कोरबा: वनांचल ग्राम पंचायत केंदई में सरकारी विभाग ने मिलकर एक छोटे से बारहमासी बरसाती नाले पर पांच स्टॉप डैम बना दिए. जबकि इन पांचों स्टॉप डैम में से किसी एक में भी पानी नहीं ठहरता. प्रत्येक डैम की लागत 19 और 20 लाख रुपये के बीच है. ग्रामीणों को डैम का लाभ नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि डैम का निर्माण किसके लिए किया गया और इसका फायदा किसे पहुंचा?
आमतौर पर अंदरूनी क्षेत्रों तक लोगों की पहुंच कम है. अफसरों की नजर भी यहां तक नहीं जाती. ग्रामीणों का आरोप है कि इसी बात का फायदा उठाकर कई विभाग के अधिकारियों ने यहां भ्रष्टाचार किया है. स्टॉपडैम बरसात के पानी को बर्बाद होने से बचाने के लिए छोटी परियोजनाएं होती हैं, जिन्हें सिंचाई, कृषि और वन विभाग अपने-अपने मद से जरूरत के मुताबिक बनाते हैं. कई बार आपसी सामंजस्य के अभाव और सुनियोजित भ्रष्टाचार को अंजाम देने के लिए भी एक ही जगह पर कई विभाग स्टॉप डैम बना देते हैं. निर्माण के बाद पता चलता है कि एक ही जगह पर दोनों विभाग ने निर्माण करा दिया.
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पोड़ी उपरोड़ा ब्लॉक के ग्राम पंचायत केंदई की बसाहट उदेना में में भी यही हुआ है. यह पूरा क्षेत्र मिनीमाता बांगो परियोजना का डूबान क्षेत्र है. जहां से मनियारी और जात्रा नाला बहता है. यह दोनों ही नाले आगे जाकर केंदई जलप्रपात में समाहित होते हैं. यह दोनों बारहमासी बरसाती नाले हैं. जहां से ग्रामीणों को निस्तारी के लिए पर्याप्त पानी मिलता है. आसपास के खेतों की सिंचाई, वन्य प्राणियों को पेयजल के साथ ही बरसाती पानी के स्टोरेज के लिए इस नाले पर स्टॉप डैम का निर्माण किया गया है. हैरानी वाली बात यह है कि 2 किलोमीटर के फासले पर ही वन और कृषि विभाग ने जलग्रहण मिशन के तहत 5 स्टॉपडैम बना दिए हैं.
कुछ बह गए, कुछ में नहीं लगे गेट
उदेना में सभी स्टाप डैम का निर्माण पिछले दो साल के दौरान ही किया गया है. लेकिन निर्माण कार्य में भ्रष्टाचार का ही नतीजा है कि इनमें से कुछ डैम बह चुके हैं, तो कुछ स्टॉप डैम के ब्लॉक के बीच में गेट नहीं लगाया गया है. जिसके कारण किसी में पानी ही नहीं ठहरता. अब जिस उद्देश्य के लिए स्टॉपडैम का निर्माण किया गया है. वह उद्देश्य ही अधूरा है.
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प्रत्येक डैम की लागत 19 से 20 लाख रुपये
निर्माण कार्य 20 लाख रुपये से ज्यादा के हो तब टेंडर प्रक्रिया में जाना पड़ता है. लेकिन 20 लाख से कम के काम पंचायत स्तर पर ही कराए जाने का नियम है. इस तरह के निर्माण में जमकर भ्रष्टाचार होता है, चहेते ठेकेदारों से सांठगांठ कर उन्हें काम तो आवंटित कर दिया जाता है. लेकिन इनकी गुणवत्ता पर किसी का ध्यान नहीं जाता.
30% कमीशनखोरी का भी आरोप
ग्रामीण कृष्णा लाल यादव, उदेना के निवासी हैं. उन्होंने आरोप लगाया है कि वे भी गांव के एक बेरोजगार नागरिक हैं. पंचायत से वन विभाग और कृषि विभाग के जल ग्रहण द्वारा बनने वाले स्टॉप डैम का ठेका लेना चाह रहे थे. लेकिन इसके लिए जिम्मेदार अफसरों ने पहले ही 30 फीसदी कमीशन की मांग की. जिसका अर्थ यह हुआ कि 20 लाख के निर्माण कार्य के लिए 6 लाख रुपये कमीशन के तौर पर पहले ही अफसरों को देने होंगे. उन्होंने कहा कि इतने पैसे देने के लिए मेरे पास राशि नहीं थी. जिसके कारण अधिकारियों ने अपने चहेते ठेकेदारों को काम दे दिया. जो काम शुरू होने के पहले ही कमीशन का पैसा पहुंचा दे.
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पंचायत स्तर पर ऐसे कई उदाहरण
पंचायत स्तर पर सरकारी राशि के बंदरबांट के ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे. जिसमें गुणवत्ता की अनदेखी करते हुए जमकर भ्रष्टाचार किया जाता है. निर्माण कार्य एक-दो साल में ही पूरी तरह से बेकार हो जाते हैं और कमीशनखोरी की भेंट चढ़ जाते हैं.
आरोपों से अफसरों का इनकार
30 फीसदी कमीशन और गुणवत्ताहीन निर्माण के विषय में कृषि विभाग के उपसंचालक एमजी श्यामकुंवर का कहना है कि स्टॉपडैम के गुणवत्ता हीन होने और गेट नहीं लगे होने के विषय में कोई लिखित या मौखिक शिकायत नहीं मिली है. लेकिन यदि इस तरह की जानकारी सामने आएगी तो हम निश्चित तौर पर जांच करेंगे और कार्रवाई भी करेंगे.भ्रष्टाचार और कमीशन खोरी के विषय में उन्होंने कहा कि आरोप लगाना आसान होता है, लेकिन उसे सिद्ध करना मुश्किल. इस तरह के आरोप बेबुनियाद हैं.