कोरबा: बंद पड़े कोरबा ईस्ट पावर प्लांट की 125 मीटर ऊंची चिमनी को मंगलवार को गिरा दिया गया है. 70 के दशक में स्थापित इस पवार प्लांट को एनजीटी के निर्देश के बाद बंद किया गया था. बिजली प्रोडक्शन बंद होने के बाद इस कंपनी के स्क्रैप को एक कबाड़ कंपनी ने खरीद लिया. इसके बाद अब इसे डिस्मेंटल किया जा रहा है. कबाड़ खरीदने वाली ठेका कंपनी ने चिमनी को गिराया है. 125 मीटर ऊंची गगनचुंबी चिमनी देखते ही देखते पल भर में जमीदोज हो गई.
पहले निचले हिस्से के मशीन से काटा, फिर गिराया: पवार प्लांट की इस यूनिट के कबाड़ को बेच दिया गया है. कबाड़ खरीदने वाली कंपनी की ओर से वर्तमान में लगातार सामान निकाला जा रहा है. प्लांट के पुराने भवन के भी ढहाया जा रहा है. मंगलवार को कंपनी ने 120 मेगावाट इकाई की 125 मीटर ऊंची चिमनी को ढहा दिया. पहले चिमनी के निचले हिस्से को मशीन लगा कर काटा गया. इसके बाद चिमनी को एक तरफ से झुकाते हुए जमीन पर गिरा दिया गया.
एमपी शासन काल में पड़ी थी प्लांट की नींव: अविभाजित मध्य प्रदेश में मध्य प्रदेश विद्युत मंडल की ओर से भारत हैवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड (बीएचईएल) के सहयोग से कोरबा ईस्ट थर्मल पावर प्लांट को स्थापित किया गया. कोरबा शहर में ही पवार प्लांट परिसर में वर्ष 1976 में 120 मेगावाट की एक इकाई शुरू की गई. इसके बाद 1981 में दूसरी इकाई स्थापित की गई. ऊर्जाधानी के रूप में कोरबा को मिली पहचान में इस संयंत्र का बड़ा योगदान था.
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एनजीटी के निर्देशों के बाद बंद हुआ प्लांट : नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कोरबा ईस्ट थर्मल पावर प्लांट से प्रदूषण ज्यादा होने पर एतराज जताया था. इस प्लांट को बंद करने की सिफारिश एनजीटी ने राज्य सरकार से की थी. इस संयंत्र को चालू रखने दोनों इकाइयों का नवीनीकरण वर्ष 2005 में लगभग 300 करोड़ रुपये की लागत से किया गया. इसके बाद प्रदूषण के मापदंड कड़े होने पर इकाइयों को आपरेट करने में दिक्कत आने लगी. आखिरकार कंपनी ने इन दोनों इकाइयों को 31 दिसंबर 2020 की रात 12 बजे पूरी तरह से बंद कर दिया.