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गेवरा खदान में भारी विस्फोट के बीच रहने को मजबूर है यह विस्थापित परिवार, जानिये वजह

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Published : Feb 10, 2022, 3:45 PM IST

Updated : Feb 10, 2022, 4:53 PM IST

Displaced people of Gevra mine did not get job : गेवरा खदान के दायरे में आने वाले आमगांव के विस्थापित परिवार को 10 साल बाद भी न तो नौकरी दी गई है न ही उन्हें कोई मुआवजा ही मिला है. इस कारण पीड़ित परिवार अपना मकान खाली करने को तैयार नहीं है.

Displaced people of Gevra mine did not get job
गेवरा खदान में भारी विस्फोट के बीच रहने को मजबूर है यह विस्थापित परिवार

कोरबा : भारत के साथ-साथ एशिया की सबसे बड़ी ओपन कास्ट कोल माइन्स गेवरा खदान जिन भू विस्थापितों की जमीनों को लेकर अस्तित्व में आई, उन भूमि पुत्रों के परिवार आज भी संघर्ष कर रहे हैं. सिर्फ संघर्ष ही नहीं बल्कि (Displaced people of Gevra mine did not get job) अब तो वे दहशत के साए में जीने को विवश हैं. गेवरा खदान के दायरे में आने वाला आमगांव पूरी तरह विस्थापित हो चुका है. लेकिन यहां अब भी कृष्णाबाई कंवर का परिवार निवासरत है, जिसमें 15 सदस्य हैं. करीब 10 वर्ष पहले गेवरा खदान के लिए इस परिवार की 11 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया था. लेकिन जमीन के बदले नौकरी और मुआवजा देने का सरकारी वादा अब भी अधूरा है.

गेवरा खदान में भारी विस्फोट के बीच रहने को मजबूर है यह विस्थापित परिवार

परिवार के चार सदस्यों के लिए नौकरी मांग रहीं कृष्णाबाई
कृष्णाबाई पात्रता के अनुसार परिवार के चार सदस्यों के लिए नौकरी की मांग कर रही हैं. जबकि एसईसीएल का कहना है कि अधिग्रहण के समय नियम कुछ और थे और वर्तमान में नियम बदल चुके हैं. फिर भी पात्रता के अनुसार जो हक है, वह परिवार को दिया जाएगा. इन सबके बीच विरोधस्वरूप पीड़ित परिवार अपना मकान खाली करने को तैयार नहीं है. हालात यह हैं कि गेवरा खदान का उत्खनन अब उनकी घर की दहलीज तक पहुंच चुका है.

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एक दशक से चल रहा परिवार का संघर्ष
एसईसीएल गेवरा खदान अंतर्गत ग्राम पंचायत आमगांव में निवासरत कृष्णा बाई कंवर पति ओंकार सिंह कंवर की 11 एकड़ जमीन का अधिग्रहण 10 वर्ष पूर्व हो चुका है. नौकरी और अन्य मांगों के पूरा नहीं होने के कारण यह परिवार अपने घर पर ही निवासरत है. मकान को अभी तक पीड़ित पक्षों ने नहीं छोड़ा है. इस मकान में परिवार के 15 सदस्य रहते हैं. जबकि एसईसीएल गेवरा खदान उनके मकान से 15 मीटर के दायरे में है, जहां अब रोजाना हैवी ब्लास्टिंग की जा रही है. हैवी ब्लास्टिंग से उनके मकान की छत पर पत्थर व कोयलायुक्त पत्थर गिर रहे हैं. जिससे वहां रह रहे लोग बाल-बाल बचे हैं. इसकी शिकायत हरदी बाजार चौकी में और एसईसीएल प्रबंधन से भी की गई है.

चार वर्ष पहले ही हुए हैं बालिग
कृष्णाबाई कंवर का कहना है कि उनका एक पुत्र जय नारायण एवं एक पुत्री कृतिका कंवर है. ये दोनों जमीन अधिग्रहण के समय नाबालिग थे, जिसकी वजह से उनकी नौकरी नहीं लग पाई थी. अब वह चार वर्ष पूर्व से ही बालिग हो चुके हैं. इसके बाद भी अभी तक नौकरी नहीं लग पाई है. वहीं उनके दो भाई रुकेश कुमार और गणेश कुमार की भी नौकरी नहीं लग पाई है. नौकरी नहीं लगने के कारण यह परिवार विरोधस्वरूप अपना घर खाली करने को तैयार नहीं है, जिस कारण वे दहशत भरी जिंदगी जीने को विवश हैं. नियमों के अनुसार घर खाली करने के बाद भी मुआवजा और नौकरी संबंधी मांगों पर विचार किया जाता है.

खदान का होना है विस्तार
गेवरा ओपन कास्ट कोल माइंस भारत की सबसे बड़ी खुली खदान है, जिसकी वार्षिक क्षमता 40 MPTA (मीट्रिक टन पर एनम) है. एसईसीएल द्वारा इसका विस्तार किया जाना है. क्षमता विस्तार के बाद इसकी क्षमता 70 एमटीपीए करने का प्रस्ताव है. हालांकि इसमें भी कई अड़चनें हैं. पर्यावरणीय नियमों के साथ ही जमीन अधिग्रहण की समस्या है. एसईसीएल के समक्ष नई जमीन अधिग्रहण करने के साथ ही पुराने भूमि स्थापितों की समस्याओं का निराकरण करने की भी बड़ी चुनौती है.

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कुसमुंडा खदान में 100 दिन से चल रहा विस्थापितों का आंदोलन
कृष्णा बाई कंवर अकेली भू स्थापित नहीं हैं, जिन्हें एसईसीएल से शिकायत है और उनकी मांगें अधूरी हैं. एसईसीएल की खदानों में विस्थापितों की समस्याओं का निराकरण करना टेढ़ी खीर है. कुसमुंडा कोयला खदान के महाप्रबंधक कार्यालय के समक्ष विस्थापित पिछले 100 दिनों से आंदोलन कर रहे हैं. यहां उन्होंने टेंट लगाकर स्थायी ठिकाना बना दिया है, लेकिन इनकी मांगों पर विचार नहीं किया जा रहा है. समस्याओं का निराकरण नहीं होने के कारण ही विस्थापित लगातार आंदोलन कर रहे हैं. मार्च से विस्थापितों ने खदान को पूरी तरह बंद कर देने की चेतावनी दी है.

तब और अब के नियमों में है अंतर
इस विषय में एसईसीएल पीआरओ सनीष चंद्र ने बताया कि जब संबंधित परिवार की जमीन का अधिग्रहण किया गया था तब और अब की जमीनों के अधिग्रहण में नियम बदल गए हैं. उस समय एक खातेदार को एक नौकरी प्रदान करने का नियम था, फिर चाहे जमीन कितनी भी अधिक हो. कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर जमीन का अधिग्रहण हुआ था और खातेदारों से सहमति पत्र भी लिये गये थे. इसके बाद भूमि अधिग्रहण नियम 2013 आया. जिसके बाद से प्रत्येक 2 एकड़ पर एक रोजगार देने का नियम बना. जिस परिवार ने मकान खाली नहीं किया है, उनकी जमीन का अधिग्रहण काफी पहले हुआ था. इस कारण तब के नियम के अनुसार उन्हें जो सुविधाएं मिलनी चाहिए, वह दी जाएंगी. आप के माध्यम से परिवार की परेशानी की जानकारी मिली है. यथासंभव प्रयास कर उनकी समस्याओं के निराकरण का प्रयास किया जाएगा.

कोरबा : भारत के साथ-साथ एशिया की सबसे बड़ी ओपन कास्ट कोल माइन्स गेवरा खदान जिन भू विस्थापितों की जमीनों को लेकर अस्तित्व में आई, उन भूमि पुत्रों के परिवार आज भी संघर्ष कर रहे हैं. सिर्फ संघर्ष ही नहीं बल्कि (Displaced people of Gevra mine did not get job) अब तो वे दहशत के साए में जीने को विवश हैं. गेवरा खदान के दायरे में आने वाला आमगांव पूरी तरह विस्थापित हो चुका है. लेकिन यहां अब भी कृष्णाबाई कंवर का परिवार निवासरत है, जिसमें 15 सदस्य हैं. करीब 10 वर्ष पहले गेवरा खदान के लिए इस परिवार की 11 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया था. लेकिन जमीन के बदले नौकरी और मुआवजा देने का सरकारी वादा अब भी अधूरा है.

गेवरा खदान में भारी विस्फोट के बीच रहने को मजबूर है यह विस्थापित परिवार

परिवार के चार सदस्यों के लिए नौकरी मांग रहीं कृष्णाबाई
कृष्णाबाई पात्रता के अनुसार परिवार के चार सदस्यों के लिए नौकरी की मांग कर रही हैं. जबकि एसईसीएल का कहना है कि अधिग्रहण के समय नियम कुछ और थे और वर्तमान में नियम बदल चुके हैं. फिर भी पात्रता के अनुसार जो हक है, वह परिवार को दिया जाएगा. इन सबके बीच विरोधस्वरूप पीड़ित परिवार अपना मकान खाली करने को तैयार नहीं है. हालात यह हैं कि गेवरा खदान का उत्खनन अब उनकी घर की दहलीज तक पहुंच चुका है.

एसईसीएल का दावा : नॉन पावर सेक्टर को भी मिलेगा कोयला, पावर सेक्टर को प्राथमिकता

एक दशक से चल रहा परिवार का संघर्ष
एसईसीएल गेवरा खदान अंतर्गत ग्राम पंचायत आमगांव में निवासरत कृष्णा बाई कंवर पति ओंकार सिंह कंवर की 11 एकड़ जमीन का अधिग्रहण 10 वर्ष पूर्व हो चुका है. नौकरी और अन्य मांगों के पूरा नहीं होने के कारण यह परिवार अपने घर पर ही निवासरत है. मकान को अभी तक पीड़ित पक्षों ने नहीं छोड़ा है. इस मकान में परिवार के 15 सदस्य रहते हैं. जबकि एसईसीएल गेवरा खदान उनके मकान से 15 मीटर के दायरे में है, जहां अब रोजाना हैवी ब्लास्टिंग की जा रही है. हैवी ब्लास्टिंग से उनके मकान की छत पर पत्थर व कोयलायुक्त पत्थर गिर रहे हैं. जिससे वहां रह रहे लोग बाल-बाल बचे हैं. इसकी शिकायत हरदी बाजार चौकी में और एसईसीएल प्रबंधन से भी की गई है.

चार वर्ष पहले ही हुए हैं बालिग
कृष्णाबाई कंवर का कहना है कि उनका एक पुत्र जय नारायण एवं एक पुत्री कृतिका कंवर है. ये दोनों जमीन अधिग्रहण के समय नाबालिग थे, जिसकी वजह से उनकी नौकरी नहीं लग पाई थी. अब वह चार वर्ष पूर्व से ही बालिग हो चुके हैं. इसके बाद भी अभी तक नौकरी नहीं लग पाई है. वहीं उनके दो भाई रुकेश कुमार और गणेश कुमार की भी नौकरी नहीं लग पाई है. नौकरी नहीं लगने के कारण यह परिवार विरोधस्वरूप अपना घर खाली करने को तैयार नहीं है, जिस कारण वे दहशत भरी जिंदगी जीने को विवश हैं. नियमों के अनुसार घर खाली करने के बाद भी मुआवजा और नौकरी संबंधी मांगों पर विचार किया जाता है.

खदान का होना है विस्तार
गेवरा ओपन कास्ट कोल माइंस भारत की सबसे बड़ी खुली खदान है, जिसकी वार्षिक क्षमता 40 MPTA (मीट्रिक टन पर एनम) है. एसईसीएल द्वारा इसका विस्तार किया जाना है. क्षमता विस्तार के बाद इसकी क्षमता 70 एमटीपीए करने का प्रस्ताव है. हालांकि इसमें भी कई अड़चनें हैं. पर्यावरणीय नियमों के साथ ही जमीन अधिग्रहण की समस्या है. एसईसीएल के समक्ष नई जमीन अधिग्रहण करने के साथ ही पुराने भूमि स्थापितों की समस्याओं का निराकरण करने की भी बड़ी चुनौती है.

24 घंटे के अंदर चोरों के गैंग का पर्दाफाश, SECL के स्टोर रूम से ले उड़े थे तार

कुसमुंडा खदान में 100 दिन से चल रहा विस्थापितों का आंदोलन
कृष्णा बाई कंवर अकेली भू स्थापित नहीं हैं, जिन्हें एसईसीएल से शिकायत है और उनकी मांगें अधूरी हैं. एसईसीएल की खदानों में विस्थापितों की समस्याओं का निराकरण करना टेढ़ी खीर है. कुसमुंडा कोयला खदान के महाप्रबंधक कार्यालय के समक्ष विस्थापित पिछले 100 दिनों से आंदोलन कर रहे हैं. यहां उन्होंने टेंट लगाकर स्थायी ठिकाना बना दिया है, लेकिन इनकी मांगों पर विचार नहीं किया जा रहा है. समस्याओं का निराकरण नहीं होने के कारण ही विस्थापित लगातार आंदोलन कर रहे हैं. मार्च से विस्थापितों ने खदान को पूरी तरह बंद कर देने की चेतावनी दी है.

तब और अब के नियमों में है अंतर
इस विषय में एसईसीएल पीआरओ सनीष चंद्र ने बताया कि जब संबंधित परिवार की जमीन का अधिग्रहण किया गया था तब और अब की जमीनों के अधिग्रहण में नियम बदल गए हैं. उस समय एक खातेदार को एक नौकरी प्रदान करने का नियम था, फिर चाहे जमीन कितनी भी अधिक हो. कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर जमीन का अधिग्रहण हुआ था और खातेदारों से सहमति पत्र भी लिये गये थे. इसके बाद भूमि अधिग्रहण नियम 2013 आया. जिसके बाद से प्रत्येक 2 एकड़ पर एक रोजगार देने का नियम बना. जिस परिवार ने मकान खाली नहीं किया है, उनकी जमीन का अधिग्रहण काफी पहले हुआ था. इस कारण तब के नियम के अनुसार उन्हें जो सुविधाएं मिलनी चाहिए, वह दी जाएंगी. आप के माध्यम से परिवार की परेशानी की जानकारी मिली है. यथासंभव प्रयास कर उनकी समस्याओं के निराकरण का प्रयास किया जाएगा.

Last Updated : Feb 10, 2022, 4:53 PM IST

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