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बचपन में खोई मां, जवानी में पत्नी-पिता के साथ 2 बच्चों को छोड़ शहीद हो गए

बीजापुर के तर्रेम में हुई मुठभेड़ में शहीद रामदास कोर्राम अपने पीछे दो बेटे, पत्नी और एक पिता को छोड़ गए हैं. बचपन में ही रामदास के सिर से मां का साया उठ गया था. पिता और दो भाइयों ने रामदास को पढ़ा-लिखाकर इस काबिल बनाया. रामदास के बूढ़े पिता को अब भी यकीन नहीं हो रहा है कि उनका सबसे लाडला अब इस दुनिया में नहीं रहा.

family of martyr
बीजापुर के वीर
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Published : Apr 10, 2021, 11:11 PM IST

कोंडागांव: बीजापुर मुठभेड़ में शहीद होने वालों में कोंडागांव जिले के वनजुगानी गांव के रामदास कोर्राम भी शामिल हैं. 30 साल के रामदास कोर्राम नक्सलियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए. बचपन में मां को खो देने वाले रामदास कोर्राम भी देश की सेवा करते हुए शहीद हो गये. रामदास कोर्राम अपने पीछे एक भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं.

बचपन में खोई मां, जवानी में पत्नी-पिता के साथ 2 बच्चों को छोड़ शहीद हो गए

पति को याद कर फफक उठती हैं शहीद की विधवा

हादसे के बाद से शहीद रामदास की पत्नी प्रेमशीला इतनी सदमे में हैं कि उनकी आंखों से आंसू नहीं सूख रहे हैं. पथराई आंखों से दिनभर घर की ड्योढ़ी पर बैठ अपने पति को याद करती रहती है. प्रेमशीला पर दो बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी है. बच्चों की भविष्य को देखते हुए प्रेमशीला सरकार से सिविल या जिला बल में नौकरी मांग रही हैं. ताकि रामदास के जाने के बाद उनके बच्चों को आर्थिक परेशानियां न झेलनी पड़े.

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बचपन में ही उठ गया था सिर से मां का साया

शहीद रामदास अपने तीन भाइयों में सबसे छोटा थे. बचपन में ही स्वास्थ्य कारणों से मां का देहांत हो गया था. पिता और दो भाईयों ने रामदास को पढ़ा-लिखाकर देश सेवा के काबिल बनाया. रामदास के बड़े भाई पंचायत सचिव हैं और मंझले भाई किसान हैं. रामदास 2011 में STF में भर्ती हुए थे. आज से करीब 5 साल पहले रामदास की शादी प्रेमशीला से हुई थी. दोनों के 2 बच्चे हैं. एक बेटा 4 वर्षीय मेउस और एक डेढ़ वर्षीय प्रयाग है. जिसकी जिम्मेदारी अब प्रेलशीला के कंधों पर है.

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एक दिन पहले ही हुई थी बात

रामदास के पिता को अब भी भरोसा नहीं हो रहा है कि उनका सबसे छोटा लाडला उन्हें बुढ़ापे में छोड़कर चला गया है. रामदास की पत्नी से मुठभेड़ से एक दिन पहले फोन पर बात हुई थी. रामदास ने कहा था, अपना और बच्चों के साथ परिवार का ख्याल रखना, वे ड्यूटी गश्त पर जा रहे हैं. पति की शहादत के बाद सिसकती प्रेमशीला बताती हैं कि रामदास अपने दोनों बेटों को भी पुलिस में भर्ती कराना चाहते थे.

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एक नौकरी की आस

प्रेमशीला 12वीं पास हैं. इसी साल वे ग्रेजुएशन की परीक्षा भी देने वाली हैं. प्रेमशीला आगे पढ़ना चाहती हैं, लेकिन पति की मौत के बाद पूरी तरह से टूट चुकी हैं. प्रेमशीला में अब इतनी हिम्मत नहीं रह गई है कि वे बीए फाइलन ईयर की परीक्षा भी दे सके. हालांकि प्रेमशीला बच्चों की परवरिश के लिए सरकार से उचित मुआवजे के साथ एक नौकरी की मांग कर रही हैं.

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हादसे के बाद से शहीद रामदास की पत्नी प्रेमशीला इतनी सदमे में हैं कि उनकी आंखों से आंसू नहीं सूख रहे हैं. पथराई आंखों से दिनभर घर की ड्योढ़ी पर बैठ अपने पति को याद करती रहती है. प्रेमशीला पर दो बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी है. बच्चों की भविष्य को देखते हुए प्रेमशीला सरकार से सिविल या जिला बल में नौकरी मांग रही हैं. ताकि रामदास के जाने के बाद उनके बच्चों को आर्थिक परेशानियां न झेलनी पड़े.

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