आंदोलनकारियों ने बताया कि साल 1960 से कोयला खदानों, बिजली संयंत्र और अन्य उद्योगों के लिए हजारों एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर जमाखोरी की गई. हालांकि इन जमीनों का कोई भी उपयोग नहीं हुआ और कुछ खदानें और उद्योग बंद भी हो गए. उन्होंने कहा कि उनकी मांग है कि बस्तर की तरह उन्हें भी उनकी जमीन वापस मिले.
आंदोलनकारियों का आरोप है कि उन्हें आज तक विस्थापन के बदले रोजगार नहीं दिया गया. उनका कहना है कि रोजगार के लंबित मामले का तत्काल निराकरण कर स्थाई या अस्थाई रोजगार प्रदान किया जाए. इसके अलावा नए अधिग्रहण के मामले में बाजार भाव से चार गुना अधिक मुआवजा सभी खातेदारों और अन्य आश्रित परिवार के सदस्यों को रोजगार प्रदान किया जाए.
इनकी अन्य मांगे हैं:
- शिक्षा स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं के लिए केंद्रीय और डीएवी सहित अन्य शिक्षा संस्थानों में निशुल्क शिक्षा और चिकित्सा प्रदान किया जाए. इस जिले में विस्थापितों को शिक्षा, रोजगार और चिकित्सा के क्षेत्र में प्राथमिकता दिया जाएं.
- भू विस्थापितों को भू स्थापित प्रमाण जारी किया जाएं.
- वन अधिकार मान्यता कानून 2006 के तहत जिले के नगर निकायों में भी शामिल वन भूमि पर काबिज हितग्राहियों को पट्टे दिए जाएं.
- जिला खनिज न्यास निधि का उपयोग खान और खनन से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित ग्रामों में होना सुनिश्चित किया जाए.