कोरबा: बालको वन परिक्षेत्र अधिकारी के कार्यालय से ही लेमरू का घना जंगल शुरू हो जाता है. यह इलाका अपनी रिच बायोडायवर्सिटी के लिए भी जाना जाता है. गुरुवार को अपने फॉरेस्ट दफ्तर में बैठे रेंजर वनकर्मियों से चर्चा कर रहे थे. तभी उन्हें अजीब सी आवाज सुनाई दी, उन्होंने खिड़की के करीब जाकर देखा, वहीं एक पेड़ पर पंछियों का एक ऐसा जोड़ा था, जो दुर्लभ है. इसकी पहचान इंडियन ग्रे हॉर्नबिल के तौर पर की गई. रेंज अफसर ने फौरन अपना कैमरा निकाला और उस दुर्लभ पक्षी के जोड़े को कैमरे में कैद कर लिया.
वन परिक्षेत्र कार्यालय के पास दिखा पक्षी: बालको वन परिक्षेत्र कार्यालय के पीछे पेड़ पर इंडियन ग्रे हॉर्नबिल बर्ड के जोड़े को रेंज अधिकारी जयंत सरकार ने कैद किया है. उन्होंने बताया, "पक्षी की यह प्रजाति मूल रूप से हिमालय क्षेत्र से ताल्लुक रखती है. वर्तमान में जैव विविधताओं से भरे कोरबा के वन क्षेत्र में भी ये कभी कभी देखे जाते हैं. इनकी संख्या यहां काफी कम है, इसलिए खुले में इस तरह दिख जाना काफी दुर्लभ संयोग है."
मेल बर्ड करते हैं भोजन का इंतजाम: रेंजर जयंत सरकार ने बताया कि इस प्रजाति को टिपिकल इंडियन फैमली से जोडने का मुख्य कारण इनका व्यवहार है. इंडियन ग्रे हॉर्नबिल में नर पक्षी ही अपने परिवार के लिए भोजन या चारे की जुगत करता है. जबकि मादा घर संभालती है. कहीं सैर पर निकलें तो सुरक्षा के लिए चौकन्ना रहते हुए हमेशा नर आगे रहता है और मादा पीछे रहती है. प्रजननकाल में जब अंडे देने की बारी आती है तो किसी पेड़ के कोटर में जरूरी जुगत नर करता है और फिर मादा उसमें अंडे देने के बाद पूरे वक्त वहीं बिताती है. इस बीच मादा के लिए चारे के इंतजाम में भी नर जुटा रहता है. जब कभी अंडे या चूजे के लिए कोई संकट महसूस होता है, मादा पक्षी काफी आक्रामक हो जाती है. यही वजह है जो एक टिपिकल इंडियन फैमिली की तरह के व्यवहार की झलक इनमें दिखाई देती है.
इस पक्षी की भारत में 9 प्रजातियां: इंडियन ग्रे हॉर्नबिल आमतौर पर जोड़े में दिखाई देते हैं. इनके पूरे शरीर पर ग्रे रंग के रोएं होते हैं और इनके पेट का हिस्से हल्का ग्रे या फीके सफेद रंग का होता है. इनकी चोंच लंबी और नीचे की ओर घूमी होती है. अमूमन ऊपर वाली चोंच के ऊपर लंबा उभार होता है. इसी की वजह से इसका अंग्रेजी नाम हॉर्नबिल (हॉर्न यानि सींग, बिल यानि चोंच) पड़ा है. भारत में इसकी 9 प्रजातियां पाई जाती हैं.