कोरबा: प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने के शासन-प्रशासन ने तमाम दावे किए थे. लेकिन सारे दावे आज फेल हो चुके हैं. दूसरे प्रांतों से अपने घर वापस लौटे मजदूरों को काम नहीं मिल सका है. अब हालात यह कि मजदूर रोजी रोटी के लिए दर-दर भटक रहे हैं. ज्यादातर लोग फिर से पलायन करने को विवश हैं. प्रशासन ने क्वॉरेंटाइन अवधि पूरी करने के बाद मजदूरों के स्किल मैपिंग और उनके नियोजन की बात कही थी. लेकिन यह योजना धरातल पर नहीं उतर सकी है.
जिले में उद्योगों की बहुलता होने के बावजूद मजदूरों का पलायन बदस्तूर जारी है. रोजी-रोटी की तलाश में मजदूर कोरबा से फिर दूसरे प्रदेशों का रूख कर रहे हैं. जिले में रोजगार के अवसर अब भी उपलब्ध नहीं हैं. जिससे कि मजदूरों की आजीविका पर संकट बरकरार है. जिले के ज्यादातर उद्योग पावर सेक्टर के हैं. जिसके कारण एक सीमित संख्या में ही स्किल्ड मजदूरों को यहां काम दिया जा सकता है. अन्य कार्यक्षेत्रों में दक्षता रखने वाले मजदूरों के लिए जिले में रोजगार के कोई अवसर पैदा नहीं हो सके हैं. यहीं कारण है कि मजदूर और उनका परिवार अब तक परेशानी झेल रहे हैं.
सिर्फ 1500 लोगों को मिला रोजगार
लॉकडाउन के दौरान कोरबा जिले में 15 हजार 37 लोग वापस पहुंचे थे. जिन्होंने अपनी क्वॉरेंटाइन अवधि पूरी कर ली थी. इसमें से लगभग 12,000 मजदूर वर्ग से थे, जोकि किसी ना किसी कार्य क्षेत्र में कुशलता रखते हैं. इनमें से महज 1509 मजदूरों को ही किसी संस्था में काम दिया जा सका है. शेष मजदूरों की स्किल मैपिंग भी नहीं हो सकी है. ना तो उन्हें उनके कार्यक्षेत्र के मुताबिक कहीं नियोजित ही किया गया है.
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ट्रेनिंग देने का काम भी अधूरा
क्वॉरेंटाइन अवधि पूरी करने वाले 10 हजार लोगों को कौशल प्रशिक्षण दिया जाना प्रस्तावित था. श्रम विभाग ने लाइवलीहुड कॉलेज को ऐसे 10 हजार अनस्किल्ड मजदूरों की सूची दी थी. जिन्हें किसी ना किसी ट्रेड में प्रशिक्षण देकर स्किल्ड बनाया जाना चाहिए था. लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण एक ओर सभी स्कूल-कॉलेज बंद हैं. वहीं कौशल उन्नयन के तहत संचालित लाइवलीहुड कॉलेज में भी सभी तरह के ट्रेनिंग पर ग्रहण लगा हुआ है. मजदूरों को स्किल्ड बनाने के लिए उन्हें ट्रेनिंग देने का काम भी अधूरा रह गया.
बुरी हालत में अनस्किल्ड मजदूर
कुशलता के मुताबिक ही मजदूरों को काम मिलता है. फिटर, वेल्डर या कई तरह की कारीगरी में एक्सपर्ट मजदूरों को कहीं ना कहीं काम मिल जाता है. वे किसी तरह रोटी रोटी चला रहे हैं. लेकिन सबसे ज्यादा मुसीबत ऐसे मजदूर झेल रहे हैं, जोकि अकुशल हैं. जिन्हें दिहाड़ी मजदूर कहा जाता है. इन्हें कहीं भी काम नहीं मिल रहा है. इनके सामने रोजी-रोटी का संकट बना हुआ है.
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500 रुपये और सरकारी चावल का सहारा
बेरोजगारी का दंश झेल रहे कुछ मजदूरों ने बताया कि दो जून की रोटी जुटाना भी उनके लिए चुनौती बन गई है. ऐसे में केंद्र सरकार की ओर से दिए जा रहे 500 रुपये, उनके लिए बड़ा सहारा बना है. राज्य सरकार द्वारा बीपीएल वर्ग के परिवारों को दिए जाने वाले चावल से पेट भर रहे हैं, लेकिन, सिर्फ चावल और 500 रुपये से घर नहीं चलता. मजदूर स्थाई रोजगार चाहते हैं.
मनरेगा के तहत काम देने में प्रदेश अव्वल लेकिन कौशल उन्नयन में फिसड्डी
छत्तीसगढ़ सरकार मनरेगा के तहत काम देने में पूरे देश में अव्वल है. लेकिन प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने और उनका कौशल उन्नयन करने के मामले में फिसड्डी साबित हो रहा है. जिले में ना तो प्रवासी मजदूरों के लिए रोजगार का प्रबंध किया गया, ना ही उनका कौशल उन्नयन हो सका है.