कोरबा: करतला ब्लॉक के आदिवासी किसानों ने अपनी मेहनत से बंजर जमीन में खेती कर नवाचार का उदाहरण पेश किया है. जो जमीन आज से 7 साल पहले तक बंजर थी, वहां अब फलों के राजा आम का राज है. इतना ही नहीं एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक की खाली जमीन पर मूंगफली भी उगाई जा रही है. किसानों ने इस बंजर जमीन में एक साथ दोहरी खेती के जरिए लाभ कमाकर दिखाया है.
किसान दो फसलों के जरिए सालाना 80 हजार रुपये तक की कमाई कर रहे हैं. जिले के करतला ब्लॉक के आदिवासी किसान सही मायनों में धरतीपुत्र हैं. उन्होंने मेहनत की और अपनी तकदीर बदली है. इस नवाचार में शुरुआती सहायता उन्हें नाबार्ड (National Bank for Agriculture and Rural Development) से मिली थी. सामाजिक संगठनों, एनजीओ ने भी किसानों की मदद में अपना योगदान दिया है. किसानों को मेहनत का फल देर से ही सही लेकिन अच्छा मिला है.
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43 एकड़ में आम और मूंगफली की दोहरी खेती
करतला ब्लॉक के गांव बोतली के 43 एकड़ खेतों में आम की खेती हो रही है. किसानों की संख्या भी लगभग 45 है. जोकि आम और मूंगफली की दोहरी खेती कर रहे हैं. यह फसल आज किसानों के लिए कमाई का जरिया जरूर बना है, लेकिन यह काम आसान नहीं था. इसकी शुरुआत किसानों ने 2013-14 में की थी. तब यह जमीन बंजर हुआ करती थी. यहां बमुश्किल कोई फसल उगती थी. जमीन बंजर होने के कारण इनमें धान की फसल नहीं होती थी. किसानों की आजीविका पर भी संकट था, तब नाबार्ड के प्रोजेक्ट के तहत किसानों को पौधे मिले और गड्ढा खोदने का मेहनताना भी दिया गया.
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सालों तक किसानों ने इन आम के पौधों को अपने खून पसीने से सींचा और तैयार किया. पौधे लगभग 4 साल में तैयार हो गए और 5 वे साल से फल भी देने लगे. जिन आम के पौधों को किसानों ने उगाया है उसके बीज खास तरह से तैयार किए जाते हैं, यह देश के कुछ चुनिंदा लैब में ही मिलते हैं. तब यह बीज राज्य के बाहर से मंगाए गए थे. जिसकी खासियत यह है कि पेड़ 5 से 10 फीट तक की ऊंचाई तक ही उगते हैं और इतने में ही वह फल देने लगते हैं. अच्छी पैदावार हुई तो एक पेड़ से चार-पांच क्विंटल आम की पैदावार होती है.
मूंगफली उगाकर बढ़ाई आय
प्रति एकड़ खेत में आम के 40 से 50 पेड़ हैं. आम के पेड़ों के बीच एक निश्चित दूरी रखने का भी प्रावधान है. जिससे पेड़ को पर्याप्त फैलाव मिल सके. किसानों ने अब आम के पेड़ों के बीच की दूरी में मूंगफली की फसल भी उगाना शुरू कर दिया है. पिछले दो-तीन साल से वह आम और मूंगफली की दोहरी फसल एक साथ उगा रहे हैं. जिससे उन्हें लगभग 80 हजार तक का मुनाफा मिल रहा है. पैदावार अच्छी हुई तो अधिक दाम भी मिल जाते हैं.
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किसानों की अपनी कोऑपरेटिव सोसाइटी
फसल बेचने के लिए किसानों को बाजार तक जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती. किसानों ने अपनी सहकारी समिति बनाई है. किसानों के छोटे-छोटे संगठन भी हैं. ये संगठन सोसाइटी को आम बेचते हैं. जिसके बाद सोसाइटी के माध्यम से यह फसलें मंडियों तक जाती है. वहां से किसानों की फसल को बेहतर दाम मिलता है और पैसे सीधे उनके खातों में हस्तांतरित किए जाते हैं. किसानों को सीधे मंडी तक नहीं जाना पड़ता. इस व्यवस्था के बाद किसानों को उनकी फसल के कुछ बेहतर दाम मिल रहे हैं. हालांकि किसानों से जितने में आम खरीदे जाते हैं बाजार में उसकी कीमत कहीं अधिक होती हैय फिर भी किसानों का अपना संगठन होने से उन्हें काफी बेहतर दाम मिल जाता है.