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कोरोना काल में शिक्षकों का वेतन हुआ आधा, परेशानी हुई दोगुनी

कोरोना महामारी (corona pandemic) से कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं रहा है. सारी गतिविधियों पर कोरोना की काली परछाई ऐसी पड़ी कि इससे सबकी कमर टूट गई. इन्हीं में से एक है शिक्षक वर्ग जो कोरोना काल में बेहद बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. अब इनका जीवन कर्ज से पैसों से चल रहा है.

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कोरोना काल में शिक्षकों की आर्थिक स्थिति
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Published : Jun 4, 2021, 9:56 PM IST

कोरबा: कम वेतन पाकर भी समाज से मिलने वाले सम्मान से शिक्षक संतोष कर लेते हैं. लेकिन जब वेतन न मिले तब सिर्फ सम्मान के भरोसे घर चलाना कितना कठिन हो जाता है ये कोरोना काल (corona pandemic) के मारे निजी स्कूलों के शिक्षकों से बेहतर कोई नहीं बता सकता. कोरोना काल में शिक्षकों की स्थिति (condition of teachers in corona period) बेहद खराब रही है.

कोरोना काल में शिक्षकों का वेतन हुआ आधा

निजी स्कूल के शिक्षकों की आर्थिक स्थिति खराब

लॉकडाउन (lockdown) के बाद बड़े स्कूल अब फिर से पटरी पर लौट रहे हैं. यहां ऑनलाइन क्लास (online class) के एवज में भी फीस ली जा रही है. जिससे शिक्षकों को पूरा पेमेंट मिल रहा है. लेकिन खास तौर पर छोटे स्तर पर संचालित निजी स्कूल में काम करने वाले शिक्षकों के लिए कोरोना ने बड़ी मुश्किल खड़ी कर दी है. कोरोना संक्रमण काल शिक्षकों के लिए किसी त्रासदी से कम नहीं रहा. इस दौरान सबसे पहले स्कूलों को बंद किया गया. जिससे बड़ी तादात में या तो शिक्षकों का रोजगार छिन चुका है, या फिर उनके वेतन में 50 फीसदी तक कटौती कर दी गई है.

सरकारों ने नहीं की पहल

शिक्षकों का समाज में एक अलग स्थान होता है. एक सम्मान होता है. इसलिए वह मजदूरी या इस तरह का कोई काम भी नहीं कर पाते. लेकिन सिर्फ सम्मान से घर का चूल्हा नहीं जलता. कोरोना काल में स्कूलों के बंद होते ही बच्चों की फीस आनी बंद हो गई. अभिभावकों ने मुहिम छेड़ दी थी कि 'नो स्कूल, नो फीस'. मामला कोर्ट तक भी पहुंच गया था. लेकिन इन परिस्थितियों में निजी स्कूल के शिक्षकों को वेतन कैसे मिलता? इस पर किसी का ध्यान नहीं गया. कोई चर्चा नहीं हुई. सरकारों ने भी इस दिशा में कोई पहल नहीं की. जिसका नतीजा ये हुआ कि कोरोना की पहली लहर (first wave of corona) के बाद अब दूसरे लहर को डेढ़ साल बीत चुके हैं. इस दौरान निजी स्कूल के शिक्षक लगातार आर्थिक बोझ तले दबते चले गए.

वेतन हो गया आधा, परेशानी हो गई दोगुनी

शहर के राजेंद्र महंत नाम के एक व्यक्ति सरस्वती शिशु मंदिर में कॉमर्स के सीनियर व्याख्याता (lecturer) हैं. कोरोना काल शुरू होते ही बच्चों की फीस आनी बंद हो गई. जिससे उनका वेतन आधा कर दिया गया. राजेंद्र कहते हैं कि वेतन कम होने के बाद आर्थिक स्थिति (financial condition) बेहद पतली हो गई है. हालांकि बच्चों की फीस जैसे-जैसे आती है. उसी अनुपात में वेतन धीरे-धीरे जारी किया जाता है. लेकिन तब तक कर्ज इतना बढ़ जाता है कि हाथ में कुछ भी पैसे बचते ही नहीं हैं. परेशानी बढ़ गई है. लेकिन वेतन कम हो गया है. कोरोना काल में वैसे तो सभी परेशान हैं. लेकिन शिक्षकों पर आर्थिक बोझ बेहद बढ़ चुका है. लगभग सभी शिक्षकों का यही हाल है. सरकारी शिक्षकों को तो भरपूर वेतन मिल रहा है. लेकिन प्राइवेट स्कूलों (private schools) में पदस्थ शिक्षकों की हालत खराब है. सरकार को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए.

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दुकान पर काम करने को मजबूर शिक्षक

सीतामढ़ी के मनीष अग्रवाल कोरबा इंजीनियरिंग कॉलेज (korba engineering college) में कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर गेस्ट लेक्चरर के तौर पर सेवाएं दे रहे थे. 21 हजार रुपये मासिक तनख्वाह मिल रही थी. कोरोना काल शुरू होते ही वेतन और नौकरी पूरी तरह से चली गई. मनीष कहते हैं कि हमें जिस कॉन्ट्रैक्ट के तहत पढ़ाने का काम मिला था, उसमें साफ तौर पर यह लिखा हुआ था कि कक्षाएं लेने पर ही वेतन दिया जाएगा. शुरुआती दिनों में ऑनलाइन कक्षाएं (online classes) चली 2 से 3 हजार रुपये का वेतन भी मिला. लेकिन बाद में ये भी पूरी तरह से बंद हो गया. पहले 21 हजार रुपये का मासिक वेतन मिलता था. जिससे कई तरह के खर्चे मैनेज होते थे. अब तो स्थिति ये है कि आजीविका चलाने के लिए बड़े भाई के राशन दुकान में हाथ बंटाता हूं. कुछ मित्रों के साथ मिलकर कोचिंग संस्थान (coaching institute) शुरू किया था. लेकिन अब वह भी पूरी तरह से बंद है. आज हमारे पास आजीविका का कोई भी जरिया नहीं है.

20 साल की नौकरी एक झटके में खत्म

आदर्श विद्या मंदिर नाम के सीजी बोर्ड के स्कूल में ज्योत्सना सिंह पिछले 20 सालों से बतौर शिक्षक पढ़ा रहीं थीं. कोरोना काल में बच्चों की फीस आनी बंद हुई तो स्कूल का संचालन ही बंद हो गया. सारे शिक्षक एक झटके में बेरोजगार हो गए. ज्योत्सना अपनी परेशानी कहते हुए बोझिल शब्दों में बताती हैं कि कोरोना काल ने पूरी तरह से रोजगार छीन लिया है. वे बताती हैं कि स्कूल छोटा था, जो कि पूरी तरह से बच्चों की फीस से ही चलता था. बच्चों की फीस आनी बंद हुई तो स्कूल पूरी तरह से बंद हो गया. एक अन्य स्कूल में नौकरी शुरू की, यहां भी कोरोना के कारण बच्चों की फीस लेने में दिक्कत आई. अब रोजगार के सारे दरवाजे बंद हैं. 20 साल तक नौकरी की लेकिन सोचा नहीं था कि एक झटके में ही आय के सारे दरवाजे बंद हो जाएंगे. प्राइवेट नौकरी (private job) करने वाले मिलजुल कर घर चलाते हैं. यदि किसी एक की भी नौकरी चली जाए तो, आर्थिक बोझ बहुत बढ़ जाता है. आजीविका चलाने में कई तरह की परेशानी आती है.

कोरबा: कम वेतन पाकर भी समाज से मिलने वाले सम्मान से शिक्षक संतोष कर लेते हैं. लेकिन जब वेतन न मिले तब सिर्फ सम्मान के भरोसे घर चलाना कितना कठिन हो जाता है ये कोरोना काल (corona pandemic) के मारे निजी स्कूलों के शिक्षकों से बेहतर कोई नहीं बता सकता. कोरोना काल में शिक्षकों की स्थिति (condition of teachers in corona period) बेहद खराब रही है.

कोरोना काल में शिक्षकों का वेतन हुआ आधा

निजी स्कूल के शिक्षकों की आर्थिक स्थिति खराब

लॉकडाउन (lockdown) के बाद बड़े स्कूल अब फिर से पटरी पर लौट रहे हैं. यहां ऑनलाइन क्लास (online class) के एवज में भी फीस ली जा रही है. जिससे शिक्षकों को पूरा पेमेंट मिल रहा है. लेकिन खास तौर पर छोटे स्तर पर संचालित निजी स्कूल में काम करने वाले शिक्षकों के लिए कोरोना ने बड़ी मुश्किल खड़ी कर दी है. कोरोना संक्रमण काल शिक्षकों के लिए किसी त्रासदी से कम नहीं रहा. इस दौरान सबसे पहले स्कूलों को बंद किया गया. जिससे बड़ी तादात में या तो शिक्षकों का रोजगार छिन चुका है, या फिर उनके वेतन में 50 फीसदी तक कटौती कर दी गई है.

सरकारों ने नहीं की पहल

शिक्षकों का समाज में एक अलग स्थान होता है. एक सम्मान होता है. इसलिए वह मजदूरी या इस तरह का कोई काम भी नहीं कर पाते. लेकिन सिर्फ सम्मान से घर का चूल्हा नहीं जलता. कोरोना काल में स्कूलों के बंद होते ही बच्चों की फीस आनी बंद हो गई. अभिभावकों ने मुहिम छेड़ दी थी कि 'नो स्कूल, नो फीस'. मामला कोर्ट तक भी पहुंच गया था. लेकिन इन परिस्थितियों में निजी स्कूल के शिक्षकों को वेतन कैसे मिलता? इस पर किसी का ध्यान नहीं गया. कोई चर्चा नहीं हुई. सरकारों ने भी इस दिशा में कोई पहल नहीं की. जिसका नतीजा ये हुआ कि कोरोना की पहली लहर (first wave of corona) के बाद अब दूसरे लहर को डेढ़ साल बीत चुके हैं. इस दौरान निजी स्कूल के शिक्षक लगातार आर्थिक बोझ तले दबते चले गए.

वेतन हो गया आधा, परेशानी हो गई दोगुनी

शहर के राजेंद्र महंत नाम के एक व्यक्ति सरस्वती शिशु मंदिर में कॉमर्स के सीनियर व्याख्याता (lecturer) हैं. कोरोना काल शुरू होते ही बच्चों की फीस आनी बंद हो गई. जिससे उनका वेतन आधा कर दिया गया. राजेंद्र कहते हैं कि वेतन कम होने के बाद आर्थिक स्थिति (financial condition) बेहद पतली हो गई है. हालांकि बच्चों की फीस जैसे-जैसे आती है. उसी अनुपात में वेतन धीरे-धीरे जारी किया जाता है. लेकिन तब तक कर्ज इतना बढ़ जाता है कि हाथ में कुछ भी पैसे बचते ही नहीं हैं. परेशानी बढ़ गई है. लेकिन वेतन कम हो गया है. कोरोना काल में वैसे तो सभी परेशान हैं. लेकिन शिक्षकों पर आर्थिक बोझ बेहद बढ़ चुका है. लगभग सभी शिक्षकों का यही हाल है. सरकारी शिक्षकों को तो भरपूर वेतन मिल रहा है. लेकिन प्राइवेट स्कूलों (private schools) में पदस्थ शिक्षकों की हालत खराब है. सरकार को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए.

महासमुंद में मनरेगा बना वरदान: 2 महीने में 64858 परिवारों को गांव में ही मिला रोजगार

दुकान पर काम करने को मजबूर शिक्षक

सीतामढ़ी के मनीष अग्रवाल कोरबा इंजीनियरिंग कॉलेज (korba engineering college) में कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर गेस्ट लेक्चरर के तौर पर सेवाएं दे रहे थे. 21 हजार रुपये मासिक तनख्वाह मिल रही थी. कोरोना काल शुरू होते ही वेतन और नौकरी पूरी तरह से चली गई. मनीष कहते हैं कि हमें जिस कॉन्ट्रैक्ट के तहत पढ़ाने का काम मिला था, उसमें साफ तौर पर यह लिखा हुआ था कि कक्षाएं लेने पर ही वेतन दिया जाएगा. शुरुआती दिनों में ऑनलाइन कक्षाएं (online classes) चली 2 से 3 हजार रुपये का वेतन भी मिला. लेकिन बाद में ये भी पूरी तरह से बंद हो गया. पहले 21 हजार रुपये का मासिक वेतन मिलता था. जिससे कई तरह के खर्चे मैनेज होते थे. अब तो स्थिति ये है कि आजीविका चलाने के लिए बड़े भाई के राशन दुकान में हाथ बंटाता हूं. कुछ मित्रों के साथ मिलकर कोचिंग संस्थान (coaching institute) शुरू किया था. लेकिन अब वह भी पूरी तरह से बंद है. आज हमारे पास आजीविका का कोई भी जरिया नहीं है.

20 साल की नौकरी एक झटके में खत्म

आदर्श विद्या मंदिर नाम के सीजी बोर्ड के स्कूल में ज्योत्सना सिंह पिछले 20 सालों से बतौर शिक्षक पढ़ा रहीं थीं. कोरोना काल में बच्चों की फीस आनी बंद हुई तो स्कूल का संचालन ही बंद हो गया. सारे शिक्षक एक झटके में बेरोजगार हो गए. ज्योत्सना अपनी परेशानी कहते हुए बोझिल शब्दों में बताती हैं कि कोरोना काल ने पूरी तरह से रोजगार छीन लिया है. वे बताती हैं कि स्कूल छोटा था, जो कि पूरी तरह से बच्चों की फीस से ही चलता था. बच्चों की फीस आनी बंद हुई तो स्कूल पूरी तरह से बंद हो गया. एक अन्य स्कूल में नौकरी शुरू की, यहां भी कोरोना के कारण बच्चों की फीस लेने में दिक्कत आई. अब रोजगार के सारे दरवाजे बंद हैं. 20 साल तक नौकरी की लेकिन सोचा नहीं था कि एक झटके में ही आय के सारे दरवाजे बंद हो जाएंगे. प्राइवेट नौकरी (private job) करने वाले मिलजुल कर घर चलाते हैं. यदि किसी एक की भी नौकरी चली जाए तो, आर्थिक बोझ बहुत बढ़ जाता है. आजीविका चलाने में कई तरह की परेशानी आती है.

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