगन में हर रोज लगभग 100 की संख्या वाला गौरैया का एक झुंड दाना चुगने आता है. जानकार मानते हैं कि इस तरह के प्रयासों को और भी आगे बढ़ाया जाना चाहिए, क्योंकि गौरैया हमारे पर्यावरण में संतुलन बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी है.
क्यों खास है गौरैया और दुर्गा का रिश्ता: गांव गोढ़ी कोरबा शहर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर है. आसपास का वातावरण पूरी तरह से ग्रामीण परिवेश वाला है. आसपास हरे भरे पेड़ हैं. पानी की पर्याप्त व्यवस्था है. दुर्गा जब 14 साल की थी, तब उसे गौरैया चिड़िया के बारे में पता चला. शहर की अपेक्षा गांव में अब भी गौरैया की मौजूदगी है. दुर्गा ने लगभग 1 साल पहले पहली बार गौरैया को चुगने के लिए चावल के कुछ दाने दिए. गौरैया इसे चुगने के बाद अपने घोंसले में उड़ गई. यह सिलसिला कुछ दिनों तक यूं ही चला और देखते ही देखते पूरा झुंड मानो दुर्गा के बुलाने पर आंगन में आने लगा. अब तो लगभग 1 साल से यह सिलसिला जारी है. गौरैया चिड़िया के झुंड को दुर्गा के आंगन में आने का समय भी पता है. वह ठीक उसी समय आंगन में दाना चुगने आ जाते हैं, जब दुर्गा उनके लिए चावल या गेहूं के दाने लेकर उन्हें बुलाती है.
दाना नहीं देने पर पीटते हैं छत: दुर्गा अपने और गौरैया के बीच में बने इस अनोखे रिश्ते के बारे में कहती हैं कि "मुझे गौरैया चिड़िया की चहकने की आवाज बेहद पसंद है. इसी से मैं आकर्षित हुई थी. अब तो पिछले लगभग 1 साल से सुबह और शाम दोनो टाइम उन्हें दाना देती हूं. हमारे बीच एक रिश्ता बन गया है. मैं चाहती हूं कि गौरैया चिड़िया की संख्या और बढ़े. लोग इन्हें संरक्षण दें.''
दुर्गा ने यह भी बताया कि "जब कभी हम गौरैया चिड़िया को दाना देने में देर करते हैं या कभी चूक होती है, तब चिड़ियों का झुंड हमारे छत पर उड़ता है. कई बार तो वह छत भी पीटते हैं. यह देख मुझे बहुत अच्छा महसूस होता है.''
लोगों से कहते हैं, नुकसान ना पहुंचाएं : स्थानीय ग्रामीण लक्ष्मीन बाई का कहना है कि ''गौरैया का झुंड दुर्गा के आंगन में आता है. लगभग 1 साल हो चुका है. रोज सुबह शाम गौरैया का झुंड आंगन में आता है. दुर्गा इन्हें दाना चुगने के लिए देती है. दाना चुगने के बाद गौरैया अपने घोंसले में लौट जाती है और अपने परिवार का पालन पोषण करती है. हम लोग गांव के लोगों से अपील करते हैं कि इन्हें किसी तरह का नुकसान ना पहुंचाएं. चिड़ियों का झुंड एक तरफ से शुभ संकेत ही है.''
पर्यावरण संतुलन के लिए जरूरी है गौरैया : जूलॉजी के प्रोफेसर बलराम कुर्रे कहते हैं कि "गौरैया पर्यावरण के संतुलन के लिए बेहद जरूरी है. हमारे खेतों में जो कीट पतंग और इंसेक्ट होते हैं. उन्हें खाकर गोरैया हमारी फसलों को बचाती है. जिससे हमें पोषण युक्त फसल प्राप्त होती है. पर्यावरण में संतुलन बनाए रखने के लिए गौरैया और इस तरह के चिड़िया का संरक्षण जरूरी है. यदि कहीं ऐसा हो रहा है तो यह खुशी की बात है. दुर्गा की तरह ही लोगों को भी इस तरह का प्रयास करना चाहिए. अन्य देशों में इसे होम स्पैरो भी कहा जाता है. गौरैया इंसानों के आसपास ही पाई जाती है. इंसानों में घुल मिलकर रहना पसंद करती है. जिसके कारण ही यह पूरी तरह से पालतू तो नहीं है लेकिन कुछ हद तक पालतू चिड़िया भी कहा जा सकता है.''