कोरबा: भीषण गर्मी में ठंडा-ठंडा, कूल-कूल रहने की चाहत में लोग अमानक बर्फ का इस्तेमाल कर बीमारी को दस्तक दे रहे (eating non standard ice in Korba) हैं. बाजार में खुलेआम अमानक स्तर का बर्फ लोगों को परोसा जा रहा है. इस पर विभाग का कोई नियंत्रण नहीं है. ईटीवी भारत की पड़ताल में बेहद गंभीर बात सामने आई है. गर्मी में मिलने वाले फलों के जूस, गन्ना जूस, बर्फ के गोले और इस तरह के सभी खाद्य पदार्थ जिसमें बर्फ मिलाकर लोगों को परोसा जा रहा है, वह जांच के दायरे में है. दरअसल बर्फ विक्रेताओं को यह पता ही नहीं है कि औद्योगिक इस्तेमाल के लिए बनाए जाने वाले बर्फ और खाने के लिए तैयार बर्फ में क्या अंतर होता है?
अफसरों ने नहीं की जांच: गर्मी में एसी दफ्तरों में बैठे विभाग के अफसरों ने भी जांच करने की जहमत नहीं उठाई. जिसके कारण जिस बर्फ का उपयोग मरी हुई मछलियों को ताजा रखने के लिए किया जाता है, वही बर्फ जूस के साथ मिलाकर लोगों को खुलेआम परोसा जा रहा है.
"हमने तो बोर्ड लगाया, लोग क्या इस्तेमाल करते हैं पता नहीं": निहारिका क्षेत्र में जिस स्थान से सभी जूस विक्रेता व जरूरतमंद बर्फ खरीदते हैं. वहां ईटीवी भारत की टीम पहुंची. बर्फ व्यवसायी धन्नू ने ईटीवी भारत को बताया कि "हमारे पास ये बर्फ उरगा से आता है. इसे मरी हुई मछलियों को ताजा रखने, पानी पाउच को ठंडा रखने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए. मेरे पास से तो सभी बर्फ लेकर जाते हैं. फिर चाहे वह जूस वाले हों, या बर्फ के गोले वाला. लेकिन हम बोलकर देते हैं कि यह बर्फ सिर्फ ठंडा करने के लिए इस्तेमाल करो."
बर्फ विक्रेता को नहीं पता खाने वाले बर्फ का अंतर: जब पूछा गया कि खाने वाले और औद्योगिक बर्फ में क्या अंतर होता है? तब बर्फ विक्रेता ने बताया कि "क्या अंतर होता है? आज तक मुझे पता ही नहीं चला, लेकिन हम तो लोगों को बोल कर देते हैं कि खाने के लिए इस्तेमाल मत करो. हमने बोर्ड भी लगाया हुआ है. अब लोग बर्फ का क्या इस्तेमाल करते हैं, यह तो हमें नहीं पता है."
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मजबूरी में इस्तेमाल करते हैं ये बर्फ: जूस का व्यवसाय करने वाले बच्चू का कहना है कि "बस हम लोग लोकल स्तर पर ही बर्फ खरीदते हैं. 5 रुपये किलो में यह बर्फ लाते हैं. ये खाने वाला बर्फ नहीं है..यह हमें पता है. लेकिन खाने वाला बर्फ मार्केट में मिलता ही नहीं. इसलिए मजबूरी में इसे ही लाना पड़ता है. सभी लोग इसी बर्फ का इस्तेमाल करते हैं." स्वास्थ्य पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव के प्रश्न पर बच्चू ने कहा कि "लोग ठंडा मांगते हैं, इसलिए जूस में बर्फ मिलाकर ही देते हैं. नुकसान बहुत है लेकिन क्या करें? कोई विकल्प नहीं है." इसी तरह गन्ने जूस का व्यवसाय करने वाले ओमप्रकाश ने कहा कि "हम सभी जूस वाले एक ही वजह से बर्फ लाते हैं. बर्फ खाने लायक रहता है या नहीं रहता यह बात तो फैक्ट्री वालों को पता है. हमारे मालिक फैक्टी से लाते हैं, हमें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है."
औद्योगिक बर्फ में मिलाया जाता है नीला रंग : बाजार में अमानक बर्फ के इस्तेमाल के सवाल पर खाद एवं सुरक्षा अधिकारी आरआर देवांगन ने बताया कि "जिले में 4-5 बर्फ फैक्ट्रियां है, जिसमें से एक या दो को खाने वाला बर्फ बनाने का लाइसेंस दिया गया है. जो खाने वाला बर्फ है, वह पारदर्शी होता है. जिसे इंडस्ट्रियल उपयोग के लिए बनाया जाता है. उसमें नीला रंग मिला दिया जाता है. अभी कुछ दिन पहले हमने निरीक्षण किया था. बर्फ फैक्ट्री वाले औद्योगिक बर्फ में नीला रंग मिला रहे थे. यदि इसी बर्फ का इस्तेमाल खाने के लिए हो रहा है तो निरीक्षण कर जानकारी ली जाएगी. इंडस्ट्रियल उपयोग के बर्फ को यदि लोगों को परोसा गया तो इसके परिणाम घातक हो सकते हैं. अगर ऐसा हो रहा है तो सख्त कार्रवाई की जाएगी. इंडस्ट्रियल बर्फ का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ चीजों को ठंडा रखने के लिए, कुल्फी जमाने के लिए ही किया जाना चाहिए. इसे खाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए."