केशकाल: सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की बदइंतजामी सामने आई है. यहां मरीज के इलाज के लिए सरकारी डॉक्टर ने मरीज से न सिर्फ पैसों की डिमांड की. बल्कि उसके इलाज में लापरवाही भी बरती. जिसके चलते मरीज की मौत हो गई है.
एक ओर लॉकडाउन के बाद से ग्रामीण क्षेत्रों में कई ऐसे परिवार हैं जो आर्थिक तंगी की मार झेल रहे हैं. पूरे कोरोनाकाल में डॉक्टरों को भगवान का दर्जा भी दिया गया है, लेकिन चन्द पैसों के लिए रक्षक ही भक्षक बन जाए तो क्या किया जाए. इसी प्रकार का मामला सलना गांव में आया है, जहां एक ग्रामीण चिकित्सा सहायक (RMA) ने तीन दिनों के भीतर 23 वर्षीय युवक के इलाज की गारंटी देते हुए परिजनों से 2 हजार रुपए की मांग की. युवक की स्थिति गंभीर देख उसे बाहर रेफर कर दिया गया. जहां उसकी मौत हो गई
आरएमए ने 3 दिनों की भीतर मरीज को ठीक करने की दी थी गारंटी
बड़ेराजपुर ब्लॉक के लिहागांव-उपरपारा निवासी धुर्वेश्वर नेताम पिता बेनुराम नेताम की 30 अक्टूबर को तबीयत खराब हो गई थी. जिसे परिजनों ने उपचार के लिए सलना के सरकारी अस्पताल में लाया गया. उपचार करने से पहले वहां पदस्थ ग्रामीण चिकित्सा सहायक सुरेंद्र साहू ने मरीज को तीन दिन के अंदर ठीक करने की बात कही और परिजनों से 2 हजार रुपए की मांग की, जिसके बाद मरीज के भाई ने डॉक्टर को 2 हजार रुपए दिए. इसके बाद डॉक्टर ने मरीज का उपचार किया, उसे इंजेक्शन, ग्लूकोज चढ़ाया और शाम को घर भेज दिया.
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आरएमए की लापरवाही के चलते युवक की गई जान
जब परिजन युवक को वापस घर ले गए तो उसी रात उसकी तबीयत और बिगड़ती गई, जिसके बाद परिजनों ने अगली सुबह दोबारा मरीज को सलना अस्पताल ले गए. जहां दिन भर मरीज के उपचार के बाद डॉक्टर ने उसकी स्थिति गम्भीर देखते हुए देर शाम को बाहर ले जाने को कहा गया, जिसके बाद परिजनों ने मरीज को 1 नवंबर को उसे निजी वाहन से फरसगांव अस्पताल उपचार के लिए गए. जहां उपचार के बाद मंगलवार सुबह मरीज की मौत हो गई.
परिजनों ने डॉक्टर पर उठाया सवाल
परिजनों ने आरोप लगाया है कि सरकारी डॉक्टर सुरेंद्र साहू ने मरीज को ठीक करने के नाम पर पैसे की डिमांड की. फिर उसकी तबीयत गंभीर होने पर रेफर कर दिया. जिसकी वजह से उसकी मौत हो गई. परिजनो का कहना है कि ऐसे लापरवाह डॉक्टर पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए.
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अस्पताल के उपकरण और दवाइयों से डॉक्टर चला रहा निजी क्लीनिक
आरएमए डॉ. सुरेंद्र साहू के घर में देखा गया तो वहां अस्पताल के विभिन्न प्रकार के उपकरण, बेड अपने क्लीनिक में लाकर सजाया गया है. इसके अलावा डॉक्टर के घर के सामने पड़े कूड़े में तरह तरह के ड्रिप, इंजेक्शन, दवाइयां भी पड़ी नजर आईं. वही महंगी शराबों की बोतलें भी देखने को मिली, जिससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि डॉक्टर शराब भी पीता है. घर को पूरी तरह से क्लीनिक में तब्दील कर दिया गया और अपने क्लीनिक में बिना किसी शासकीय अनुमति के दवाइयों का भंडारण किया गया है, जो कि गैरकानूनी है.
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में दर्ज नहीं है मरीज का नाम
ईटीवी भारत की टीम ने जब अस्पताल पहुंचकर पंजीयन रजिस्टर देखा तो मृतक मरीज का नाम नहीं था. सवाल यह उठता है कि जब अस्पताल में किसी मरीज को भर्ती किया जाता है तो क्या उसका नाम दर्ज नहीं किया जाता. लोगों का आरोप है कि डॉक्टर अधिकतर मरीजों का अपने घर पर ही इलाज करते हैं. जब इन आरोपों को लेकर डॉ. सुरेंद्र साहू से बात की गई तो उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोपों को इनकार कर दिया. डॉक्टर ने बताया कि जब मरीज को अस्पताल में लाया गया था उसकी हालत खराब थी, उन्होंने बताया कि उक्त मृतक मरीज का पहले परिजनों ने घर पर इलाज किया. उसके बाद उसे अस्पताल लाया गया था. हालात बिगड़ने पर उसे बाहर रेफर किया गया. डॉक्टर ने बताया कि मरीज से दो हजार हजार रुपए का आरोप गलत है. यहां दवाइयों की व्यवस्था नहीं है, दवाइयों को मंगाने के लिए पैसों की मांग की गई थी.
बहरहाल अब देखने वाली बात यह है कि एक गरीब आदिवासी परिवार ने शासकीय डॉक्टर की लापरवाही से अपने जवान बेटे को तो खो दिया, लेकिन क्या लापरवाह डॉक्टर पर किसी प्रकार की करवाई होगी और अगर होगी तो कब तक.