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कोयला संकट से जूझ रहे पॉवर प्लांट, बिजली उत्पादन पर पड़ सकता है असर - कोयला आपूर्ति की कोशिश

प्रदेशभर में कोयला की आपूर्ति करने वाले कोल माइंस से पर्याप्त उत्पादन नहीं हो पा रहा है. इसकी वजह से पॉवर प्लांट कोयला संकट से जूझ रहा है. वहीं पावर प्लांट को कोयला जल्द ही नहीं मिला तो उत्पादन पूरी तरह से ठप हो सकता है.

Power plants facing coal crisis
कोयला संकट से जूझ रहे पॉवर प्लांट
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Published : Nov 28, 2019, 7:33 AM IST

Updated : Nov 28, 2019, 8:03 AM IST

कोरबा: देशभर को कोयला की आपूर्ति करने वाले जिले के कोयला खदान अपने ही जिले को पर्याप्त मात्रा में कोयला नहीं दे पा रहे है. यही कारण है कि जिले के पावर प्लांट कोयले की कमी से जूझ रहे हैं. हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि आज तक की स्थिति में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी (DSPM) पावर प्लांट के पास केवल डेढ़ दिन के कोयले का स्टॉक बचा है. वहीं यदि जल्द ही पावर प्लांट को कोयला नहीं मिला तो उत्पादन पूरी तरह से ठप हो सकता है.

कोयला संकट से जूझ रहे पॉवर प्लांट

बिजली उत्पादन पर पड़ सकता है असर

बता दें कि 509 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता वाले DSPM पावर प्लांट को बिजली उत्पादन के लिए हर दिन 8 हजार मिट्रिक टन कोयले की जरूरत होती है. जबकि वर्तमान में पावर प्लांट के पास महज 11 हजार मिट्रिक टन कोयले का स्टॉक ही बचा है. जो कि सिर्फ डेढ़ दिन तक ही उपयोग में लाया जा सकता है. इसका असर सीधे तौर पर बिजली उत्पादन पर पड़ सकता है. जिस पावर प्लांट से 500 मेगावाट बिजली उत्पादन की जा सकती है, वर्तमान में वहां से सिर्फ 150 से 200 मेगावाट के बीच ही बिजली उत्पादित हो रही है. जिसका कारण कोयले की कमी है.

3000 से अधिक है प्रदेश में बिजली की मांग
वर्तमान में छत्तीसगढ़ में 3054 मेगावाट बिजली की मांग बनी हुई है. यह बिजली जिले में उत्पन्न होती है. इसमें 500 मेगावाट की क्षमता वाले DSPM का भी योगदान शामिल है. जहां से सीधे तौर पर उत्पादन बंद होने का मतलब यह होगा कि राज्य को जरूरत के मुताबिक बिजली आपूर्ति नहीं हो सकेगी.

शासन पर पड़ सकता है भारी भरकम बोझ

ऐसी स्थिति में राज्य को अपने अनुबंध के तहत सेंट्रल ग्रिड से बिजली उधार लेनी पड़ती है. साथ ही सेंट्रल ग्रेड से ली गई बिजली के एवज में शासन अनुबंधित बिजली कंपनी को पैसे चुकाती है. जिसका भारी भरकम आर्थिक बोझ शासन पर पड़ता है.

कोयला आपूर्ति की कोशिश
इस विषय में CSEB के अफसरों का साफ तौर पर कहना है कि 'जब उनके पास पर्याप्त मात्रा में कोयले का स्टॉक नहीं होता है, तो उन्हें नियमित तौर पर ऐसी स्थिति से जूझना पड़ता है. वहीं जरूरत के मुताबिक कोयले की सप्लाई SECL की ओर से नहीं की जाती है. जिसके कारण प्लांट का लोड कम करना पड़ता है.

पढ़े: छत्तीसगढ़ के 8 शिक्षकों को मिला 'टीचर ग्लोबल अवार्ड', 8 में 7 सूरजपुर जिले के

SECL के अधिकारियों का कहना हैं कि वो हर हाल में पावर प्लांट को पर्याप्त मात्रा में कोयला सप्लाई करने का प्रयास कर रहे हैं.

कोरबा: देशभर को कोयला की आपूर्ति करने वाले जिले के कोयला खदान अपने ही जिले को पर्याप्त मात्रा में कोयला नहीं दे पा रहे है. यही कारण है कि जिले के पावर प्लांट कोयले की कमी से जूझ रहे हैं. हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि आज तक की स्थिति में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी (DSPM) पावर प्लांट के पास केवल डेढ़ दिन के कोयले का स्टॉक बचा है. वहीं यदि जल्द ही पावर प्लांट को कोयला नहीं मिला तो उत्पादन पूरी तरह से ठप हो सकता है.

कोयला संकट से जूझ रहे पॉवर प्लांट

बिजली उत्पादन पर पड़ सकता है असर

बता दें कि 509 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता वाले DSPM पावर प्लांट को बिजली उत्पादन के लिए हर दिन 8 हजार मिट्रिक टन कोयले की जरूरत होती है. जबकि वर्तमान में पावर प्लांट के पास महज 11 हजार मिट्रिक टन कोयले का स्टॉक ही बचा है. जो कि सिर्फ डेढ़ दिन तक ही उपयोग में लाया जा सकता है. इसका असर सीधे तौर पर बिजली उत्पादन पर पड़ सकता है. जिस पावर प्लांट से 500 मेगावाट बिजली उत्पादन की जा सकती है, वर्तमान में वहां से सिर्फ 150 से 200 मेगावाट के बीच ही बिजली उत्पादित हो रही है. जिसका कारण कोयले की कमी है.

3000 से अधिक है प्रदेश में बिजली की मांग
वर्तमान में छत्तीसगढ़ में 3054 मेगावाट बिजली की मांग बनी हुई है. यह बिजली जिले में उत्पन्न होती है. इसमें 500 मेगावाट की क्षमता वाले DSPM का भी योगदान शामिल है. जहां से सीधे तौर पर उत्पादन बंद होने का मतलब यह होगा कि राज्य को जरूरत के मुताबिक बिजली आपूर्ति नहीं हो सकेगी.

शासन पर पड़ सकता है भारी भरकम बोझ

ऐसी स्थिति में राज्य को अपने अनुबंध के तहत सेंट्रल ग्रिड से बिजली उधार लेनी पड़ती है. साथ ही सेंट्रल ग्रेड से ली गई बिजली के एवज में शासन अनुबंधित बिजली कंपनी को पैसे चुकाती है. जिसका भारी भरकम आर्थिक बोझ शासन पर पड़ता है.

कोयला आपूर्ति की कोशिश
इस विषय में CSEB के अफसरों का साफ तौर पर कहना है कि 'जब उनके पास पर्याप्त मात्रा में कोयले का स्टॉक नहीं होता है, तो उन्हें नियमित तौर पर ऐसी स्थिति से जूझना पड़ता है. वहीं जरूरत के मुताबिक कोयले की सप्लाई SECL की ओर से नहीं की जाती है. जिसके कारण प्लांट का लोड कम करना पड़ता है.

पढ़े: छत्तीसगढ़ के 8 शिक्षकों को मिला 'टीचर ग्लोबल अवार्ड', 8 में 7 सूरजपुर जिले के

SECL के अधिकारियों का कहना हैं कि वो हर हाल में पावर प्लांट को पर्याप्त मात्रा में कोयला सप्लाई करने का प्रयास कर रहे हैं.

Intro:कोरबा। देशभर को कोयला की आपूर्ति करने वाले जिले के कोयला खदान अपने ही जिले को पर्याप्त मात्रा में कोयला नहीं दे पा रहे हैं। यही कारण है कि जिले के पावर प्लांट कोयले की कमी से जूझ रहे हैं। हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि आज तक की स्थिति में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी(DSPM) पावर प्लांट के पास केवल डेढ़ दिन के कोयले का स्टॉक शेष है। अब यदि जल्द ही पावर प्लांट को कोयला नहीं मिला तो उत्पादन पूरी तरह से ठप हो सकता है।


Body:509 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता वाले डीएसपीएम पावर प्लांट को बिजली उत्पादन के लिए हर दिन 8 हजार मिट्रिक टन कोयले की आवश्यकता होती है ल। जबकि वर्तमान में पावर प्लांट के पास महज 11 हजार मिट्रिक टन कोयले का स्टॉक ही शेष बचा है ल। यह सिर्फ डेढ़ दिन तक ही उपयोग में लाया जा सकता है। अब इसका असर सीधे तौर पर बिजली उत्पादन पर पड़ा है। जिस पावर प्लांट से 500 मेगावाट बिजली उत्पादन की जा सकती है, वर्तमान में वहां से सिर्फ 150 से 200 मेगावाट के बीच ही बिजली उत्पादित हो रही है। जिसका कारण कोयले की कमी है।

3000 से अधिक है प्रदेश में बिजली की मांग
वर्तमान में छत्तीसगढ़ में 3054 मेगावाट बिजली की मांग बनी हुई है। यह बिजली जिले में उत्पन्न होती है। इसमें 500 मेगावाट की क्षमता वाले डीएसपीएम का भी योगदान शामिल है। जहां से सीधे तौर पर उत्पादन बंद होने का मतलब यह होगा कि राज्य को जरूरत के मुताबिक बिजली आपूर्ति नहीं हो सकेगी।
ऐसी स्थिति में राज्य को अपने अनुबंध के तहत सेंट्रल ग्रिड से बिजली उधार लेनी पड़ती है। जिसका बोझ शासन पर पड़ता है। सेंट्रल ग्रेड से ली गई बिजली के एवज में शासन अनुबंधित बिजली कंपनी को पैसे चुकाती है। जिसका भारी भरकम आर्थिक बोझ शासन पर पड़ता है।


Conclusion:कोयला आपूर्ति की कोशिश
इस विषय में सीएसईबी के अफसरों का साफ तौर पर कहना है कि उन्हें नियमित तौर पर ऐसी स्थिति से जूझना पड़ता है। जब उनके पास पर्याप्त मात्रा में कोयले का स्टॉक नहीं होता। जरूरत के मुताबिक कोयले की सप्लाई एसईसीएल द्वारा नहीं की जाती जिसके कारण प्लांट का लोड कम करना पड़ता है।
दूसरी तरफ एसईसीएल के अफसर कहते हैं कि एसईसीएल हर हाल में पावर प्लांट को पर्याप्त मात्रा में कोयला सप्लाई का प्रयास करती है।

बाइट
1. आलोक लकरा, एडिशनल सीई, सीएसईबी
2. मिलिंद चहांदे, एपीआरओ, एसईसीएल
Last Updated : Nov 28, 2019, 8:03 AM IST
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